म्यांमार सागौन व्यापार: अत्यधिक बेशकीमती, अत्यधिक नीरस

म्यांमार सागौन व्यापार: अत्यधिक बेशकीमती, अत्यधिक नीरस

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Published on: March 04, 2023

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (International Consortium of Investigative Journalists- ICIJ) द्वारा की गई जाँच से पता चला है कि म्याँमार के "काॅन्फ्लिक्ट वुड/विवादित लकड़ी" का चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है। भारत ने म्याँमार से सागौन के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाया है और वह इसका निर्यात अमेरिका एवं यूरोपीय संघ को करता है।

सागौन की यह आपूर्ति न केवल म्याँमार के वन आवरण  कम कर रही है बल्कि म्याँमार के सैन्य शासन को भी जीविका प्रदान करती है। 

म्याँमार से आयातित सागौन/टीक को "विवादित लकड़ी" के रूप में वर्णित करने का कारण: 

  • फरवरी 2021 में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सैन्य जुंटा ने म्याँमार टिम्बर एंटरप्राइज़ेज़ (MTE) पर कब्ज़ा कर लिया, जिसका देश की मूल्यवान लकड़ी और सागौन व्यापार पर विशेष नियंत्रण था। इस "विवादित" लकड़ी की बिक्री सैन्य शासन हेतु आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • लकड़ी के व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद अवैध लकड़ी व्यापार के पारगमन (Transit) देश के रूप में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है।
  • फाँरेस्ट वॉच के अनुसार, फरवरी 2021 और अप्रैल 2022 के बीच भारतीय कंपनियों ने 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के सागौन का आयात किया।
  • भारत विश्व में सागौन का सबसे बड़ा आयातक और संसाधित सागौन की लकड़ी के उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है।

म्याँमार के सागौन की विशेषता: 

परिचय: 

म्याँमार के पर्णपाती और सदाबहार वनों से प्राप्त सागौन की लकड़ी को इसकी टिकाऊ, जल और दीमक से अप्रभावित रहने की विशेषता के कारण अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है। इसे विशेष रूप से लक्जरी नौकाओं के निर्माण, अच्छी गुणवत्ता के फर्नीचर, लकड़ी की सजावटी परतों और जहाज़ के डेक के निर्माण के लिये उपयोग किया जाता है। म्याँमार में सागौन वन आवरण और भंडार में कमी आ रही है, परिणामतः इस लकड़ी के मूल्य में वृद्धि होना स्वाभाविक है।

ग्लोबल फाॅरेस्ट वॉच के अनुसार, म्याँमार के वन क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों में स्विट्ज़रलैंड के आकार के बराबर क्षेत्र की कमी आई है।

म्याँमार के सागौन की स्थिति: 

  1. सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस) को सागोन, भारतीय ओक और टेका के रूप में भी जाना जाता है। यह वैश्विक वार्षिक लकड़ी की मांग के 1% की पूर्ति करता है।
  2. सागौन भारत, म्याँमार, लाओस और थाईलैंड में पाया जाने वाला एक बड़ा पर्णपाती वृक्ष है। सागौन विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में विकसित हो सकता है और यह अति शुष्क से लेकर बहुत नम क्षेत्रों में भी पाया जा सकता है। इसके सड़ने-गलने की संभावना काफी कम होती है और इस पर कीटों का प्रभाव भी नहीं देखा जाता है, हवा के संपर्क में आने से इस पेड़ का आतंरिक भाग हरे रंग से सुनहरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है।
  3. लकड़ी की यह प्रजाति IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध है, परंतु इसे CITES में सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
  4. अफ्रीकी सागौन (पेरिकोप्सिस इलाटा), जिसे अफ्रोमोसिया, कोक्रोडुआ और असमेला के नाम से भी जाना जाता है, की छाल भूरे, हरे अथवा पीले-भूरे रंग की होती है। अफ्रीकी सागौन को वर्ष 2004 की IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और यह CITES के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध है।

म्याँमार में सागौन की अवैध कटाई को रोकने हेतु लिये गए निर्णय:

लकड़ी के व्यापार पर प्रतिबंध:

