द हिंदू: 7 जुलाई 2025 को प्रकाशित:
क्यों है यह खबरों में?
भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) शुरू किया है। यह दो दशकों बाद देशभर में प्रस्तावित पहले विशेष पुनरीक्षण की शुरुआत है, जिसकी शुरुआत बिहार से की जा रही है।
पृष्ठभूमि:
अंतिम SIR (2003) में बिहार में किया गया था।
संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार है।
मतदाता बनने की पात्रता (जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 - RP Act):
18 वर्ष या उससे अधिक उम्र,
भारत का नागरिक,
संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य निवासी होना आवश्यक है।
मुख्य बिंदु और मुद्दे:
1- सबसे पहले बिहार क्यों?
बिहार में विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में प्रस्तावित हैं।
पिछली बार भी 2003 में विशेष पुनरीक्षण बिहार से शुरू हुआ था।
इसे देशव्यापी SIR के लिए पायलट प्रोजेक्ट की तरह देखा जा रहा है।
2- इस बार क्या नया है?
घर-घर सत्यापन के बजाय, हर मतदाता को स्वयं "नामांकन फॉर्म" भरकर बूथ स्तर अधिकारी (BLO) को देना होगा।
दस्तावेजों की आवश्यकता:
2003 से पहले पंजीकृत मतदाताओं को केवल 2003 की सूची का अंश देना होगा।
2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं को स्वयं और माता-पिता के जन्म स्थान/तिथि के दस्तावेज देने होंगे।
3- समर्थकों की दलीलें:
दोहरे नाम और अपात्र प्रविष्टियों को हटाने के लिए आवश्यक कदम।
इस बार तकनीकी सहायता से प्रक्रिया तेज और सुगम।
1 लाख BLOs, 4 लाख स्वयंसेवक, और 1.5 लाख BLA तैनात किए गए हैं।
आधार कार्ड को छोड़ना सही निर्णय क्योंकि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
4- विरोधियों की दलीलें:
8 करोड़ से अधिक मतदाताओं से फॉर्म और दस्तावेज लेना जटिल और समय लेने वाला कार्य है।
3 करोड़ से अधिक लोग आवश्यक दस्तावेज देने में असमर्थ हो सकते हैं।
प्रवासी मजदूर और छात्र समय पर फॉर्म नहीं भर पाएंगे।
आधार को अस्वीकार करना उन गरीबों के लिए कठिनाई पैदा करेगा जिनके पास अन्य कोई प्रमाण नहीं।
5- प्रवासी श्रमिकों का मुद्दा:
EC के वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार, जो व्यक्ति लंबे समय से बाहर हैं, उन्हें उस क्षेत्र की मतदाता सूची से हटाया जा सकता है।
लेकिन RP Act के अनुसार, "अस्थायी रूप से अनुपस्थित" व्यक्ति सामान्य निवासी बने रहते हैं।
कई प्रवासी अपने गृह क्षेत्र में ही मतदान करते हैं और ऐसा करने का अधिकार उन्हें बना रहना चाहिए।
EC ने जनवरी 2023 में प्रवासियों के लिए रिमोट वोटिंग सुविधा देने की मंशा जताई थी।
कानूनी बनाम व्यवहारिक संघर्ष:
कानून के अनुसार केवल नागरिकता और निवास प्रमाणित दस्तावेज मान्य हैं।
लेकिन फॉर्म 6 (1960 नियमों के तहत) में आधार को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया गया है।
EC के SIR दिशानिर्देशों में आधार के अतिरिक्त दस्तावेज की अनिवार्यता की गई है, जो मौजूदा नियमों से अलग है।
आगे का रास्ता क्या हो सकता है?
1- समावेशन और बहिष्करण के बीच संतुलन
पात्र नागरिकों को बहिष्कृत करना उतना ही खतरनाक है जितना कि धोखाधड़ी करने वालों को शामिल करना।
दोनों ही दिशाओं में त्रुटियाँ लोकतंत्र को कमजोर कर सकती हैं।
2- दस्तावेज़ीकरण में लचीलापन
चुनाव आयोग को दावों/आपत्तियों के चरण के दौरान आधार-आधारित सत्यापन पर विचार करना चाहिए।
वंचित वर्ग के लिए वैकल्पिक तंत्र प्रदान करें।
3- प्रवासियों के लिए सुरक्षा उपाय
प्रवासियों को केवल दूर रहने के कारण मतदाता सूची से नहीं हटाया जाना चाहिए।
NRI के लिए निर्धारित मिसाल का पालन करें, जो विदेश में रहते हुए भी भारतीय निर्वाचन क्षेत्रों से मतदान कर सकते हैं।
4- तकनीकी सत्यापन
आधार सीडिंग का उपयोग डुप्लिकेट को खत्म करने के लिए करें, जैसा कि चुनाव आयोग के मार्च 2025 के परामर्श में चर्चा की गई है।
निष्कर्ष:
SIR लोकतंत्र में विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जरूरी कदम है। लेकिन इसे संवेदनशीलता, तकनीकी दक्षता और व्यावहारिक समझ के साथ लागू किया जाना चाहिए, ताकि एक भी पात्र नागरिक मतदान अधिकार से वंचित न रह जाए।