आदिवासी वन अधिकार

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Published on: September 24, 2022

स्रोत:पीआईबी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ के करिपानी और बुदरा गाँवों के निवासियों ने 100 एकड़ में बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान चलाया, क्योंकि यह ग्रामीणों का अपनी वन भूमि पर अधिकार सुरक्षित करने का अंतिम प्रयास था।

राज्य के संरक्षित क्षेत्रों के 10 गाँवों को 9 अगस्त, 2022 को मनाए गए आदिवासी दिवस पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) प्रदान किया गया, लेकिन करिपानी और बुदरा को ये अधिकार नही प्राप्त हुए हैं।

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार:

  1. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम या FRA के रूप में संदर्भित), 2006 की धारा 3 (1)(i) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार सामुदायिक वन संसाधनों को "संरक्षण, पुन: उत्पन्न या संरक्षित या प्रबंधित" करने के अधिकार की मान्यता प्रदान करते हैं।
  2. ये अधिकार समुदाय को वनों के उपयोग के लिये स्वयं और दूसरों के लिये नियम बनाने की अनुमति देते हैं तथा इस तरह FRA की धारा 5 के तहत वे अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
  3. CFR अधिकार, धारा 3(1)(b) और 3(1)(c) के तहत सामुदायिक अधिकारों (CR) के साथ, जिसमें निस्तार अधिकार (रियासतों या ज़मींदारी आदि में पूर्व उपयोग किये जाने वाले) और गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर अधिकार शामिल हैं, समुदाय की स्थायी आजीविका सुनिश्चित करते हैं।
  4. एक बार जब CFRR को किसी समुदाय के लिये मान्यता दी जाती है, तो वन का स्वामित्त्त्व वन विभाग के बजाय ग्राम सभा के नियंत्रण में आ जाता है।
  5. प्रभावी रूप से ग्राम सभा वनों के प्रबंधन के लिये नोडल निकाय बन जाती है।
  6. ये अधिकार ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन सीमा के भीतर वन संरक्षण और प्रबंधन की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं को अपनाने का अधिकार देते हैं।
  7. छत्तीसगढ़ दूसरा राज्य है जिसने राष्ट्रीय उद्यान यानी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर CFRR अधिकारों को मान्यता दी है।
  8. वर्ष 2016 में ओडिशा सरकार ने सर्वप्रथम, सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान के अंदर सामुदायिक वन संसाधनों (CFR) को मान्यता प्रदान की थी।

वन अधिकार अधिनियम, 2006:

यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है।

किसी भी ऐसे सदस्य या समुदाय द्वारा वन अधिकारों का दावा किया जा सकता है, जो दिसंबर 2005 के 13वें दिन से पहले कम-से-कम तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) के लिये मुख्य रूप से वन भूमि में वास्तविक आजीविका की ज़रूरतों हेतु निवास करता है।

यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है।

ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।

इस अधिनियम के तहत चार प्रकार के अधिकार हैं:

स्वामित्त्व अधिकार: यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है। यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी।

उपयोग करने का अधिकार: वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोत्पाद, चराई क्षेत्रों आदि तक है।

राहत और विकास से संबंधित अधिकार: वन संरक्षण के लिये प्रतिबंधों के अधीन अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पुनर्वास का अधिकार शामिल है।

वन प्रबंधन अधिकार: इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनः उत्थान या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वन निवासियों द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है।

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