वर्ष 2013 में यूरोपीय संघ ने इस अवैध लकड़ी को अपने बाज़ारों में प्रवेश से रोकने के लिये नियम बनाए (वर्ष 2000-2013 के मध्य म्याँमार से निर्यात की गई लकड़ी का 70% से अधिक का अवैध रूप से कटान)।

फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद यूरोपीय संघ और अमेरिका ने म्याँमार के साथ सभी प्रकार की लकड़ियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।

प्रतिबंधों का प्रभाव:

  • सागौन का निर्यात म्याँमार से अमेरिका और यूरोपीय संघ के कुछ देशों में जारी है, जबकि इटली, क्रोएशिया और ग्रीस जैसे देशों में आयात बढ़ गया है।  
  • चीन और भारत, ऐतिहासिक रूप से सागौन के सबसे बड़े आयातक हैं। 
  • म्याँमार और भारत में व्यापारियों को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: ज़मीनी संघर्ष और म्याँमार के अधिकारियों द्वारा नियमों में लगातार बदलाव।
  • लकड़ी के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद एक नए विनियमन ने केवल निर्धारित "आकार" के  सागौन के निर्यात की अनुमति दी।

कमियों को दूर किये जाने की आवश्यकता है: 

लकड़ी व्यापारियों का कहना है कि प्रतिबंधों के बावजूद खरीदार म्याँमार में सागौन की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये इसका  DNA परीक्षण कर सकते हैं। हालाँकि DNA परीक्षण अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है और आमतौर पर भारत में उपयोग नहीं की जाती है।

यूरोपीय संघ के देशों के सागौन निर्यात के नियमों में खामियाँ पाई गई हैं, कुछ भारतीय कंपनियों ने लकड़ी की उत्पत्ति को निर्दिष्ट नहीं किया है या पारगमन या परिवहन पास (Transit passes) में अस्पष्ट भाषा का उपयोग किया है। विनियमन में सुधार कर इन खामियों को दूर किया जा सकता है।

सागौन के अवैध व्यापार से निपटने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? 

लकड़ी के अवैध व्यापार से निपटने के लिये विज्ञान का अनुप्रयोग, जैसे:

डिजिटल माइक्रोस्कोप: ब्राज़ील में कानून को लागू करने वाले कर्मचारियों को उनके द्वारा रोके गए लकड़ी के परिवहन की मैक्रोस्कोपिक एनाटोमिकल तस्वीरें लेने के लिये प्रशिक्षित किया गया है। 

रिपोर्टिंग लॉगिंग: लॉगिंग डिटेक्शन सिस्टम वास्तविक समय में गतिविधि को ट्रैक कर सकता है और डेटा को स्थानीय अधिकारियों या विश्व भर में किसी को भी प्रेषित कर सकता है। 

DNA प्रोफाइलिंग: सभी पेड़ों का एक अद्वितीय आनुवशिक फिंगरप्रिंट होता है, जिससे संबंधित लकड़ी के मूल वृक्ष का पता लगाने के लिये DNA प्रोफाइलिंग का उपयोग करने में सहायता मिलती है।  

आइसोटोप विश्लेषण: लकड़ी (जलवायु, भूविज्ञान और जीव विज्ञान) की भौगोलिक उत्पत्ति का निर्धारण करना जो कि इस क्षेत्र के लिये असाधारण बनाता है।

निकट अवरक्त स्पेक्ट्रोस्कोपी: लकड़ी की पहचान और विशेषताओं की जानकारी पाने के लिये वैज्ञानिक निकट अवरक्त स्पेक्ट्रोस्कोपी के तहत निकट अवरक्त विद्युत चुंबकीय विकिरण का अनुप्रयोग करते हैं। 

कुशल और निष्पक्ष सहयोग के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विनियमन सुनिश्चित करना, जैसे कि इस प्रजाति को CITES की सूची में जोड़ना।

अन्य कृत्रिम सामग्रियों द्वारा लकड़ी के प्रतिस्थापन के लिये वैज्ञानिक समाधान ढूँढना।

बाज़ार में मांग एवं आपूर्ति के अंतर को कम करने और कम लागत के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित सागौन विकसित करना।

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