टोयोटा मिराई

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Published on: March 17, 2022

ग्रीन हाइड्रोजन ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहन (FCEV)

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

खबरों में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने दुनिया की सबसे उन्नत तकनीक ग्रीन हाइड्रोजन आधारित फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक व्हीकल (FCEV) टोयोटा मिराई को पेश किया है।

इस उपलब्धि का महत्त्व:

ग्रीन हाइड्रोजन और FCEV प्रौद्योगिकी के बारे में जागरूकता पैदा करना:

यह भारत में अपनी तरह की पहली परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन और FCEV प्रौद्योगिकी की अनूठी उपयोगिता के बारे में जागरूकता पैदा करके देश में एक ग्रीन हाइड्रोजन आधारित पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना है।

भारतीय सड़कों और जलवायु परिस्थितियों पर वाहन के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिये एक पायलट परियोजना के लिये टोयोटा किर्लोस्कर मोटर प्राइवेट लिमिटेड और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (ICAT) द्वारा एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

ICAT नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (NATRiP), भारत सरकार के तत्त्वावधान में एक अग्रणी विश्व स्तरीय ऑटोमोटिव परीक्षण, प्रमाणन और आर एंड डी (R&D) सेवा प्रदाता है।

वर्ष 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर बनने में सहायक:

यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करके स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देकर वर्ष 2047 तक भारत को 'ऊर्जा आत्मनिर्भर' बनाएगा।

सर्वश्रेष्ठ ज़ीरो उत्सर्जन समाधान:

हाइड्रोजन द्वारा संचालित फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक व्हीकल (FCEV) ज़ीरो उत्सर्जन के सबसे अच्छे सामाधान में से एक है। यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है जिसमें पानी के अलावा किसी भी तरह का टेलपाइप (Tailpipe) उत्सर्जन नहीं होता है।

टेलपाइप उत्सर्जन: इसका आशय गैस या विकिरण जैसी किसी चीज़ का वातावरण में उत्सर्जन से है।

अक्षय ऊर्जा और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध बायोमास से ग्रीन हाइड्रोजन उत्पन्न किया जा सकता है।

ग्रीन हाइड्रोजन की क्षमता का दोहन करने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाना भारत के लिये एक स्वच्छ और किफायती ऊर्जा भविष्य हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की स्थिति:

परिचय:

ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये पेरिस समझौते के तहत स्थापित वैश्विक जलवायु एजेंडा द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को प्रोत्साहित किया गया है।

वैश्विक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्रांति वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के तेज़ विकास के संदर्भ में परिभाषित की जाती है।

बैटरी लागत में आ रही गिरावट और प्रदर्शन क्षमता में वृद्धि भी वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग को बढ़ा रही है।

इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता: भारत को एक परिवहन क्रांति की आवश्यकता है।

महँगे आयातित ईंधन से संचालित कारों की संख्या को और बढ़ाया जाना तथा अवसंरचनात्मक बाधाओं एवं तीव्र वायु प्रदूषण से पहले से ही पीड़ित अत्यधिक भीड़भाड़ वाले शहरों को और अव्यवस्थित किया जाना संवहनीय या व्यावहारिक नहीं है।

परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर ट्रांज़िशन वर्तमान युग की आशावादी वैश्विक रणनीति है। 

दिसंबर 2021 में पहली बार EVs का पंजीकरण 50,000 से अधिक होने के बावज़ूद वर्तमान में भारत में बिकने वाले सभी वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 3% से भी कम है जो अब तक की सबसे अधिक मासिक बिक्री दर्ज की गई है।

हालांँकि बेची गई ईवी की मात्रा का 80% हिस्सा कम लागत और कम गति वाले तिपहिया वाहनों का है। कुल मिलाकर नेक्स्ट-जेन टू-व्हीलर कंपनियों के उदय के कारण ईवी की बिक्री में तीव्रता आई है।

भारत में परिवहन हेतु त्वरित ई-मोबिलिटी क्रांति (ई-अमृत) पोर्टल के अनुसार, दिसंबर 2021 तक केवल 7,96,000 EV पंजीकृत किये गए हैं और केवल 1,800 सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन (EV Charging Stations ) स्थापित किये गए हैं।

जबकि वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2020 तक EV की बिक्री में 133 फीसदी की वृद्धि हुई है, पारंपरिक ICEवाहनों की बिक्री की तुलना में यह संख्या काफी कम है। वित्त वर्ष 2021-22 में देश में बिकने वाले कुल वाहनों में से केवल 1.32% ही इलेक्ट्रिक वाहन थे।

संबद्ध चुनौतियाँ:

उपभोक्ता संबंधी मुद्दे: उपयुक्त चार्जिंग स्टेशनों की कमी चिंता का कारण है जो कि उन पड़ोसी समकक्ष देशों की तुलना में काफी कम है, जिनके पास पहले से ही 5 मिलियन से अधिक चार्जिंग स्टेशन हैं।

चार्जिंग स्टेशनों की कमी के कारण उपभोक्ताओं के लिये लंबी दूरी की यात्रा करना अव्यावहारिक हो जाता है। 

नीतिगत चुनौतियाँ: EV उत्पादन एक पूंजी गहन क्षेत्र है जहाँ ‘ब्रेक ईवन’ स्थिति और लाभ प्राप्ति के लिये एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता होती है, जबकि EV उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों की अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।    .

प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम की कमी: भारत बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन में प्रौद्योगिकीय रूप से पिछड़ा हुआ है, जबकि यह क्षेत्र EV उद्योग की रीढ़ है।

घरेलू उत्पादन हेतु सामग्री की अनुपलब्धता: बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है।

भारत में लिथियम एवं कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है, जो कि बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है।

लिथियम-आयन बैटरी के आयात के लिये अन्य देशों पर निर्भरता बैटरी निर्माण क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने में एक बाधा है।

संबंधित पहलें:

फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME II) योजना।

आपूर्तिकर्त्ता पक्ष हेतु उन्नत रसायन विज्ञान प्रकोष्ठ (ACC) के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना।

इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं हेतु ऑटो एवं ऑटोमोटिव घटकों के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना।

देश भर में सार्वजनिक ईवी चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की तेज़ी से तैनाती हेतु हाल ही में केंद्र एवं राज्य स्तर पर विभिन्न हितधारकों की भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों का वर्णन करते हुए ‘इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर दिशा-निर्देश और मानक’ जारी किया गया है।

भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जो वैश्विक ‘EV30@30’ अभियान का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम-से-कम 30% नई इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री करना है।

ग्लासगो में COP26 में जलवायु परिवर्तन हेतु भारत ने पाँच तत्त्वों- ‘पंचामृत’ की वकालत की है और उसके प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।

ग्लासगो शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा विभिन्न विचारों का समर्थन किया गया था, जिसमें अक्षय ऊर्जा के माध्यम से भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का 50% हिस्सा पूरा करना, वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन कम करना और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना आदि शामिल हैं।

आगे की राह: 

भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन की आवश्यकता है जो भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अनुकूल होंगे।

पुराने मानदंडों को तोड़ना और एक नए उपभोक्ता व्यवहार का निर्माण करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। इसलिये भारतीय बाज़ार में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये लोगों को जागरूक और सुग्राही बनाने की आवश्यकता है।

इलेक्ट्रिक आपूर्ति शृंखला के लिये विनिर्माण क्षेत्र को सब्सिडी देने से निश्चित तौर पर भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास में सुधार होगा।

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