द हिंदू: 1 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों?
भारतीय प्रसारकों (Zee, Star, Sony, Viacom आदि) को नेपाल और बांग्लादेश के वितरकों से भुगतान नहीं मिल रहा है। 2023 से अब तक इन दोनों देशों से ₹350 करोड़ (नेपाल से ₹100 करोड़ और बाकी बांग्लादेश से) बकाया है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन और नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता ने समस्या और बढ़ा दी है।
पृष्ठभूमि:
नेपाल और बांग्लादेश में भारतीय मनोरंजन चैनल (खासतौर पर हिंदी और बांग्ला) बेहद लोकप्रिय हैं।
इन देशों में चैनलों का एक “क्लीन फीड” प्रसारित होता है, जिसमें भारतीय विज्ञापन हटा दिए जाते हैं।
इस तरह की सेवाओं के लिए वितरक भारतीय कंपनियों को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करते हैं।
दोनों देशों में विदेशी प्रसारण के लिए सख्त नियम हैं, जिससे लागत और जटिलता बढ़ जाती है।
मुख्य मुद्दे:
बकाया राशि
नेपाल और बांग्लादेश के वितरकों पर ₹350 करोड़ से अधिक बकाया है।
नेपाल से करीब ₹100 करोड़, जबकि अधिकांश बकाया बांग्लादेश से है।
राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट:
बांग्लादेश: शेख हसीना की विदाई के बाद नई सरकार ने दवाओं और बिजली को प्राथमिकता दी, मीडिया भुगतान पीछे रह गया।
नेपाल: 2023 में अचानक नए प्रसारण नियम लागू कर दिए गए और हाल ही में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे ने अनिश्चितता और बढ़ा दी।
विदेशी मुद्रा की स्वीकृति
वितरकों के पास पैसा होते हुए भी सरकार/केंद्रीय बैंक की अनुमति न मिलने से भुगतान रुका हुआ है।
पायरेसी (चोरी) का खतरा:
यदि भारतीय प्रसारक अपना फीड रोकते हैं, तो स्थानीय वितरक आसानी से भारतीय सैटेलाइट रिसीवर से सिग्नल चोरी कर सकते हैं।
नेपाल में पहले भी केबल ऑपरेटरों ने भारतीय फीड से लोगो हटाकर अपने लोगो लगा दिए थे।
कमजोर प्रवर्तन तंत्र
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यस्थता (arbitration) का प्रावधान है, लेकिन नेपाल व बांग्लादेश की न्यायिक प्रणाली पर भारतीय कंपनियों का भरोसा नहीं है।
भारत के दूतावासों का दबाव भी सीमित असर डाल रहा है।
प्रभाव:
वित्तीय नुकसान: भारतीय प्रसारकों को ₹350+ करोड़ का घाटा हो रहा है।
बाज़ार का जोखिम: नेपाल और बांग्लादेश में वैध प्रसारण खतरे में, पायरेसी बढ़ सकती है।
कूटनीतिक चुनौती: भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की सीमाएँ उजागर हुई हैं।
उद्योग पर असर: दक्षिण एशिया के छोटे देशों में भारतीय कंपनियों का विस्तार प्रभावित हो सकता है।
अन्य क्षेत्रों से तुलना:
अदाणी पावर (बांग्लादेश को बिजली) और एयरटेल (नेपाल को इंटरनेट) के पास अधिक दबाव बनाने की क्षमता है, क्योंकि सेवा बंद होते ही संकट खड़ा हो जाता है।
प्रसारकों के पास ऐसा दबाव बनाने का विकल्प नहीं है, क्योंकि मनोरंजन आसानी से चोरी या विकल्पों से बदला जा सकता है।
भविष्य की संभावनाएँ:
समाधान राजनीतिक स्थिरता और सरकारों की प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।
एंटी-पायरेसी उपाय और सरकार-से-सरकार वार्ता जरूरी होगी।
भारतीय प्रसारक भविष्य में ऐसे सौदों के लिए वित्तीय गारंटी की मांग कर सकते हैं।
एक वाक्य में सार:
नेपाल और बांग्लादेश से भारतीय प्रसारकों का ₹350 करोड़ से अधिक बकाया राजनीतिक अस्थिरता, विदेशी मुद्रा स्वीकृति में देरी और नियामकीय बाधाओं के कारण अटका है, जबकि पायरेसी का खतरा उन्हें चैनल बंद करने से रोकता है।