द हिंदू: 15 जुलाई 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों है?
भारत में कॉरपोरेट निवेश लगातार कमजोर बना हुआ है, भले ही कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि हो रही हो और सरकार ने विभिन्न प्रयास किए हों। 30 जून को MoSPI (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय) द्वारा जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के आंकड़ों में सिर्फ 1.2% की वृद्धि दर्शाई गई है, जो पिछले 9 महीनों में सबसे कम है। यह निवेश के ठहराव और औद्योगिक गतिविधि की सुस्ती को दर्शाता है।
पृष्ठभूमि:
कोविड-19 महामारी के बाद से निजी निवेश में कोई सार्थक सुधार नहीं हुआ है।
सरकार द्वारा किए गए प्रमुख प्रयास:
मुख्य आर्थिक बहस व अवधारणाएं:
यह विषय मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों रोजा लक्ज़मबर्ग और तुगान बरानोवस्की के निवेश पर विचार-विमर्श से जुड़ा है।
कालकी (Kalecki) के अनुसार: निवेश → लाभ को उत्पन्न करता है, लेकिन लाभ → निवेश को नहीं।
लक्ज़मबर्ग ने कहा: निवेश तब होगा जब मांग हो; अकेले लाभ पर्याप्त नहीं।
बरानोवस्की ने दावा किया था कि निवेश खुद को बनाए रख सकता है यदि पूंजीपति वर्ग पर्याप्त रूप से संयोजित हो — लेकिन यह वास्तविकता से दूर है।
मुख्य समस्याएं
कमजोर मांग का माहौल:
Capex (सरकारी पूंजी व्यय) की सीमाएं:
मौद्रिक नीति की सीमाएं:
प्रभाव:
समाधान / आगे का रास्ता:
कुल मांग (Aggregate Demand) को बढ़ावा देना:
घरेलू मूल्य श्रृंखलाओं पर ध्यान:
Capex का आयात घटक कम कर के स्थानीय निर्माण को बढ़ावा देना।
निवेश में समन्वय:
सरकार और निजी क्षेत्र के बीच संयुक्त निवेश योजनाएं बनाना, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, बुनियादी ढांचे में।
निवेशकों का विश्वास बहाल करना:
भूमि, श्रम सुधार, लाइसेंसिंग प्रक्रिया में सुधार, और नीति स्थिरता से जोखिम कम करना।
निष्कर्ष:
कॉरपोरेट निवेश की कमी का मूल कारण कमजोर मांग और भरोसे की कमी है, न कि लाभ या वित्त की उपलब्धता। बाहरी प्रेरणा (Exogenous Stimulus) के बिना निजी निवेश पुनरुद्धार की अगुवाई नहीं कर सकता। सरकार को मांग बढ़ाने वाले उपायों को प्राथमिकता देनी होगी — तभी निवेश का चक्र तेज हो सकेगा।