द हिंदू: 7 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शैली महाजन बनाम एम.एस. भानुश्री बहल एवं अन्य मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसमें एक पत्नी को यह अनुमति दी गई है कि वह अपने पति की कथित प्रेमिका के विरुद्ध “Alienation of Affection (AoA)” यानी विवाह में दुर्भावनापूर्ण हस्तक्षेप के लिए नागरिक क्षतिपूर्ति (civil damages) की मांग कर सकती है।
यह भारत में पहला ऐसा मामला है जहाँ किसी अदालत ने ऐसे दावे को स्वीकार किया है।
इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या भारत में कोई तीसरा व्यक्ति विवाह टूटने के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
पृष्ठभूमि
“Alienation of Affection” की अवधारणा अंग्रेज़ी-अमेरिकी कॉमन लॉ से आई है।
इस सिद्धांत के तहत, कोई पति या पत्नी उस व्यक्ति पर मुकदमा कर सकता है जिसने जानबूझकर उसके वैवाहिक संबंध में हस्तक्षेप किया हो।
अमेरिका और ब्रिटेन में यह कानून अब पुराना और अप्रासंगिक मानते हुए समाप्त कर दिया गया है।
भारत में यह सिद्धांत कानून में न तो लिखा गया है और न ही प्रतिबंधित है, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि साबित हो जाए कि किसी तीसरे व्यक्ति ने जानबूझकर वैवाहिक संबंध तोड़े, तो यह एक नागरिक अपराध (civil wrong) माना जा सकता है।
प्रमुख मुद्दे
क्या किसी तीसरे व्यक्ति (प्रेमी/प्रेमिका) को विवाह तोड़ने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?
क्या यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के Joseph Shine (2018) फैसले के विरुद्ध है, जिसने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था?
क्या यह मामला फैमिली कोर्ट में सुना जाना चाहिए या सिविल कोर्ट में?
“जानबूझकर हस्तक्षेप” का कानूनी अर्थ क्या होगा?
क्या इससे निजता (privacy) का उल्लंघन या दुरुपयोग हो सकता है?
कानूनी पहलू
(क) “Alienation of Affection (AoA)” की अवधारणा
यह एक “Heart-Balm” टॉर्ट है — जिसमें वैवाहिक स्नेह या संगति खोने के लिए क्षतिपूर्ति मांगी जा सकती है।
इसे सिद्ध करने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं:
पति-पत्नी के बीच वास्तविक स्नेह था,
वह स्नेह समाप्त हुआ, और
किसी तीसरे व्यक्ति के दुर्भावनापूर्ण कार्य से वह स्नेह समाप्त हुआ।
(ख) भारत में कानूनी स्थिति
Joseph Shine बनाम भारत संघ (2018): सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, लेकिन इसे नागरिक अपराध (civil wrong) और तलाक का आधार माना।
Pinakin Mahipatray Rawal (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा स्नेह की दूरी जानबूझकर कराई गई हो तो यह एक ‘intentional tort’ है।”
Indra Sarma केस में यह भी कहा गया कि बच्चों को भी ऐसा दावा करने का अधिकार हो सकता है।
किंतु, शैली महाजन से पहले किसी भारतीय अदालत ने क्षतिपूर्ति नहीं दी थी।
(ग) अमेरिका की स्थिति
केवल कुछ अमेरिकी राज्यों (जैसे हवाई, मिसिसिपी, नॉर्थ कैरोलिना, साउथ डकोटा, यूटा आदि) में यह कानून अब भी लागू है।
अधिकांश राज्यों ने इसे निजता और आधुनिक मूल्यों के विरोधी मानकर समाप्त कर दिया है।
मुकदमे में सफलता के लिए सख्त प्रमाण आवश्यक हैं।
(घ) दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय
व्यभिचार अपराध नहीं रहा, परंतु इससे नागरिक जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती।
यह मामला सिविल कोर्ट में सुना जाएगा, क्योंकि यह पति-पत्नी के बीच नहीं बल्कि तीसरे व्यक्ति के विरुद्ध है।
अदालत ने एक तीन-स्तरीय परीक्षण निर्धारित किया:
(i) तीसरे व्यक्ति का जानबूझकर और गलत आचरण,
(ii) उस आचरण और विवाह टूटने के बीच सीधा संबंध,
(iii) पीड़ित जीवनसाथी द्वारा भुगता गया मापनीय नुकसान।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय Joseph Shine के विपरीत नहीं है, क्योंकि वहाँ फौजदारी (criminal) दायरे की बात थी, न कि नागरिक (civil)।
संवैधानिक और नैतिक पहलू:
यह प्रश्न उठता है कि कानून को निजता (privacy) की रक्षा करनी चाहिए या विवाह की पवित्रता की?
कुछ आलोचक कहते हैं कि यह निर्णय पितृसत्तात्मक सोच को पुनर्जीवित करता है।
समर्थक मानते हैं कि यह पीड़ित जीवनसाथी को न्याय पाने का अवसर देता है।
अतः, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैवाहिक अधिकारों के बीच संतुलन आवश्यक है।
निहितार्थ:
नई मिसाल: अब विवाह से जुड़े मामलों में नागरिक क्षतिपूर्ति के द्वार खुल सकते हैं।
न्यायिक विस्तार: टॉर्ट कानून का दायरा परिवारिक संबंधों तक बढ़ा।
निजता का खतरा: व्यक्तिगत जीवन में अत्यधिक हस्तक्षेप की संभावना।
लैंगिक समानता: अब दोनों पक्ष (पति या पत्नी) दावा कर सकते हैं।
दुरुपयोग की संभावना: यह व्यक्तिगत बदले का साधन भी बन सकता है।
निष्कर्ष
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