अफगानिस्तान मानवीय संकट

अफगानिस्तान मानवीय संकट

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चर्चा में क्यों? 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा अफगानिस्तान ट्रस्ट फंड में जमा (Frozen Afghanistan Trust Fund)  1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का उपयोग देश (अफगानिस्तान) के बिगड़ते मानवीय स्थिति और आर्थिक संकट को कम करने के लिये शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य एवं पारिवारिक कार्यक्रमों के लिये उपयोग करने को मंजूरी दी गई है।

इसका उद्देश्य कमज़ोर लोगों की रक्षा करना, मानव पूंजी और प्रमुख आर्थिक एवं  सामाजिक संस्थानों के संरक्षण में मदद करना और भविष्य में मानवीय सहायता की आवश्यकता को कम करना है।

इससे पहले अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता भारत में आयोजित की गई थी।

प्रमुख बिंदु 

अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति:

अफगानिस्तान में व्याप्त अस्थिरता की स्थिति न केवल इस क्षेत्र के लिये बल्कि पूरी दुनिया के लिये चिंताजनक है।

अफगानिस्तान दशकों से अस्थिर और असुरक्षित रहा है, लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने से पूरे क्षेत्र में एक नाज़ुक स्थिति बनी हुई है। 

अफगानिस्तान में वर्तमान स्थिति 1990 के दशक के अंत में उत्पन्न भू-राजनीतिक परिदृश्य के ही समान है।

वर्ष 1996 में तालिबान ने सत्ता पर कबज़ा कर लिया था तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय नए प्रतिमान के संभावित परिणामों को पूरी तरह से समझ नहीं पाया।

अंतर्राष्ट्रीय वित्त सहायता प्रदान करने वाले संगठनों द्वारा अफगानिस्तान को अपनी सहायता देना बंद कर दिया हैं। तालिबान सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र प्रतिकूल रूप से प्रभावित है।

युद्ध से तबाह देश एक अभूतपूर्व मानवीय संकट का सामना कर रहा है, जो एक और हिंसक संघर्ष में परिवर्तित हो सकता है।

ग्रामीण आबादी के अलावा शहरों में रहने वाले अफगानों के लिये भी गुज़ारा करना असंभव हो रहा है।

यदि तालिबान आर्थिक स्थिति में सुधार करने में असमर्थ रहता है, तो अफगानिस्तान को एक बड़ी तबाही का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे स्थिति में तालिबान का शासन काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है और देश में गृहयुद्ध छिड़ सकता है।

प्रायः आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहे देश में आतंकवादी समूहों के लिये काम करना आसान होता है और अफगानिस्तान इसका कोई अपवाद नहीं है।

अफगानिस्तान में मानवीय संकट के प्रभाव:

कई पश्चिमी देशों को लगता है कि अफगानिस्तान के कारण संपूर्ण विश्व पर एक तत्काल सुरक्षा खतरा पैदा हो गया है। तालिबान, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मान्यता एवं वित्तीय सहायता हासिल करना चाहता है, हिंसक तरीके अपनाने की तुलना में ‘राजनयिक दृष्टिकोण’ की ओर बढ़ रहा है लेकिन यह शांति लंबे समय तक बनी नहीं रह सकती है।

यदि अफगानिस्तान में मानवीय संकट बढ़ता है, तो तालिबान भी स्थिति का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं होगा, जैसा कि हिंसक ‘इस्लामिक स्टेट’ (IS) के मामले में देखने को मिला था।

अफगानिस्तान में एक संभावित हिंसक संघर्ष क्षेत्र के अन्य देशों में फैल सकता है।

यदि ऐसा होता है, तो क्षेत्रीय शक्तियाँ अफगानिस्तान की सीमाओं के भीतर हिंसा को बनाए रखने के लिये प्रॉक्सी समूहों का समर्थन करना शुरू कर देंगी लेकिन यह अफगान संघर्ष का केवल एक अल्पकालिक समाधान होगा।

तालिबान जितना अधिक सत्ता में रहेगा, उसके लिये क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना उतना ही कठिन होगा।

तालिबान के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों से संबंध हैं। सत्ता में उनकी वापसी ने क्षेत्र में जिहादी संगठनों को उत्साहित किया है।

जैसे-जैसे वे स्वयं को मज़बूत करेंगे, आतंकवाद के वित्तपोषकों और प्रायोजकों के साथ उनके सामरिक एवं रणनीतिक संबंध बढ़ेंगे जो अंततः इस क्षेत्र तथा उसके बाहर शांति एवं सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।

अफगानिस्तान के लिये क्या किया जाना चाहिये?

अफगानिस्तान में मानवीय संकट को केवल मानवीय सहायता से हल नहीं किया जा सकता है।

अफगानों को गरीबी से बाहर निकालने के लिये अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने की ज़रूरत है।

लेकिन अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ जुड़ने की ज़रूरत है।

यदि देश की मानवीय स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो आतंकवाद अफगानिस्तान की सीमाओं से अन्य देशों तक भी पहुँच जाएगा।

भारत के लिये निहितार्थ:

सामरिक चिंताएँ:

तालिबान के नियंत्रण का मतलब पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के लिये देश के परिणामों को प्रभावित करने हेतु एक बड़ा कारक साबित होगा, जो पिछले 20 वर्षों में भारतीय विकास और बुनियादी ढाँचा कार्यों हेतु बहुत छोटी-सी भूमिका का निर्वहन करता है।

कट्टरपंथ का खतरा:

भारत के पड़ोस में बढ़ता कट्टरपंथ और अखिल इस्लामी आतंकवादी समूहों से क्षेत्र को खतरा है।

आगे की राह

समावेशी सरकार: सभी जातीय समूहों की भागीदारी के साथ एक समावेशी सरकार के गठन के माध्यम से ही समस्या का समाधान हो सकता है।

रूसी समर्थन: हाल के वर्षों में रूस ने तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव में भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।

चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।

तालिबान से वार्ता: तालिबान से बातचीत करने से भारत निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिबद्धताओं के बदले विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी लेने के साथ-साथ पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता का पता लगा सकता है।

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