द हिंदू: 31 मार्च 2025 को प्रकाशित:
क्यों चर्चा में है?
सूर्य का अवलोकन क्यों ज़रूरी है?
प्रभाव: बिजली ग्रिड फेल होना, टेलीकम्युनिकेशन बाधित होना, ओजोन परत को नुकसान, उपग्रहों को क्षति।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने Aditya-L1 मिशन को इसी उद्देश्य से लॉन्च किया था।
प्रोब का विशेष हीट शील्ड-
इसका 8 फुट चौड़ा, 4.5 इंच मोटा कार्बन-कार्बन मिश्रित हीट शील्ड 1,370°C तक तापमान सह सकता है।
हीट शील्ड को जॉन्स हॉपकिन्स एप्लाइड फिजिक्स लैब द्वारा विकसित किया गया है।
शील्ड के पीछे तापमान सिर्फ 29°C रहता है, जिससे उपकरण सामान्य रूप से काम कर सकते हैं।
इसमें दो प्रकार के सौर पैनल हैं—एक शील्ड के पीछे और दूसरा विशेष तरल शीतलन प्रणाली के साथ सूर्य की ओर।
प्रोब को सूर्य के पास भेजने की चुनौती
मुख्य चुनौती सूर्य की गर्मी नहीं बल्कि इसका गुरुत्वाकर्षण था।
प्रोब को धीमा करने के लिए बृहस्पति (Jupiter) की बजाय पृथ्वी और शुक्र के गुरुत्व बल का उपयोग किया गया।
इससे यह धीरे-धीरे सर्पिल गति से सूर्य के करीब पहुंचता गया।
प्रमुख वैज्ञानिक उपकरण-
FIELDS: सौर वातावरण के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र मापता है।
ISoIS: सौर तूफानों को उत्पन्न करने वाले ऊर्जावान कणों का अध्ययन करता है।
SWEAP: सौर वायु में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और आयन की विशेषताओं को रिकॉर्ड करता है।
WISPR: कोरोना के भीतर से इमेज कैप्चर करता है।
Faraday Cup: सौर वायु में आयनों और इलेक्ट्रॉनों की घनत्व मापता है (मोलिब्डेनम मिश्र धातु से बना, 2,349°C तक सहनशील)।
मुख्य खोजें:
सूर्य के पास धूल-मुक्त क्षेत्र पाए गए, जबकि पहले सोचा गया था कि अंतरिक्ष में धूल सर्वव्यापी है।
प्रोब ने मैग्नेटिक स्विचबैक्स खोजे, जहाँ सौर वायु का चुंबकीय क्षेत्र अचानक उल्टा मुड़ जाता है।
वैज्ञानिकों के लिए एक खुला प्रश्न था: सूर्य की सतह का तापमान 6,000°C क्यों है जबकि कोरोना 200 गुना गर्म है?
प्रोब के डेटा से संकेत मिलता है कि Alfvén waves (सौर प्लाज़्मा में उत्पन्न होने वाली दैत्य तरंगें) इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
पार्कर सोलर प्रोब के प्रयास से सौर तूफानों, कोरोना की ऊष्मा, और सौर वायु की गति को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
यह पृथ्वी और अंतरिक्ष में तकनीकी बुनियादी ढांचे को सौर गतिविधियों से बचाने में सहायक हो सकता है।
अगली नज़दीकी उड़ान 19 जून 2025 को होगी।