द हिन्दू: 10 सितंबर 2025 को प्रकाशित।
क्यों चर्चा में?
इंडोनेशिया हाल के वर्षों में अपने सबसे हिंसक प्रदर्शनों से हिल गया है। सरकारी मितव्ययिता नीतियों, सांसदों के विशेषाधिकारों और पुलिस वाहन से एक 21 वर्षीय डिलीवरी कर्मी की मौत ने जनता के गुस्से को भड़का दिया। अब तक कम से कम 7 लोगों की मौत हो चुकी है, हज़ारों गिरफ्तार हुए हैं और सार्वजनिक व निजी संपत्तियों को नुकसान पहुँचा है।
पृष्ठभूमि:
प्रदर्शन 25 अगस्त 2025 को जकार्ता में संसद भवन के बाहर छात्रों व श्रमिक यूनियनों द्वारा शुरू हुए।
मुख्य कारण: सांसदों को 50 लाख रुपिया (लगभग 3,000 डॉलर) का आवास भत्ता, जो राष्ट्रीय औसत न्यूनतम वेतन का लगभग 10 गुना है।
28 अगस्त को फुटेज सामने आया जिसमें अर्धसैनिक पुलिस का बख़्तरबंद वाहन डिलीवरी कर्मी अफ़्फ़ान कुर्नियावान को कुचल देता है। इससे देशभर में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।
मुख्य मुद्दे:
विशेषाधिकार प्राप्त अभिजात वर्ग (Elites) के प्रति गुस्सा
सांसदों के ऊँचे आवास व विदेशी यात्रा भत्ते।
गहरी आर्थिक विषमता – ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया वैश्विक स्तर पर छठे स्थान पर है। केवल चार सबसे अमीर नागरिकों की संपत्ति 10 करोड़ गरीबों की संपत्ति से अधिक है।
मितव्ययिता उपाय और बजट कटौती:
सरकार ने 306 ट्रिलियन रुपिया (18.8 अरब डॉलर) की कटौती की।
70% पब्लिक वर्क्स, 52% आर्थिक मामलों, 40% निवेश व 25% उच्च शिक्षा बजट घटाया गया।
स्थानीय करों में वृद्धि, जैसे – जावा के पाती नगर में 250% संपत्ति कर।
इन कटौतियों के खिलाफ छात्रों ने “डार्क इंडोनेशिया” आंदोलन चलाया।
पुलिस हिंसा
अफ़्फ़ान की मौत चिंगारी साबित हुई।
अब तक 3,000 से अधिक गिरफ्तारियाँ/हिरासत, सैकड़ों घायल, और 20 लोग लापता।
प्रदर्शनों का फैलाव:
प्रदर्शनकारियों ने वित्त मंत्री श्री मूल्यानी इंद्रावती (बाद में बर्खास्त) सहित अधिकारियों के घरों में आगज़नी व लूटपाट की।
सार्वजनिक व आर्थिक केंद्रों को नुकसान।
सरकार की प्रतिक्रिया:
राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो:
सांसदों के आवास व यात्रा भत्ते घटाने का आश्वासन।
अफ़्फ़ान की मौत की जाँच का आदेश।
चेतावनी दी कि लूटपाट और दंगे = आतंकवाद व राजद्रोह माने जाएँगे।
पुलिस व सेना को “कड़े कदम” उठाने के निर्देश।
किए गए कदम:
एक पुलिस अधिकारी को बर्खास्त।
मंत्रिमंडल फेरबदल: 5 मंत्री, जिनमें इंद्रावती भी शामिल, बर्खास्त।
छात्र संगठनों से वार्ता की शुरुआत।
प्रभाव:
सामाजिक:
मध्यम वर्ग की स्थिति बिगड़ना और “भ्रष्ट अभिजात वर्ग” के प्रति अविश्वास।
छात्र आंदोलनों में बढ़ोतरी।
राजनीतिक:
केवल एक साल में राष्ट्रपति प्रबोवो की वैधता पर संकट।
अस्थिरता का खतरा अगर असमानता और मितव्ययिता पर कार्रवाई नहीं हुई।
आर्थिक:
फिच रेटिंग्स ने चेतावनी दी कि अशांति से इंडोनेशिया की साख (Credit Profile) पर असर पड़ेगा।
निवेशकों का विश्वास डगमगाया।
वैश्विक महत्व:
इंडोनेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
लंबे समय तक अस्थिरता से क्षेत्रीय व्यापार, निवेश और स्थिरता प्रभावित होगी।
यह संकट दिखाता है कि आर्थिक असमानता किस प्रकार दुनिया भर में जनांदोलनों को जन्म देती है (थाईलैंड, हांगकांग, चिली जैसे उदाहरण)।
आगे का रास्ता:
सरकार को मितव्ययिता बनाम जनकल्याण के बीच संतुलन बैठाना होगा।
जनता का भरोसा बहाल करने के लिए आवश्यक कदम:
सारांश:
इंडोनेशिया के विरोध केवल एक मौत का परिणाम नहीं हैं, बल्कि वे गहरी आर्थिक असमानता, मितव्ययिता और राजनीतिक अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों के खिलाफ दबे गुस्से का विस्फोट हैं। यदि सरकार ने इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं सुलझाया, तो यह अशांति न केवल प्रबोवो सरकार बल्कि देश की आर्थिक स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा बनेगी।