आर्कटिक में तनाव इतना क्यों है?

आर्कटिक में तनाव इतना क्यों है?

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द हिंदू: 1 अप्रैल 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

आंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ते तनाव को लेकर चिंता व्यक्त की है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह क्षेत्र संघर्ष का केंद्र बन सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे इस क्षेत्र में नए रणनीतिक अवसर खुल रहे हैं।

 

आर्कटिक क्षेत्र का महत्व क्यों बढ़ रहा है?

प्राकृतिक संसाधन: आर्कटिक क्षेत्र में अब तक अप्रयुक्त जीवाश्म ईंधन, दुर्लभ खनिज तत्व, फॉस्फेट और तांबा मौजूद हैं।

मछली पकड़ने के अवसर: बर्फ पिघलने से नए मछली पकड़ने के क्षेत्र उपलब्ध हो रहे हैं।

नौवहन मार्ग: जैसे-जैसे बर्फ पिघल रही है, व्यापार के लिए नए समुद्री मार्ग खुल रहे हैं, जो लंबी दूरी की परिवहन लागत को कम कर सकते हैं।

सैन्य गतिविधियां: इस क्षेत्र में विभिन्न देशों द्वारा सैन्य बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है।

 

आर्कटिक क्षेत्र पर किसका नियंत्रण है?

आर्कटिक क्षेत्र में आठ देश प्रमुख भूमिका निभाते हैं:

कनाडा

डेनमार्क (ग्रीनलैंड के माध्यम से)

फिनलैंड

आइसलैंड

नॉर्वे

रूस

स्वीडन

अमेरिका

ये देश आर्कटिक काउंसिल के सदस्य हैं, जो पर्यावरण सुरक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और स्थानीय जनजातियों के हितों की रक्षा करने का कार्य करता है।

 

उत्तर-पश्चिम मार्ग को लेकर विवाद-

उत्तर-पश्चिम मार्ग (Northwest Passage), जो कनाडा के आर्कटिक द्वीपों से होकर गुजरता है, विवाद का विषय बना हुआ है:

कनाडा का दावा है कि यह जलमार्ग उसके आंतरिक जल क्षेत्र का हिस्सा है।

अमेरिका और अन्य देश इसे अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग मानते हैं, जहाँ सभी देशों को नेविगेशन की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

 

रूस की भूमिका-

बर्फ तोड़ने वाले जहाज: रूस के पास आर्कटिक में नेविगेशन के लिए दुनिया का सबसे बड़ा आइसब्रेकर बेड़ा है, जिसमें परमाणु-संचालित जहाज भी शामिल हैं।

सैन्य उपस्थिति: रूस ने आर्कटिक क्षेत्र में अपने सैन्य ठिकानों को मजबूत किया है और इस क्षेत्र में कई युद्ध अभ्यास किए हैं।

उत्तर ध्रुव पर ध्वज फहराना: 2007 में रूस ने एक पनडुब्बी भेजकर आर्कटिक की समुद्री सतह पर अपना झंडा गाड़ दिया, जो इस क्षेत्र पर अपनी दावेदारी का प्रतीक था।

 

चीन की भूमिका-

नियर-आर्कटिक स्टेट: चीन ने 2018 में खुद को "नियर-आर्कटिक स्टेट" घोषित किया और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

पोलर सिल्क रोड: चीन रूस के आर्कटिक बंदरगाहों के माध्यम से अपने व्यापारिक मार्ग विकसित करना चाहता है, लेकिन रूस इस पर सतर्क रुख अपना रहा है।

 

भविष्य की संभावनाएं-

नए व्यापार मार्गों का खुलना: नॉर्थईस्ट पैसेज (रूस के आर्कटिक तट के पास) चीन और यूरोप के बीच व्यापार मार्ग को छोटा कर सकता है।

नाटो की भूमिका: फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने के बाद, इस क्षेत्र में नाटो की सैन्य उपस्थिति बढ़ी है।

पर्यावरणीय खतरे: जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर खतरा मंडरा रहा है।

 

निष्कर्ष-

आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक गतिविधियाँ इसे एक नया वैश्विक संघर्ष क्षेत्र बना सकती हैं। इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों और रणनीतिक मार्गों के कारण, रूस, अमेरिका, कनाडा, चीन और अन्य प्रमुख शक्तियां यहाँ अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कार्यरत हैं। अगर इन मुद्दों का समाधान शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीके से नहीं किया गया, तो यह भविष्य में एक बड़े संघर्ष का कारण बन सकता है।

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