'सामान्य निवासी' के रूप में कौन पात्र हैं?

'सामान्य निवासी' के रूप में कौन पात्र हैं?

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द हिंदू: 14 जुलाई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

भारत निर्वाचन आयोग (EC) ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान शुरू किया है, जिससे यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि "साधारण निवासी" कौन माना जाए। यह मुद्दा विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों (migrant workers) के लिए संवेदनशील है, जो काम के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं और यदि "साधारण निवासी" की परिभाषा सख्ती से लागू की जाती है तो उनके मतदाता बनने का अधिकार छिन सकता है।

 

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 20 क्या कहती है?

धारा 19 के अनुसार, किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए व्यक्ति को उस क्षेत्र का 'साधारण निवासी' होना चाहिए।

धारा 20 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ मकान या संपत्ति का मालिक है, तो उसे केवल इसी आधार पर ‘साधारण निवासी’ नहीं माना जाएगा।

यदि कोई व्यक्ति अस्थायी रूप से अनुपस्थित है, तो उसे फिर भी उसी स्थान का 'साधारण निवासी' माना जाएगा।

निम्नलिखित श्रेणियों के व्यक्ति, और उनके पति/पत्नी, उस निर्वाचन क्षेत्र के ‘साधारण निवासी’ माने जाएंगे जहां वे होते यदि उनका स्थानांतरण न हुआ होता:

(क) सशस्त्र बलों के सदस्य

(ख) राज्य पुलिस बल के सदस्य जो राज्य के बाहर तैनात हैं

(ग) भारत सरकार के कर्मचारी जो विदेश में नियुक्त हैं

(घ) संविधानिक पद धारक (राष्ट्रपति द्वारा घोषित)

 

क्या NRI वोट डाल सकते हैं?

वर्ष 2010 में जोड़ी गई धारा 20A के अनुसार, भारत से बाहर गए अनिवासी भारतीय (NRI) भी मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकते हैं।

ऐसे NRI को अपने पासपोर्ट पर अंकित पते वाले निर्वाचन क्षेत्र में वोट डालने का अधिकार है।

 

मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के नियम कौन तय करता है?

1950 का मतदाता पंजीकरण नियम (Registration of Electors Rules - RER):

भारत सरकार द्वारा EC की सलाह से बनाया गया।

यह निर्धारित करता है कि कैसे नाम जोड़े जाएं या हटाए जाएं।

RP Act के प्रावधानों को लागू करता है।

 

प्रवासी मजदूर सबसे अधिक प्रभावित क्यों होते हैं?

प्रवासी मजदूर काम के लिए अन्य स्थानों पर जाते हैं, जहां वे अस्थायी झोपड़ियों या शिविरों में रहते हैं।

लेकिन वे नियमित रूप से अपने मूल निवास स्थान लौटते हैं, जहां परिवार और संपत्ति होती है।

गुवाहाटी उच्च न्यायालय (1999) ने माना कि “साधारण निवासी” वह व्यक्ति होता है जो स्थायी रूप से किसी स्थान पर निवास करने का इरादा रखता है।

अनुमानतः भारत में 11% आबादी रोजगार के लिए पलायन करती है, जो लगभग 15 करोड़ मतदाताओं के बराबर है।

यदि ‘साधारण निवासी’ की कठोर व्याख्या की जाए, तो इन लोगों को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है, जिससे उनका वोट देने का अधिकार छिन सकता है।

 

क्या समस्याएँ हो सकती हैं?

यदि प्रवासी मजदूरों को मूल क्षेत्र की सूची से हटाया गया, तो वे मतदान से वंचित हो सकते हैं।

वे काम की जगह पर पंजीकरण कराना नहीं चाहते, न ही उसमें रुचि रखते हैं।

दोहरे पंजीकरण की आशंका को आधार सीडिंग से नियंत्रित किया जा सकता है — न कि वोट का अधिकार छीनकर।

आगे का रास्ता क्या हो सकता है?

RP Act या RER में प्रवासी मजदूरों की स्थिति को मान्यता देने हेतु संशोधन किया जा सकता है।

 

संभावित उपाय:

मूल स्थान में वोटर पंजीकरण को बनाए रखने की अनुमति।

रिमोट वोटिंग या मोबाइल वोटिंग जैसी नई तकनीकी सुविधाएं।

आधार लिंकिंग द्वारा दोहरे नामांकन से बचाव।

एक ऐसा संतुलित नीति ढांचा बनाना चाहिए जो:

  • लोकतांत्रिक भागीदारी को सुनिश्चित करे।
  • पारदर्शिता, निष्पक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित करे।

 

निष्कर्ष:

“साधारण निवासी” की परिभाषा को आधुनिक सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप ढालने की आवश्यकता है।

यह केवल कानून की व्याख्या नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा से जुड़ा विषय है — 

  • जो यह सुनिश्चित करता है कि हर नागरिक, 
  • चाहे वह कहीं भी हो, 
  • अपने वोट का अधिकार ना खोए।
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