समुद्र के अन्दर केबल क्यों महत्वपूर्ण हैं?

समुद्र के अन्दर केबल क्यों महत्वपूर्ण हैं?

Static GK   /   समुद्र के अन्दर केबल क्यों महत्वपूर्ण हैं?

Change Language English Hindi

द हिंदू: 4 अप्रैल 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों?

भारत में हाल ही में नई अंडरसी (समुद्र के नीचे) केबल प्रणालियाँ शुरू हुई हैं जैसे कि Airtel की 2Africa Pearls (Meta द्वारा समर्थित) और SEA-ME-WE-6, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय बैंडविड्थ क्षमता में भारी वृद्धि हो रही है। इस संदर्भ में, भारत के सबसी केबल नेटवर्क की आवश्यकता, स्थिति और जोखिम चर्चा में हैं।

 

समुद्र के नीचे की केबलें क्या हैं?

ये केबलें समुद्र की सतह के नीचे बिछाई जाती हैं और 90% वैश्विक डेटा को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती हैं।

ये इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) और टेलीकॉम ऑपरेटरों को विश्व स्तर पर जोड़ती हैं।

ये केबलें फाइबर ऑप्टिक से बनी होती हैं और समुद्र की कठोर स्थितियों को सहने के लिए विशेष रूप से पैडेड होती हैं।

 

ये वैश्विक इंटरनेट को कैसे जोड़ती हैं?

एक देश के नेटवर्क को दूसरे देशों से जोड़ती हैं।

केबलें "लैंडिंग पॉइंट्स" पर ज़मीन को छूती हैं और फिर "लैंडिंग स्टेशन" तक पहुंचती हैं जहाँ से इंटरनेट का वितरण होता है।

 

वर्तमान में दुनिया भर में लगभग 600 से अधिक सबसी केबलें हैं जो अंतरराष्ट्रीय संचार को संभव बनाती हैं।

 

भारत की समुद्र-तल केबल प्रणाली क्या है?

भारत में कुल 17 अंतरराष्ट्रीय केबल सिस्टम हैं जो मुख्यतः मुंबई और चेन्नई में लैंड करते हैं।

 

2 घरेलू केबल सिस्टम:

चेन्नई–अंडमान और निकोबार (CANI)

कोच्चि–लक्षद्वीप परियोजना

भारत की वैश्विक हिस्सेदारी:

लैंडिंग स्टेशनों में ~1%

सबसी केबल सिस्टम में ~3%

अधिकांश ट्रैफिक मुंबई के वर्सोवा क्षेत्र (6 किमी क्षेत्र) से होकर आता है।

 

भारत में इन केबलों को बिछाने की चुनौतियाँ:

ब्यूरोक्रेसी की अधिकता – एक केबल को लैंड करने के लिए 51 से अधिक अनुमतियाँ लेनी पड़ती हैं।

भौतिक क्षति का खतरा – फिशिंग ट्रॉलर्स और प्राकृतिक आपदाओं से केबलों को नुकसान होता है।

कैबल मरम्मत के लिए भारत में जहाज़ या डिपो नहीं हैं – विदेशों पर निर्भरता है।

समय और लागत – परियोजनाएं पूरा करने में कई महीने या साल लग जाते हैं।

 

भारत को असुरक्षित क्यों माना जाता है?

केबल लैंडिंग कुछ गिने-चुने स्थानों तक सीमित हैं।

यदि Red Sea जैसे क्षेत्रों में कोई कट होता है तो 25% तक भारत का इंटरनेट प्रभावित हो सकता है।

भारत की वैश्विक केबल नेटवर्क में हिस्सेदारी कम होने के कारण वैकल्पिक मार्गों की कमी है।

अधिकतर केबल पुराने व्यापार मार्गों के अनुसार बिछाए गए हैं, जो उन्हें अधिक जोखिम में डालता है।

 

भारत इस स्थिति को कैसे सुधार सकता है?

अनुमतियाँ सरल बनाएँ – सिंगल-विंडो क्लियरेंस प्रणाली अपनाई जाए।

स्थानीय निवेश बढ़ाएँ – खुद के केबल रिपेयर शिप्स और स्टोरेज डिपो बनाएँ।

नई लैंडिंग साइट्स विकसित करें – जैसे गुजरात, ओडिशा, विशाखापत्तनम आदि।

सुरक्षा उपाय – मछली पकड़ने वाली नौकाओं और लंगरों से केबलों की रक्षा।

निजी निवेश को प्रोत्साहन – जैसे Meta और अन्य निजी कंपनियों की भागीदारी।

नई रूट मैपिंग – जोखिम भरे क्षेत्रों से दूर नई केबल रूट तैयार करना।

 

सारांश-

भारत की इंटरनेट संरचना का बड़ा हिस्सा समुद्र के नीचे की केबलों पर निर्भर है। नई परियोजनाओं के बावजूद, अनुज्ञाओं की जटिलता, क्षति के खतरे और सीमित लैंडिंग स्थानों की वजह से भारत अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है। नीतिगत सुधारों, घरेलू निवेश और सुरक्षा उपायों से भारत की वैश्विक इंटरनेट कनेक्टिविटी को सुरक्षित और सुदृढ़ बनाया जा सकता है। 

Other Post's
  • विश्व विरासत नामांकन 2022-2023

    Read More
  • फिनफ्लुएंसर

    Read More
  • निवेशकों के लिए क्रिप्टो निकासी पर प्रतिबंध क्यों लगाया जा रहा है?

    Read More
  • सुप्रीम कोर्ट ने जजों पर अधिकार संबंधी लोकपाल के आदेश पर रोक लगाई:

    Read More
  • फ़िलिस्तीन राज्य क्यों नहीं है?

    Read More