स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
मणिपुर में हिंसा और अपराध की हालिया घटनाओं में शून्य/ज़ीरो प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) की अवधारणा की सबसे अधिक चर्चा की गई है।
ज़ीरो FIR
परिचय :
ज़ीरो FIR का कानूनी आधार:
ज़ीरो FIR जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के बाद प्रस्तुत की गई थी, जिसे वर्ष 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद स्थापित किया गया था।
ज़ीरो FIR का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों द्वारा भी समर्थित है।
उदाहरण के लिये ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले (वर्ष 2014) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जब सूचना किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती है तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
सतविंदर कौर बनाम दिल्ली राज्य मामले (वर्ष 1999) में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि एक महिला को घटना स्थल के अलावा किसी भी स्थान से अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR):
परिचय:
किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा तैयार किया गया लिखित दस्तावेज़ होता है।
यह जाँच प्रक्रिया की दिशा में पहला कदम है।
यह पुलिस द्वारा जाँच तथा आगे की कार्रवाई को गति प्रदान करता है।
संज्ञेय अपराधों में FIR का पंजीकरण:
CrPC की धारा 154(1) पुलिस को संज्ञेय अपराधों के लिये FIR दर्ज करने की अनुमति देती है।
FIR दर्ज न करना:
न्यायाधीश जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिश के आधार पर IPC में धारा 166A जोड़ी गई।
संज्ञेय अपराध से संबंधित जानकारी दर्ज करने में विफल रहने वाले लोक सेवकों के लिये यह दंड का प्रावधान करता है।
सज़ा में दो वर्ष तक की कैद और जुर्माना शामिल है।
संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध
संज्ञेय अपराध:
गैर-संज्ञेय अपराध:
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