श्रीलंका के तमिल सैन्यीकरण का विरोध क्यों कर रहे हैं

श्रीलंका के तमिल सैन्यीकरण का विरोध क्यों कर रहे हैं

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द हिंदू: 22 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

खबर में क्यों ?

18 अगस्त 2025 को श्रीलंका की प्रमुख तमिल पार्टी इलंकई तमिल अरसु काच्ची (ITAK) ने तमिल बहुल उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में प्रतीकात्मक हड़ताल (hartal) का आह्वान किया।

यह विरोध युद्ध-प्रभावित क्षेत्रों में जारी सैन्यीकरण (militarisation) के खिलाफ था, जबकि गृहयुद्ध खत्म हुए 16 वर्ष हो चुके हैं।

सीधा कारण था 32 वर्षीय कपिलराज की हत्या, जिसे उत्तरी प्रांत मुल्लैतिवु जिले में सैनिकों द्वारा मारने का आरोप है।

 

पृष्ठभूमि:

श्रीलंकाई गृहयुद्ध (1983–2009) राज्य बलों और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के बीच हुआ, जिसमें हजारों नागरिक मारे गए, विशेषकर मुल्लैतिवु में।

युद्ध के बाद से उत्तर और पूर्वी प्रांतों में भारी सैन्य उपस्थिति बनी हुई है।

सेना ने भूमि और आर्थिक गतिविधियों पर कब्ज़ा किया हुआ है, जिससे तमिल समाज लगातार सैन्यीकरण हटाने की मांग करता रहा है।

 

हड़ताल का तात्कालिक कारण:

कपिलराज की मौत ने तमिलों में गुस्सा भड़का दिया।

ITAK ने राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके को पत्र लिखकर मांगा:

स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच,

दोषियों की जवाबदेही,

उत्तर और पूर्व से सैन्य उपस्थिति में कमी।

सरकार ने जांच का आश्वासन दिया और 3 सैनिकों को गिरफ्तार किया।

 

वर्तमान स्थिति:

उत्तर और पूर्वी प्रांतों में सेना की उपस्थिति अत्यधिक है।

सेना होटल, रेस्त्रां, खेत और व्यवसाय चलाती है, जिससे स्थानीय लोग प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।

मुल्लैतिवु जिले में चेकपॉइंट और गश्त आम हैं।

NGO रिपोर्ट (ACPR, PEARL) ने बताया कि वहां लगभग 60,000 सैनिक ~1.3 लाख नागरिकों पर तैनात थे।

सेना ने कब्ज़ाई गई जमीन का 91% लौटाने का दावा किया है, लेकिन पूरी तरह स्पष्ट नहीं।

 

सरकार का दृष्टिकोण:

राष्ट्रपति दिसानायके ने घोषणा की कि 2030 तक सेना का आकार घटाया जाएगा।

2024 का रक्षा बजट: 442 अरब श्रीलंकाई रुपये (~1.5 अरब डॉलर), जो शिक्षा से अधिक है।

GDP का लगभग 2% रक्षा पर खर्च, जबकि कोई बाहरी खतरा नहीं।

सरकार का कहना है कि भूमि लौटाई जाएगी और प्रक्रिया तेज़ की जा रही है।

 

मानवाधिकार चिंता:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (UNHRC) की रिपोर्ट (2024):

श्रीलंका ने अब तक सुरक्षा क्षेत्र सुधार (security sector reform) नहीं किया है।

उत्तर और पूर्व में सैन्य और खुफिया तंत्र आज भी मजबूत है।

सेना का कानून व्यवस्था, व्यवसाय और नागरिक जीवन में दखल लोकतंत्र के खिलाफ है।

तमिल सांसदों ने आरोप लगाया कि सेना युवाओं को नशे का आदी बना रही है और मादक पदार्थ व्यापार में शामिल है।

 

प्रमुख मुद्दे:

सैन्यीकरण बनाम नागरिक स्वतंत्रता – तमिल समाज युद्ध के बाद भी कड़ी निगरानी और चेकपॉइंट्स में फंसा है।

आर्थिक असर – सेना का व्यवसायिक नियंत्रण स्थानीय रोजगार और पुनर्निर्माण पर भारी पड़ता है।

राजनीतिक अलगाव – तमिलों को लगता है कि सेना का इस्तेमाल जातीय दबाव के लिए हो रहा है।

जवाबदेही की कमी – युद्ध अपराधों और मौजूदा उल्लंघनों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं।

 

व्यापक प्रभाव:

घरेलू राजनीति – हड़ताल तमिलों की नाराजगी और एकता दिखाती है, लेकिन दलगत मतभेद भी बने हुए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर – UN और मानवाधिकार समूह श्रीलंका पर दबाव डाल सकते हैं।

शांति और मेल-मिलाप – भारी सैन्य उपस्थिति सुलह प्रक्रिया को कमजोर करती है।

आर्थिक बोझ – विशाल सेना पर खर्च शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास से धन खींच लेता है।

 

संक्षेप में:

तमिलों की यह हड़ताल दिखाती है कि श्रीलंका में सैन्यीकरण अभी भी उत्तर और पूर्व की जिंदगी को नियंत्रित करता है। सरकार सुधार की बात करती है, लेकिन भारी सैन्य उपस्थिति, भूमि कब्ज़ा और मानवाधिकार उल्लंघन आज भी तमिल समाज की सबसे बड़ी चिंता बने हुए हैं।

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