भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण

भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण

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Published on: August 16, 2022

स्रोत: द इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने संसद में एक रिपोर्ट पेश किया कि क्या भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम सफल रहे हैं।

इस नवीनतम रिपोर्ट में वर्ष 2015-20 से तटीय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के ऑडिट के अवलोकन शामिल हैं।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा लेखापरीक्षा

CAG के पास सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित कार्यक्रमों की जाँच और रिपोर्ट करने का संवैधानिक अधिकार है।

CAG ने "पूर्व-लेखापरीक्षा अध्ययन" किया और पाया कि तटीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) का उल्लंघन हुआ था।

उच्च ज्वार सीमा (HTL) से 500 मीटर तक की तटीय भूमि और खाड़ियों, लैगून, मुहाना, बैकवाटर और नदियों के किनारे 100 मीटर के क्षेत्र को ज्वारीय उतार-चढ़ाव के अधीन तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) कहा जाता है।

मीडिया ने अवैध निर्माण गतिविधियों (समुद्र तट की जगह को कम करने) और स्थानीय निकायों, उद्योगों और जलीय कृषि फार्मों द्वारा छोड़े गए अपशिष्ट की घटनाओं की सूचना दी, जिससे विस्तृत जाँच हुई।

समुद्र तट के संरक्षण हेतु केंद्र ज़िम्मेदार:

परिचय:

सरकार ने विशेष रूप से निर्माण के संबंध में भारत के तटों पर गतिविधियों को विनियमित करने हेतु पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचना जारी की है।

मंत्रालय द्वारा लागू तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना (CRZ) 2019, बुनियादी ढाँचा गतिविधियों के प्रबंधन और उन्हें विनियमित करने के लिये तटीय क्षेत्र को विभिन्न क्षेत्रों में वर्गीकृत करता है।

CRZ के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार तीन संस्थान हैं:

केंद्र में राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (NCZMA)

प्रत्येक तटीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में राज्य / केंद्रशासित प्रदेश तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (SCZMAs / UTCZMAs) और

प्रत्येक ज़िले में ज़िला स्तरीय समिति (DLCs) जिसमें तटीय क्षेत्र है और जहाँ CRZ अधिसूचना लागू है।

निकायों की भूमिका:

ये निकाय जाँच करते हैं कि क्या सरकार द्वारा दी गई CRZ मंज़ूरी प्रक्रिया के अनुसार है, क्या डेवलपर्स परियोजना को आगे बढ़ने के लिये शर्तों का पालन कर रहे हैं, और क्या एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम (ICZMP) के तहत परियोजना विकास के उद्देश्य सफल हैं।

वे सतत् विकास लक्ष्यों के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए उपायों का भी मूल्यांकन करते हैं।

लेखापरीक्षा परिणाम:

NCZMA स्थायी निकाय के रूप में :

पर्यावरण मंत्रालय ने NCZMA को स्थायी निकाय के रूप में अधिसूचित नहीं किया था तथा इसे प्रत्येक कुछ वर्षों में पुनर्गठित किया जाता रहा था।

परिभाषित सदस्यता के अभाव में यह एक तदर्थ निकाय के रूप में कार्य कर रहा था।

विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों की भूमिका:

परियोजना संबंधी विचार-विमर्श के दौरान विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों के मौजूद नहीं थे।

EAC वैज्ञानिक विशेषज्ञों और वरिष्ठ नौकरशाहों की एक समिति है जो एक बुनियादी ढाँचा परियोजना की व्यवहार्यता और इसके पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करती है।

विचार-विमर्श के दौरान EAC के सदस्यों की कुल संख्या के आधे से भी कम होने के उदाहरण थे।

SCZMA का गठन नहीं किया गया:

राज्य स्तर पर जहाँ राज्य तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (SCZMA) निर्णय लेते हैं, केंद्रीय लेखा परीक्षक ने उन उदाहरणों का अवलोकन किया जहाँ SCZMA ने संबंधित अधिकारियों को परियोजनाओं की सिफारिश किये बिना स्वयं ही मंज़ूरी दे दी थी।

इसके अलावा SCZMA ने अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत किये बिना कई परियोजनाओं की सिफारिश की थी।

अपर्याप्तता के बावज़ूद परियोजनाओं की स्वीकृति:

पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट में अपर्याप्तता के बावजूद परियोजनाओं को मंजूरी दिये जाने के उदाहरण थे।

इनमें गैर-मान्यता प्राप्त सलाहकार शामिल थे जो EIA रिपोर्ट तैयार कर रहे थे, पुराने डेटा का उपयोग कर रहे थे, परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन नहीं कर रहे थे, उन आपदाओं का मूल्यांकन नहीं कर रहे थे जिनसे परियोजना क्षेत्र प्रभावित था।

राज्यों में समस्याएँ:

मन्नार की खाड़ी द्वीप समूह़ के संरक्षण के लिये तमिलनाडु के पास कोई रणनीति नहीं थी।

गोवा में प्रवाल भित्तियों की निगरानी के लिये कोई व्यवस्था नहीं थी और कछुओं के नेस्टिंग स्थलों के शिकार से संरक्षण के लिये कोई प्रबंधन योजना नहीं थी।

गुजरात में कच्छ की खाड़ी के जड़त्वीय क्षेत्र की मिट्टी और पानी के भौतिक रासायनिक मापदंडों का अध्ययन करने के लिये खरीदे गए उपकरणों का उपयोग नहीं किया गया था।

ओडिशा के केंद्रपाड़ा में गहिरमाथा अभयारण्य में समुद्री गश्त नहीं हुई।

तटीय प्रबंधन के लिये भारतीय पहल:

सतत् तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र:

इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीपीय समुदायों के लाभ और कल्याण के लिये भारत में तटीय और समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना है।

एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना:

यह स्थिरता प्राप्त करने के प्रयास में भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं सहित तटीय क्षेत्र के सभी पहलुओं के संबंध में एक एकीकृत दृष्टिकोण का उपयोग करके तट के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है।

तटीय विनियमन क्षेत्र:

CRZ को ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय (जिसका नाम अब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय कर दिया गया है) द्वारा फरवरी-1991 में अधिसूचित किया गया था।

आगे की राह:

इन रिपोर्टों को संसद की स्थायी समितियों के समक्ष रखा जाता है, जो उन निष्कर्षों और अनुशंसाओं का चयन करती हैं जिन्हें वे जनहित के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं और उन पर सुनवाई की व्यवस्था करते हैं।

इस मामले में, पर्यावरण मंत्रालय से अपेक्षा की जाती है कि वह CAG द्वारा बताई गई खामियों की व्याख्या करे और उसमें संशोधन करें।

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