अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और जेनोसाइड कन्वेंशन

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और जेनोसाइड कन्वेंशन

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Published on: March 02, 2022

अंतर्राष्ट्रीय संबंधित मुद्दे

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में यूक्रेन द्वारा रूस के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice-ICJ) के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया है।

यूक्रेन ने रूस पर झूठा दावा करने का आरोप लगाया है कि "यूक्रेन के लुहान्स्क और डोनेट्स्क ओब्लास्ट में जेनोसाइड की घटनाएँ हुई हैं" तथा इन क्षेत्रों की स्वतंत्रता हेतु रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ युद्ध का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यह विवाद रोकथाम और जेनोसाइड  के अपराध की सज़ा पर 1948 के कन्वेंशन से संबंधित है ("जेनोसाइड कन्वेंशन")।

प्रमुख बिंदु 

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ): 

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में: ICJ संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है।

संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत यह एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है। 

स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई और इसने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया।

पूर्वगामी: ICJ अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (PCIJ) का उत्तराधिकारी है, जिसे राष्ट्र संघ के माध्यम से और उसके द्वारा अस्तित्व में लाया गया था।

PCIJ की स्थापना फरवरी, 1922 में नीदरलैंड के द हेग में पीस पैलेस में की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ और PCIJ को क्रमशः संयुक्त राष्ट्र और ICJ द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। 

PCIJ को औपचारिक रूप से अप्रैल 1946 में भंग कर दिया गया था और इसके अंतिम अध्यक्ष, अल सल्वाडोर के न्यायाधीश जोस गुस्तावो ग्युरेरो, ICJ के पहले अध्यक्ष नियुक्त किये गए।

ICJ की भूमिका: यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा निर्दिष्ट कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।

पहला मामला: पहला मामला, ब्रिटेन द्वारा अल्बानिया के विरुद्ध लाया गया था और यह ‘कोर्फु चैनल’ से संबंधित था, जो कि यूरोपीय मेनलैंड पर कोर्फु एवं अल्बानिया के ग्रीक द्वीप के बीच आयोनियन सागर का संकीर्ण जलडमरूमध्य है, को मई 1947 में प्रस्तुत किया गया था।

ICJ प्रशासन: न्यायालय के न्यायाधीशों को ‘रजिस्ट्री’ द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो कि ICJ का एक प्रशासनिक अंग है।

आधिकारिक भाषाएँ: अंग्रेज़ी और फ्रेंच।

ICJ क्षेत्राधिकार: UN के सभी सदस्य स्वयं ही ICJ के पक्षकार हैं, हालाँकि यह स्वचालित सदस्यता उनसे जुड़े विवादों पर ICJ के क्षेत्राधिकार का निर्धारण नहीं करती है।

ICJ को अधिकार क्षेत्र तभी मिलता है जब दोनों पक्ष इसके लिये सहमत हों।

ICJ का निर्णय अंतिम एवं तकनीकी रूप से मामले के पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है।

हालाँकि ICJ के पास अपने आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने की कोई विधि नहीं है और यह पक्षकार देशों की इच्छा पर निर्भर करता है।

ICJ के न्यायाधीश किस प्रकार चुने जाते हैं?

ICJ में 15 न्यायाधीश होते हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के लिये चुना जाता है।

निर्वाचित होने के लिये एक उम्मीदवार को दोनों निकायों में बहुमत प्राप्त करना होता है और इस आवश्यकता को पूरा करने हेतु प्रायः कभी-कभी मतदान प्रक्रिया कई चरणों में पूरी की जाती है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की वार्षिक बैठक के दौरान न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में चुनाव होते हैं।

न्यायालय के एक-तिहाई सदस्यों को प्रति तीन वर्ष में चुना जाता है।

अदालत के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को गुप्त मतदान द्वारा तीन वर्ष के लिये चुना जाता है।

न्यायाधीश पुन: नियुक्ति के लिये पात्र होते हैं।

ICJ में भारतीय न्यायाधीश: चार भारतीय अब तक ICJ के सदस्य रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस दलवीर भंडारी वर्ष 2012 से ICJ में काम कर रहे हैं।

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एस. पाठक ने वर्ष 1989-91 तक ICJ में कार्य किया।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नागेंद्र सिंह वर्ष 1973-88 तक ICJ में रहे।

सर बेनेगल राव, जो संविधान सभा के सलाहकार थे, वर्ष 1952-53 तक ICJ के सदस्य थे।

ICJ के साथ भारत के जुड़ाव का इतिहास:

भारत छह मौकों पर ICJ के मामलों में पक्षकार रहा है, जिनमें से चार में पाकिस्तान भी शामिल रहा है। ये हैं:

भारतीय क्षेत्र पर मार्ग का अधिकार (पुर्तगाल बनाम भारत, 1960 को समाप्त हुआ)।

आईसीएओ (ICAO) परिषद के क्षेत्राधिकार से संबंधित अपील (भारत बनाम पाकिस्तान, परिणति 1972)।

युद्ध के पाकिस्तानी कैदियों का परीक्षण (पाकिस्तान बनाम भारत, 1973 में समाप्त हुआ)।

10 अगस्त 1999 की हवाई घटना (पाकिस्तान बनाम भारत, 2000 का समापन)।

परमाणु हथियारों की होड़ को जल्द-से-जल्द समाप्त करने और परमाणु निरस्त्रीकरण  (मार्शल द्वीप बनाम भारत, 2016 को समाप्त) से संबंधित बातचीत करने के लिये  प्रतिबद्ध।

कुलभूषण जाधव (भारत बनाम पाकिस्तान, 2019 का समापन)।

जेनोसाइड  कन्वेंशन:

जेनोसाइड  के अपराध की रोकथाम और सज़ा पर कन्वेंशन (जेनोसाइड  कन्वेंशन) अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक उपकरण है जिसे पहली बार जेनोसाइड के अपराध के लिये संहिताबद्ध किया गया है।

जेनोसाइड कन्वेंशन 9 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई पहली मानवाधिकार संधि थी।

यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किये गए अत्याचारों के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की 'फिर कभी नहीं (Never Again)' की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

जैसा कि हम जानते हैं, इसे अपनाना अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कानून के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

जेनोसाइड  कन्वेंशन के अनुसार, जेनोसाइड  एक ऐसा अपराध है जो युद्ध तथा शांति दोनों समय हो सकता है।

कन्वेंशन में निर्धारित जेनोसाइड के अपराध की परिभाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक रूप से अपनाया गया है, जिसमें वर्ष 1998 में अपनाई गई अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की रोम संविधि भी शामिल है।

महत्त्वपूर्ण रूप से कन्वेंशन राज्य पार्टियों पर जेनोसाइड के अपराध को रोकने और दंडित करने हेतु कानून बनाने तथा अपराधियों को दंडित करने "चाहे वे संवैधानिक रूप से ज़िम्मेदार शासक, सार्वजनिक अधिकारी या निजी व्यक्ति ही क्यों न हों"  से संबंधित हैं (अनुच्छेद IV)। 

इस दायित्व को, नरसंहार प्रतिषेध के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत कानून के मानदंडों के रूप में भी देखा जाता है तथा इसलिये यह सभी राज्यों पर बाध्यकारी है चाहे उन्होंने जेनोसाइड कन्वेंशन की पुष्टि की हो या नहीं।

भारत इस कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

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