द हिंदू: 11 नवंबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों:
ब्राजील के बेलेम शहर में 10 से 21 नवम्बर 2025 तक COP30 जलवायु सम्मेलन आयोजित हो रहा है। अमेरिका के अनुपस्थित रहने और यूरोप की कमजोर प्रतिबद्धता के बीच, ब्रिक्स (BRICS) देश — विशेष रूप से ब्राजील — वैश्विक जलवायु नेतृत्व संभालने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। राष्ट्रपति लुइज़ इनेसियो लूला दा सिल्वा ब्राजील और व्यापक ग्लोबल साउथ (Global South) को जलवायु विकास के नए मॉडल के केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि:
COP सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर रूपरेखा संधि (UNFCCC) का हिस्सा है। विकसित देशों ने बार-बार अपनी जलवायु वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफलता दिखाई है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए सालाना 100 अरब डॉलर की सहायता का लक्ष्य पूरा नहीं किया गया। ब्रिक्स देश लंबे समय से न्यायपूर्ण वित्तपोषण और तकनीकी हस्तांतरण की मांग करते रहे हैं। जुलाई 2025 में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (रियो) में बकू-टू-बेलेम रोडमैप और 10 अरब डॉलर के ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फंड (TFFF) की घोषणा की गई थी।
मुख्य घटनाक्रम:
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने COP30 सम्मेलन की आलोचना करते हुए वैश्विक जलवायु सहयोग से दूरी बना ली है। यूरोपीय संघ ने 2040 तक 90% उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य तय किया है, परंतु विदेशी कार्बन क्रेडिट की अनुमति से इसका वास्तविक प्रभाव कम हो गया है। ब्राजील ने मेजबान देश के रूप में जलवायु कूटनीति को मजबूत किया है और TFFF फंड के माध्यम से अब तक 5.5 अरब डॉलर जुटाए हैं। भारत और चीन ने भी उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजकर ब्राजील की नेतृत्वकारी भूमिका का समर्थन किया है।
मुख्य मुद्दे:
मुख्य मुद्दों में शामिल हैं —
जलवायु वित्त की कमी, विकसित देशों की जिम्मेदारी से पीछे हटना, ग्लोबल साउथ द्वारा नेतृत्व वाले नए बहुपक्षीय मॉडल का उदय, और विकासशील देशों के लिए आर्थिक वृद्धि व पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना।
प्रभाव और महत्व:
COP30 सम्मेलन वैश्विक जलवायु नेतृत्व को ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ की ओर मोड़ सकता है। ब्राजील की कूटनीतिक भूमिका और भी मजबूत हो रही है, जिससे वह विकसित और विकासशील देशों के बीच एक सेतु बन सकता है। ब्रिक्स देशों की एकता जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नई परिभाषा तय कर सकती है। यह सम्मेलन पश्चिमी देशों की कथनी और करनी के अंतर को भी उजागर करता है।
आगामी चुनौतियाँ:
ब्रिक्स देशों के बीच नीतिगत समन्वय एक बड़ी चुनौती है क्योंकि सभी के राष्ट्रीय हित अलग-अलग हैं। जलवायु फंड के पारदर्शी उपयोग और घरेलू विकास दबावों से निपटना भी कठिन होगा। पश्चिमी देशों की ओर से उभरते हुए ग्लोबल साउथ नेतृत्व का विरोध भी सामने आ सकता है।
आगे की राह:
ब्रिक्स देशों को एकजुट रहकर समान जलवायु वित्त और तकनीकी साझेदारी की मांग जारी रखनी चाहिए। ट्रॉपिकल फॉरेस्ट्स फॉरएवर फंड को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। जलवायु बहुपक्षीय प्रणाली में भरोसा बहाल करना और वादों को वास्तविक कार्रवाई में बदलना COP30 की सफलता के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष:
अमेरिका की अनुपस्थिति और यूरोप की हिचकिचाहट के बीच बेलेम में COP30 वैश्विक जलवायु राजनीति की दिशा बदल सकता है। ब्रिक्स देश, विशेषकर ब्राजील, जलवायु शासन में नए नेता के रूप में उभर रहे हैं। भविष्य की जलवायु कार्रवाई अब ग्लोबल साउथ की आवाज़ में लिखी जा सकती है — जो अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी विश्व व्यवस्था की ओर संकेत करती है।