द हिंदू: 29 अगस्त 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों?
अमेरिका ने कम-मूल्य वाले सामानों के ड्यूटी-फ्री आयात (de minimis exemption) को 29 अगस्त 2025 से समाप्त करने का निर्णय लिया है।
पहले प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 800 डॉलर तक के सामान बिना शुल्क के आयात किए जा सकते थे।
अब सभी ऐसे आयात — वस्त्र, खिलौने, कॉस्मेटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक एक्सेसरीज़ आदि — पर मूल देश के आधार पर शुल्क लगेगा।
इससे वैश्विक डाक व कूरियर सेवाओं में व्यवधान आएगा और ई-कॉमर्स सप्लाई चेन प्रभावित होगी।
पृष्ठभूमि: De Minimis नियम क्या है?
उद्गम: 1930 टैरिफ एक्ट (धारा 321) — शुरुआत में पर्यटकों को स्मृति चिन्ह लाने की छूट मिली।
1990 के दशक: इसे व्यापार सुविधा उपकरण बनाया गया ताकि व्यवसायों और उपभोक्ताओं की लागत घटे।
2016: सीमा 200 डॉलर से बढ़ाकर 800 डॉलर कर दी गई।
इससे आयात की मात्रा 2015 के 134 मिलियन से बढ़कर 2024 में 1.36 बिलियन हो गई।
सबसे बड़े लाभार्थी: चीनी ई-कॉमर्स कंपनियां जैसे Shein, Temu और छोटे मूल्य के निर्यातक।
अमेरिका के इस कदम के कारण:
व्यापार घाटा कम करना: चीन जैसे देशों से होने वाले घाटे को रोकना।
चीन को लक्ष्य करना: 50% से अधिक de minimis आयात चीन से आते थे।
नकली व बौद्धिक संपदा चोरी रोकना: नकली या पायरेटेड सामान पर रोक।
राजस्व हानि: अधिक आयात के कारण सरकार को भारी टैरिफ हानि।
घरेलू उद्योग की सुरक्षा: अमेरिकी कंपनियां सस्ते आयात से पिछड़ रही थीं।
आर्थिक व व्यावसायिक प्रभाव:
वैश्विक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म: चीनी रिटेलर्स जैसे Shein और Temu को बड़ा झटका।
लॉजिस्टिक्स व कूरियर: कस्टम चेक बढ़ेंगे → डिलीवरी में देरी।
उपभोक्ता: अमेरिका में सस्ते आयातित सामान (कपड़े, खिलौने, एक्सेसरीज़) महंगे होंगे।
छोटे व्यवसाय: लागत बढ़ेगी, मुनाफा घटेगा।
कल्याण हानि: NBER के अनुसार 11–13 बिलियन डॉलर का कल्याण ह्रास होगा, खासकर गरीब वर्ग प्रभावित होगा।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ:
यूरोपीय संघ (EU) की नीति:
€150 ड्यूटी-फ्री सीमा समाप्त।
हैंडलिंग शुल्क (€2 व्यक्तियों पर, €0.5 गोदामों पर)।
चीनी ई-कॉमर्स से अतिरिक्त डेटा की मांग ताकि अवैध सामान रोका जा सके।
2023 में 4.6 बिलियन कम-मूल्य के पैकेज आए, जिनमें 90% चीन से थे।
यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (2019): अमेरिका ने सस्ते अंतरराष्ट्रीय पोस्टल दरों में सुधार करवाया।
वैश्विक प्रवृत्ति: अमेरिका और EU दोनों सस्ते चीनी आयात पर रोक कड़े कर रहे हैं।
वैश्विक व्यापार पर असर:
WTO सिद्धांतों का ह्रास: देश बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को दरकिनार कर रहे हैं।
व्यापार का विखंडन: शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाएं अपने नियम लागू कर रही हैं।
संरक्षणवाद का बढ़ना: घरेलू उद्योग को प्राथमिकता देना।
बहुपक्षवाद पर दबाव: WTO जैसी संस्थाओं की भूमिका कमजोर पड़ रही है।
मुख्य निष्कर्ष: