यौन अपराध मामलों में न्याय के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट

यौन अपराध मामलों में न्याय के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट

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Published on: August 29, 2023

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

कानून और विधि मंत्रालय के न्याय विभाग की केंद्र प्रायोजित योजना के तहत फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट का प्रदर्शन सराहनीय रहा है, जिससे बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offenses- POCSO) अधिनियम, 2012 से संबंधित मामलों की सुनवाई प्रक्रिया में तेज़ी लाने में काफी प्रगति हुई है।

पृष्ठभूमि:

परिचय:

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट विशेष मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने हेतु समर्पित न्यायालय हैं। त्वरित सुनवाई होने के कारण नियमित न्यायालयों की तुलना में इनकी मामला निपटान दर/क्लीयरेंस दर बेहतर है।

"आगामी पाँच वर्षों में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों को खत्म अथवा काफी सीमा तक कम करने के लिये" पहली बार वर्ष 2000 में ग्यारहवें वित्त आयोग द्वारा फास्ट ट्रैक कोर्ट (FTCs) की सिफारिश की गई थी। 

दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले के बाद केंद्र सरकार ने 'निर्भया फंड' की स्थापना की, किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया तथा फास्ट-ट्रैक महिला न्यायालयों की स्थापना की।

इसके बाद कुछ अन्य राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, बिहार आदि ने भी बलात्कार के मामलों के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों के लिये योजना:

सरकार ने वर्ष 2019 में भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत लंबित बलात्कार के मामलों और POCSO अधिनियम के तहत अपराधों के शीघ्र निपटान के लिये देश भर में 1,023 FTSCs स्थापित करने की योजना को मंज़ूरी प्रदान की।

यह यौन अपराधियों के लिये निवारक रूपरेखा को भी सशक्त करता है।

प्रदर्शन:

FTSCs ने जून 2023 तक बलात्कार और POCSO अधिनियम से संबंधित 1.74 लाख से अधिक मामलों का सफलतापूर्वक निपटान किया है।

यह यौन अपराध के पीड़ितों को त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु इन विशेष अदालतों के महत्त्वपूर्ण प्रभाव को दर्शाता है।

वर्तमान में 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 763 FTSCs कार्यरत हैं।

इनमें से 412 विशिष्ट POCSO न्यायालय हैं।

POCSO अधिनियम: 

परिचय:

POCSO अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ, जिसे बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1992  के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।

इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों का यौन शोषण और उन यौन शोषण के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें या तो स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया या जिनके लिये पर्याप्त दंड का प्रावधान नहीं किया गया था।

यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा का प्रावधान करता है।

विशेषताएँ:

लिंग-तटस्थ प्रकृति: यह अधिनियम मानता है कि लड़कियाँ और लड़के दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं तथा पीड़ित के लिंग की परवाह किये बिना ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।

यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा प्राप्ति का अधिकार है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।

मामलों की रिपोर्ट करने में सुविधा: अब न केवल व्यक्तियों बल्कि संस्थानों में भी बच्चों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये पर्याप्त सामान्य जागरूकता है क्योंकि रिपोर्टिंग न करने को POCSO अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है।

इससे बच्चों के खिलाफ अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन हो गया है।

शर्तों की स्पष्ट परिभाषा: बाल पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को एक नया अपराध बना दिया गया है।

इसके अलावा 'यौन उत्पीड़न' के अपराध को भारतीय दंड संहिता में 'महिला की लज्जा भंग करने' की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (बढ़ी हुई न्यूनतम सज़ा के साथ) परिभाषित किया गया है।

महिला एवं बाल दुर्व्यवहार को रोकने के लिये पहल:

बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और जाँच इकाई

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015

बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006)

बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम, 2016

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