द हिंदू: 15 अगस्त 2025 को प्रकाशित।
खबर में क्यों?
7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले और गाज़ा पर इज़राइल के जारी युद्ध ने फिर से दुनिया का ध्यान इस मुद्दे पर खींचा।
दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) की बहस फिर से तेज हुई, लेकिन शांति प्रयास ठप पड़े हैं।
इज़राइल पर नरसंहार और भूख से मौतें कराने के आरोप लगे हैं, जबकि कई देश फिलिस्तीन की संप्रभुता को मान्यता दे रहे हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
1947 से पहले: फिलिस्तीन ब्रिटिश शासन (Mandate) के अधीन था; यहूदियों और अरबों के बीच तनाव बढ़ रहा था।
1947: संयुक्त राष्ट्र (UN) ने फिलिस्तीन को तीन हिस्सों में बाँटने का प्रस्ताव रखा — यहूदी राज्य, अरब राज्य और यरुशलम को अंतरराष्ट्रीय प्रशासन। यहूदियों ने स्वीकार किया, अरब देशों ने अस्वीकार किया।
1948: इज़राइल ने स्वतंत्रता की घोषणा की → पहला अरब-इज़राइल युद्ध हुआ। इज़राइल ने UN योजना से अधिक भूभाग पर कब्ज़ा किया। करीब 7.5 लाख फिलिस्तीनी अपने घरों से बेदखल हुए (नकबा/विनाश)।
1967 (छः-दिवसीय युद्ध): इज़राइल ने वेस्ट बैंक, गाज़ा, पूर्वी यरुशलम, सिनाई और गोलन हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया।
मुख्य मुद्दे:
सीमा (Borders): फिलिस्तीन 1967 की सीमाओं (वेस्ट बैंक, गाज़ा, पूर्वी यरुशलम) पर राज्य चाहता है, इज़राइल अस्वीकार करता है।
यरुशलम: यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों की पवित्र नगरी → दोनों इसे राजधानी मानते हैं।
शरणार्थी (Refugees): लाखों फिलिस्तीनी “वापसी का अधिकार” मांगते हैं, इज़राइल को जनसंख्या संतुलन बिगड़ने का डर है।
यहूदी बस्तियाँ (Settlements): वेस्ट बैंक में लगातार इज़राइली बसावट से फिलिस्तीन राज्य की संभावना घटती जा रही है।
नेतृत्व में विभाजन: वेस्ट बैंक (फतह) और गाज़ा (हमास) के बीच गुटबाज़ी।
सुरक्षा चिंताएँ: इज़राइल हमास व अन्य संगठनों के आतंकवादी हमलों का हवाला देकर रियायतें देने से इंकार करता है।
शांति प्रयास और विफलताएँ:
1978 कैंप डेविड समझौता: मिस्र-इज़राइल शांति, पर फिलिस्तीन प्रश्न पीछे छूट गया।
1988: यासिर अराफ़ात ने फिलिस्तीन राज्य की घोषणा की; 100 से अधिक देशों ने मान्यता दी।
1993 ओस्लो समझौता: परस्पर मान्यता; सीमित स्वायत्तता मिली, लेकिन बाद में प्रक्रिया रुक गई।
2000 कैंप डेविड वार्ता: यरुशलम और शरणार्थियों के मुद्दे पर असफल।
2005 गाज़ा से वापसी: इज़राइल ने सेना हटाई, लेकिन बाद में नाकाबंदी लगा दी।
2007 के बाद: फतह-हमास विभाजन से फिलिस्तीन कमजोर हुआ।
वर्तमान स्थिति:
इज़राइल की दक्षिणपंथी सरकार, खासकर बेंजामिन नेतन्याहू, खुले तौर पर दो-राष्ट्र समाधान का विरोध करते हैं।
गाज़ा युद्ध से मानवीय संकट गहराया और नफ़रत बढ़ी।
फिलिस्तीन आज भी राज्यविहीन है — वेस्ट बैंक आंशिक कब्ज़े में, गाज़ा नाकाबंदी में, पूर्वी यरुशलम इज़राइल में विलय।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभाजन: कुछ देश इज़राइल का समर्थन, तो कई देश फिलिस्तीन की मान्यता की ओर बढ़ रहे हैं।
प्रभाव:
भविष्य की राह:
दो-राष्ट्र समाधान (1967 सीमा): व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन, पर इज़राइल का विरोध; संभावना घटती जा रही है।
एक-राष्ट्र समाधान: यहूदियों और अरबों को बराबरी के अधिकार; पर इज़राइल यहूदी बहुसंख्या खोने से डरता है।
यथास्थिति: लगातार कब्ज़ा, हिंसा और मानवीय संकट; अस्थिर और अस्थायी।
7 अक्टूबर का असर: फिलिस्तीन मुद्दा फिर से वैश्विक कूटनीति के केंद्र में आया, लेकिन इज़राइल का रवैया और कठोर हुआ।
निष्कर्ष:
फिलिस्तीन राज्य के न होने के पीछे ऐतिहासिक विस्थापन, असफल शांति प्रक्रियाएँ, इज़राइली कब्ज़ा, यहूदी बस्तियाँ, नेतृत्व का बिखराव और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति मुख्य कारण हैं। जब तक सीमा, यरुशलम, शरणार्थी और बस्तियों के मुद्दे हल नहीं होते, तब तक पश्चिम एशिया में स्थायी शांति संभव नहीं।