केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में नामांकन का फैसला कौन करता है?

केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में नामांकन का फैसला कौन करता है?

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द हिंदू: 19 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

ख़बरों में क्यों है?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय से कहा कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) स्वतंत्र रूप से विधानसभा में पाँच सदस्यों को नामित कर सकते हैं। इसने फिर से बहस छेड़ दी है कि कौन नामांकन प्रक्रिया को नियंत्रित करे — निर्वाचित मंत्रिपरिषद या उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार।

 

संवैधानिक स्थिति:

संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों में नामित सदस्य होते हैं।

राज्यसभा: राष्ट्रपति 12 विशिष्ट व्यक्तियों को नामित करते हैं (केंद्र सरकार की सलाह पर)।

विधान परिषद (6 राज्य): लगभग एक-छठा सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित (राज्य सरकार की सलाह पर)।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन सीटें: वर्ष 2020 में समाप्त कर दी गईं।

 

केंद्र शासित प्रदेशों का ढाँचा:

दिल्ली विधानसभा (1991 अधिनियम): 70 निर्वाचित विधायक; कोई नामित सदस्य नहीं।

पुडुचेरी विधानसभा (1963 अधिनियम): 30 निर्वाचित विधायक + अधिकतम 3 नामित सदस्य (केंद्र सरकार द्वारा)।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा (2019 पुनर्गठन अधिनियम): 90 निर्वाचित सीटें + 5 नामित (2 महिलाएँ, 2 कश्मीरी प्रवासी, 1 पीओके से विस्थापित व्यक्ति)।

 

न्यायिक दृष्टांत:

पुडुचेरी मामला (2018, मद्रास उच्च न्यायालय): केंद्र सरकार को यूटी सरकार की सलाह के बिना विधायकों को नामित करने की शक्ति को बरकरार रखा। स्पष्टता के लिए कानूनी संशोधन सुझाए, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उन सिफारिशों को खारिज कर दिया।

दिल्ली सेवाएँ मामला (2023, सर्वोच्च न्यायालय): “जवाबदेही की तिहरी शृंखला (Triple Chain of Accountability)” का विचार प्रस्तुत किया:

नौकरशाह → मंत्री → विधानमंडल → जनता।

निर्णय दिया कि एलजी को मंत्रिपरिषद की सलाह माननी होगी, सिवाय आरक्षित विषयों के।

यद्यपि मामला सेवाओं से संबंधित था, तर्क विधायकों के नामांकन पर भी लागू होता है।

 

मुख्य मुद्दे:

लोकतंत्र बनाम केंद्रीय नियंत्रण:

यदि एल.जी. बिना UT सरकार की सलाह के नामांकन करते हैं → निर्वाचित सरकार को कमजोर करता है।

यदि मंत्रिपरिषद की सलाह पर करते हैं → लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप है।

 

राजनीतिक स्थिरता:

पुडुचेरी (30 सीटें) या जम्मू-कश्मीर (90 सीटें) जैसी छोटी विधानसभाओं में, कुछ नामित विधायक ही बहुमत-अल्पमत का संतुलन बदल सकते हैं।

 

संघीय संतुलन:

यूटी पूर्ण राज्य नहीं होते, लेकिन उनकी विधानसभाएँ लोगों को शासन में आवाज़ देने के लिए बनी हैं।

अत्यधिक केंद्रीकरण संघीय भावना को कमजोर करता है।

 

जम्मू-कश्मीर का विशेष मामला:

2019 तक विशेष स्वायत्तता वाला राज्य था।

राज्य का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, साथ ही राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया गया।

इसके संवेदनशील इतिहास को देखते हुए, नामांकन प्रक्रिया में निर्वाचित सरकार की भूमिका का सम्मान होना चाहिए, ताकि अलगाव की भावना न पनपे।

 

क्या किया जाना चाहिए?

  • स्पष्ट विधायी प्रावधान आवश्यक हैं — संसद को नामांकन प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए।
  • लोकतांत्रिक जवाबदेही बनाए रखने के लिए, एलजी को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना चाहिए।
  • इससे केंद्र सरकार विधानसभा की शक्ति संतुलन को राजनीतिक लाभ के लिए प्रभावित करने से रोकी जा सकेगी।
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