विश्व विरासत नामांकन 2022-2023

विश्व विरासत नामांकन 2022-2023

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Published on: February 02, 2022

भारतीय विरासत और संस्कृति

स्रोत: पीआईबी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये ‘विश्व धरोहर स्थल’के रूप में विचार करने हेतु होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारकों को नामित किया है।

12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित होयसल मंदिर कर्नाटक में बेलूर, हलेबीडु और सोमनाथपुर के तीन घटकों द्वारा चिह्नित हैं। ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षित स्मारक हैं।

‘होयसला के पवित्र स्मारक’ 15 अप्रैल, 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं और भारत की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के साक्षी हैं।

इससे पहले यूनेस्को के विश्व धरोहर केंद्र (WHC) ने अपनी वेबसाइट पर भारत के ‘यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों’ के हिंदी विवरण प्रकाशित करने पर सहमति व्यक्त की थी।

बेलूर, हलेबीडु और सोमनाथपुरा मंदिरों की विशेषताएँ:

चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर:

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें ‘चेन्नाकेशव’ के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है- ‘सुंदर’ (चेन्ना) एवं ‘विष्णु’ (केशव)।

मंदिर के बाहरी हिस्से में बड़े पैमाने पर तराशे गए पत्थर विष्णु के जीवन एवं उनके पुनर्जन्म तथा महाकाव्यों- रामायण और महाभारत के दृश्यों का वर्णन करते हैं।

हालाँकि यहाँ शिव से जुड़े कुछ मंदिर भी मौजूद हैं।

होयसलेश्वर मंदिर, हलेबिड (Hoysaleshwara Temple):

हलेबिड में होयसलेश्वर मंदिर वर्तमान में मौजूद होयसलों का सबसे अनुकरणीय स्थापत्य है।

इसका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन होयसलेश्वर के शासनकाल के दौरान 1121 ई. में किया गया था।

शिव को समर्पित यह मंदिर दोरासमुद्र के धनी नागरिकों तथा व्यापारियों द्वारा प्रायोजित व निर्मित किया गया था।

यह मंदिर 240 से अधिक दीवार में संलग्न मूर्तियों के लिये सबसे प्रसिद्ध है।

हलेबिड में एक दीवार वाला परिसर है जिसमें होयसल काल के तीन जैन मंदिर भी है।

केशव मंदिर, सोमनाथपुरा (Keshava Temple, Somanathapura):

सोमनाथपुरा में केशव मंदिर एक और शानदार (शायद आखिरी) होयसल स्मारक है।

यहाँ जनार्दन, केशव और वेणुगोपाल के इन तीन रूपों में भगवान कृष्ण को समर्पित एक सुंदर त्रिकूट मंदिर है।

दुर्भाग्य से यहाँ मुख्य केशव मूर्ति गायब है तथा जनार्दन एवं वेणुगोपाल की मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हैं।

 

होयसल वास्तुकला की विशेषताएँ क्या हैं?

होयसल वास्तुकला 11वीं एवं 14वीं शताब्दी के बीच होयसल साम्राज्य के अंतर्गत विकसित एक वास्तुकला शैली है जो ज़्यादातर दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में केंद्रित है।

होयसल मंदिर, हाइब्रिड या बेसर शैली के अंतर्गत आते हैं क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ है और न ही नागर।

होयसल मंदिरों में एक बुनियादी द्रविड़ियन आकृति है, लेकिन मध्य भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भूमिजा मोड ( Bhumija mode), उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपराओं और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाटक द्रविड़ मोड के मज़बूत प्रभाव दिखाई देते हैं।

इसलिये होयसल के वास्तुविदों ने अन्य मंदिर प्रकारों में विद्यमान बनावट पर विचार किया  तथा उनके चयन और यथोचित संशोधन करने के बाद इन विधाओं को अपने स्वयं के विशेष नवाचारों के साथ मिश्रित किया। 

इसकी परिणति एक पूर्णरूपेण अभिनव 'होयसल मंदिर' ('Hoysala Temple) शैली के अभ्युदय के रूप में हुई।

होयसल मंदिरों में खंभे वाले हॉल के साथ एक साधारण आंतरिक कक्ष की बजाय एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में कई मंदिर शामिल होते हैं और यह संपूर्ण संरचना एक जटिल डिज़ाइन वाले तारे के आकार में होती है।

चूँकि ये मंदिर शैलखटी (Steatite) चट्टानों से निर्मित हैं जो अपेक्षाकृत एक नरम पत्थर होता है जिससे कलाकार मूर्तियों को जटिल रूप देने में सक्षम होते थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिर की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

विश्व धरोहर स्थल:

विश्व धरोहर स्थल के बारे में: 

यूनेस्को (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) द्वारा सूचीबद्ध विशेष सांस्कृतिक या भौतिक महत्त्व के स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता है। 

विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत 1972 के संरक्षण के संबंध में कन्वेंशन के तहत स्थलों को "उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य" (Outstanding Universal Value) के रूप में नामित किया जाता है।

विश्व विरासत केंद्र इस कन्वेंशन के सञ्चालन हेतु सचिवालय के रूप में कार्य करता है।

यह पूरे विश्व में उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को बढ़ावा देता है।

इसमें तीन प्रकार के स्थल शामिल हैं: सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित।

सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) स्थलों में ऐतिहासिक इमारत, शहर स्थल, महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल, स्मारकीय मूर्तिकला और पेंटिंग कार्य शामिल किये जाते हैं जैसे- धौलावीरा: एक हड़प्पा शहर।

प्राकृतिक विरासत स्थल उन प्राकृतिक क्षेत्रों तक सीमित हैं जिनमें उत्कृष्ट पारिस्थितिक और विकासवादी प्रक्रियाएँ, अद्वितीय प्राकृतिक घटनाएँ, दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियों के आवास आदि हैं। उदाहरण: ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र

मिश्रित विरासत स्थलों में प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्त्व दोनों के तत्त्व होते हैं। उदाहरण: खांगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान।

भारत में विश्व धरोहर स्थलों की संख्या: भारत में कुल मिलाकर 40 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित स्थल शामिल है। एक हड़प्पाकालीन शहर धोलावीरा हाल ही में जोड़ा गया है।

नामांकन प्रक्रिया: यूनेस्को के परिचालन दिशा-निर्देश, 2019 के अनुसार, अंतिम नामांकन डोज़ियर के लिये विचार किये जाने से पहले किसी भी स्मारक/स्थल को एक वर्ष हेतु अस्थायी सूची में रखना अनिवार्य है।

एक बार नामांकन हो जाने के बाद इसे वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर (WHC) को भेजा जाता है, जो इसकी तकनीकी जाँच करता है।

एक बार सबमिशन हो जाने के बाद यूनेस्को मार्च की शुरुआत में फिर से संपर्क करेगा। उसके बाद सितंबर/अक्तूबर 2022 में साइट का मूल्यांकन होगा और जुलाई/अगस्त 2023 में डोज़ियर पर विचार किया जाएगा।

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