लचित बोरफूकन

लचित बोरफूकन

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Published on: February 25, 2022

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शुक्रवार को गुवाहाटी में 17वीं शताब्दी के एक महान और वीर योद्धा लचित बोरफूकन की 400वीं जयंती समारोह का उद्घाटन करेंगे।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने 17वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य (Ahom Kingdom) के सेनापति लचित बोरफूकन (Lachit Borphukan) को भारत की "आत्मनिर्भर सेना का प्रतीक" कहा था।

लचित बोरफूकन:

लचित बोरफूकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। इन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में अपनी सेना का प्रभावी नेतृत्व किया, जिससे असम पर कब्ज़ा करने का मुगल सेना का प्रयास विफल हो गया था।

इन्होंने भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा दी।

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लचित बोरफूकन स्वर्ण पदक (The Lachit Borphukan Gold Medal) प्रदान किया जाता है।

इस पदक को रक्षाकर्मियों हेतु बोरफुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था।

25 अप्रैल, 1672 को इनका निधन हो गया।

सराईघाट का युद्ध:

सराईघाट का युद्ध (Battle of Saraighat) वर्ष 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) नदी के तट पर लड़ा गया था।

इसे एक नदी पर होने वाली सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाई के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुगल सेना की हार और अहोम सेना की जीत हुई।

अहोम साम्राज्य:

संस्थापक: 

छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha) 13वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य के संस्थापक थे, जिन्होंने छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया था। अहोम शासकों का इस भूमि पर नियंत्रण वर्ष 1826 की यांडाबू की संधि (Treaty of Yandaboo) होने तक था।

राजनीतिक व्यवस्था: 

अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर एक नया राज्य बनाया।

अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरों (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य में इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।

समाज:

अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रण होता था।

अहोम साम्राज्य के लोग अपने आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।

हालांँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।

अहोम लोगों का स्थानीय लोगों के साथ विवाह के चलते उनमें असमिया संस्कृति को आत्मसात करने की प्रवृत्ति देखी गई।

कला और संस्कृति: 

अहोम राजाओं ने कवियों और विद्वानों को भूमि अनुदान दिया तथा रंगमंच को प्रोत्साहित किया।

संस्कृत के महत्त्वपूर्ण कृतियों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया।

बुरंजी (Buranjis) नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में फिर असमिया भाषा में लिखा गया।

सैन्य रणनीति:

अहोम राजा सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।

पाइक दो प्रकार के होते थे- सेवारत और गैर-सेवारत। गैर-सेवारत पाइकों ने एक स्थायी मिलिशिया (Militia) का गठन किया, जिन्हें खेलदार (Kheldar- सैन्य आयोजक) द्वारा थोड़े ही समय में इकट्ठा किया जा सकता था।

अहोम सेना की टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे। युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियार- तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर थे।

अहोम राजा युद्ध अभियानों से पहले अपने दुश्मनों की युद्ध रणनीतियों को जानने के लिये उनके शिविरों में जासूस भेजते थे।

अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। ये सैनिक दुश्मनों को अपने देश की सीमा में प्रवेश करने देते थे, फिर उनके संचार को बाधित कर उन पर सामने और पीछे से हमला कर देते थे।

कुछ महत्त्वपूर्ण किले: चमधारा, सराईघाट, सिमलागढ़, कलियाबार, कजली और पांडु।

उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।

इन सबसे ऊपर अहोम राजाओं के लिये नागरिकों और सैनिकों के बीच आपसी समझ तथा रईसों के बीच एकता ने हमेशा मज़बूत हथियारों के रूप में काम किया।

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