IUCN ने पश्चिमी घाट को लाल झंडी क्यों दिखाई है?

IUCN ने पश्चिमी घाट को लाल झंडी क्यों दिखाई है?

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द हिंदू: 27 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों? 

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने अपनी हाल ही में जारी “वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक-4 रिपोर्ट (World Heritage Outlook 4 Report, 2025)” में भारत के पश्चिमी घाट, असम के मानस राष्ट्रीय उद्यान, और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान को “महत्त्वपूर्ण चिंता” (Significant Concern) की श्रेणी में रखा है।

यह श्रेणी यह दर्शाती है कि इन प्राकृतिक स्थलों की संरक्षण स्थिति तेजी से बिगड़ रही है और इन पर गंभीर पर्यावरणीय व मानवीय खतरे मंडरा रहे हैं।

 

पृष्ठभूमि:

IUCN की World Heritage Outlook रिपोर्ट विश्व के प्राकृतिक और मिश्रित विश्व धरोहर स्थलों की संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन करती है।

वर्ष 2014 से अब तक चार आकलन चक्र पूरे किए जा चुके हैं — 2014, 2017, 2020, और 2025।

रिपोर्ट में स्थलों को चार श्रेणियों में बाँटा गया है:

अच्छा (Good)

कुछ चिंताओं के साथ अच्छा (Good with some concerns)

महत्त्वपूर्ण चिंता (Significant concern)

 

गंभीर स्थिति (Critical)

रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में जहाँ 63% स्थलों की स्थिति सकारात्मक थी, वहीं 2025 में यह घटकर 57% रह गई है — जो पहली बार उल्लेखनीय गिरावट दर्शाती है।

 

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

IUCN ने दक्षिण एशिया में आवास और प्रजातियों के नुकसान के चार प्रमुख कारण बताए हैं:

जलवायु परिवर्तन 

पर्यटन गतिविधियाँ 

आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ 

सड़क और अन्य बुनियादी ढाँचा विकास 

 

अन्य खतरों में शामिल हैं:

वनाग्नि 

अवैध कटाई 

अतिक्रमण

अवैध शिकार व कचरा प्रबंधन की कमी

सड़कों और रेल मार्गों से जानवरों की मौतें

 

पश्चिमी घाट को रेड-फ्लैग क्यों किया गया:

पश्चिमी घाट दुनिया के आठ सबसे महत्त्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक हैं और हिमालय से भी अधिक प्राचीन हैं।

यहाँ लगभग 325 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त प्रजातियाँ (फ्लोरा, फौना, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मछलियाँ) पाई जाती हैं।

 

मुख्य खतरे:

हाइड्रोपावर परियोजनाएँ:

जैसे — ₹5,843 करोड़ की सिलहाल्ला पंप्ड स्टोरेज हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना (Nilgiris), जो नदियों पर बाँध बनाकर पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाती है।

 

अनियंत्रित पर्यटन:

बढ़ता कचरा, जंगली जानवरों द्वारा उसका सेवन, और मानव-पशु संघर्ष को बढ़ावा।

 

खेती और वृक्षारोपण:

प्राकृतिक जंगलों को चाय, कॉफी और रबर की बागानों में बदला जा रहा है।

 

जलवायु परिवर्तन:

तापमान वृद्धि के कारण कई प्रजातियाँ निचले इलाकों से ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जा रही हैं, जैसे नीलगिरी फ्लायकैचर और ब्लैक एंड ऑरेंज फ्लायकैचर।

 

आक्रामक प्रजातियाँ:

यूकेलिप्टस और अकेशिया जैसे विदेशी पेड़ स्थानीय वनस्पतियों को प्रतिस्थापित कर रहे हैं।

 

सुंदरबन की स्थिति:

समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से लवणता (Salinity) बढ़ रही है।

भारी धातुओं का प्रदूषण और असंतुलित संसाधन दोहन से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है।

तूफान और चक्रवातों की आवृत्ति से मैंग्रोव जैव विविधता घट रही है।

बाघों और अन्य वन्यजीवों के आवास को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

 

भारत के अन्य मूल्यांकित स्थल:

“अच्छा” (Good) श्रेणी में —

कांचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (सिक्किम)

“कुछ चिंताओं के साथ अच्छा” (Good with some concerns) श्रेणी में —

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क

काज़ीरंगा नेशनल पार्क

केवोलादेव नेशनल पार्क

नंदा देवी व वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क

 

वैश्विक तुलना:

चीन के सात स्थल “सर्वश्रेष्ठ संरक्षित और प्रबंधित” घोषित किए गए हैं, जैसे —

माउंट हुआंगशान

चेंगजियांग फॉसिल साइट

बदाइन जरन डेजर्ट (रेत और झीलों का क्षेत्र)

 

प्रभाव और निहितार्थ:

यह गिरावट दर्शाती है कि प्रबंधन की कमजोरी और मानवीय दबाव संरक्षण को प्रभावित कर रहे हैं।

आवास विखंडन (Habitat Fragmentation) और प्रजातियों का पलायन बढ़ सकता है।

भारत की इको-सेंसिटिव जोन नीति और बफर एरिया संरक्षण योजनाओं को कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता है।

प्राकृतिक वनों की पुनर्बहाली (Restoration) और जलवायु अनुकूल प्रबंधन अत्यावश्यक है।

 

आगे की राह / आशा की किरण:

IUCN का कहना है कि यह रिपोर्ट केवल चेतावनी नहीं, बल्कि कार्रवाई के लिए मार्गदर्शिका (Guide for Action) है।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework) का लक्ष्य 2030 तक जैव विविधता हानि को रोकना है।

यूनेस्को विश्व धरोहर संधि (UNESCO World Heritage Convention) प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण के बीच पुल का कार्य कर रही है।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी, सतत पर्यटन, और वैज्ञानिक पुनर्स्थापन (Scientific Restoration) को बढ़ावा देना आवश्यक है।

 

निष्कर्ष:

  • IUCN द्वारा पश्चिमी घाट और अन्य भारतीय स्थलों को “महत्त्वपूर्ण चिंता” की श्रेणी में डालना एक चेतावनी संकेत (Wake-up Call) है।
  • यदि शीघ्र और सामूहिक कदम नहीं उठाए गए तो भारत अपने कुछ सबसे मूल्यवान प्राकृतिक धरोहरों को खो सकता है।
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