द हिंदू: 30 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
क्यों चर्चा में है:
भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ने वाली है क्योंकि देश कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित डेटा सेंटर्स, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), 5G नेटवर्क और ग्रीन हाइड्रोजन कार्यक्रमों का तेजी से विस्तार कर रहा है।
इस बढ़ती ऊर्जा मांग को स्वच्छ और निरंतर रूप से पूरा करने के लिए भारत अब स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) की दिशा में कदम बढ़ा रहा है — यह अगली पीढ़ी की छोटे आकार की परमाणु रिएक्टर तकनीक है जो AI और डिजिटल अवसंरचना को विश्वसनीय, निरंतर और कार्बन-मुक्त ऊर्जा प्रदान कर सकती है।
पृष्ठभूमि:
पिछले दो दशकों से भारत की बिजली की मांग लगभग 5% की दर से स्थिर गति से बढ़ रही थी।
लेकिन अब डिजिटल परिवर्तन की लहर, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और डेटा प्रोसेसिंग के बढ़ते उपयोग ने बिजली उपभोग की दर को कई गुना बढ़ा दिया है।
वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर्स पहले से ही कुल बिजली खपत का लगभग 3% उपयोग कर रहे हैं और यह हिस्सा 2030 तक दोगुना हो सकता है।
भारत में डिजिटल इंडिया अभियान, डेटा स्थानीयकरण कानून, और इंडिया AI मिशन ने घरेलू डेटा भंडारण और कंप्यूटिंग क्षमता की मांग को बढ़ा दिया है, जिससे सरकार और निजी क्षेत्र बड़े डेटा सेंटर्स और नई ऊर्जा परियोजनाओं की योजना बना रहे हैं।
विकास के प्रमुख कारण:
AI डेटा सेंटर्स, 5G और IoT नेटवर्क का प्रसार, और मशीन लर्निंग जैसी उच्च कम्प्यूटिंग तकनीकें बिजली की अभूतपूर्व मांग पैदा कर रही हैं।
इलेक्ट्रिक वाहन और ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन भी आधारभूत बिजली मांग को और बढ़ा रहे हैं।
AI डेटा सेंटर्स विशेष रूप से ऊर्जा-गहन होते हैं — एक GPU आधारित सर्वर रैक 80–150 किलोवाट बिजली की खपत करता है, जबकि पारंपरिक सर्वर केवल 15–20 किलोवाट लेते हैं।
यही कारण है कि AI आज वैश्विक बिजली मांग वृद्धि का सबसे बड़ा चालक बन गया है।
वैश्विक परिदृश्य:
संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.) इस समय दुनिया की लगभग आधी डेटा सेंटर क्षमता रखता है, जिनमें टेक्सास, वर्जीनिया, फीनिक्स और ओहायो प्रमुख केंद्र हैं।
चीन में AI और डेटा प्रोसेसिंग की वजह से बिजली मांग में हर साल लगभग 25% की वृद्धि हो रही है, और 2025 तक यह 400 अरब किलोवाट-घंटे तक पहुंच जाएगी।
भारत अब नए डेटा सेंटर हब के रूप में उभर रहा है।
गूगल ने विशाखापट्टनम और रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जामनगर को अपने बड़े AI डेटा सेंटर्स के लिए चुना है।
देशी कंपनियां जैसे योटा, अडाणीकनेक्स, सिफ़ी और कंट्रोलएस मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में अपने डेटा सेंटर विस्तार की दिशा में कार्यरत हैं।
सरकार का “इंडिया AI मिशन” और निजी निवेश मिलकर भारत को AI अवसंरचना के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं।
ऊर्जा आवश्यकता और चुनौतियाँ:
वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर्स की बिजली खपत 2024 में 460 टेरावाट-घंटे से बढ़कर 2030 तक 1,000 टेरावाट-घंटे से अधिक हो सकती है।
केवल नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) इतनी निरंतर आपूर्ति नहीं दे सकती क्योंकि यह मौसम पर निर्भर रहती है।
इसलिए उद्योग अब स्थिर और कम-कार्बन वाले स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं, जिनमें न्यूक्लियर ऊर्जा और स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) प्रमुख हैं।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) क्या हैं?
SMRs छोटे आकार के परमाणु रिएक्टर होते हैं जो फैक्टरी में तैयार किए जाते हैं और साइट पर स्थापित किए जा सकते हैं। इनकी क्षमता 1 मेगावाट से लेकर 300 मेगावाट या उससे अधिक तक हो सकती है।
ये रिएक्टर आकार में छोटे, लागत में सस्ते और सुरक्षा की दृष्टि से अधिक भरोसेमंद माने जाते हैं।
इनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इन्हें सीधे खपत केंद्रों जैसे AI डेटा सेंटर्स के पास स्थापित किया जा सकता है, जिससे ट्रांसमिशन लाइनों की आवश्यकता कम होती है।
इनमें पैसिव सेफ्टी सिस्टम होता है — जो आपात स्थिति में बिना मानवीय हस्तक्षेप के स्वचालित रूप से बंद हो जाते हैं।
ये 24 घंटे लगातार बिजली आपूर्ति कर सकते हैं और नवीकरणीय ऊर्जा के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।
भारत का SMR लक्ष्य:
भारत सरकार ने 2025 के बजट में न्यूक्लियर एनर्जी मिशन की घोषणा की है, जिसमें ₹20,000 करोड़ (लगभग $2.4 अरब) का प्रावधान किया गया है।
लक्ष्य है 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता प्राप्त करना और 2033 तक कम से कम 5 SMRs को चालू करना।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) 200 मेगावाट के प्रेसराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर (BSMR-200) और 55 मेगावाट क्षमता वाले छोटे रिएक्टर पर काम कर रहा है।
सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति दायित्व अधिनियम, 2010 में संशोधन की तैयारी में है ताकि निजी और विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके।
इससे भारत लगभग $26 अरब का निवेश आकर्षित कर सकेगा और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अपने कानूनों को आधुनिक बना सकेगा।
सहयोग और अवसर:
भारत तकनीकी सहयोग के लिए अमेरिका की होल्टेक इंटरनेशनल जैसी कंपनियों के साथ समझौते की दिशा में काम कर रहा है।
राज्य सरकारें संभावित परियोजना स्थलों की पहचान में मदद कर सकती हैं — जैसे पुराने कोयला संयंत्र स्थल या ग्रीन हाइड्रोजन हब।
वे भूमि अधिग्रहण, नियामक स्वीकृति, अधिकारियों का प्रशिक्षण और कोयला क्षेत्र के श्रमिकों का पुन: कौशल (reskilling) कराने में भी भूमिका निभा सकती हैं।
AI डेटा सेंटर कंपनियों, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों और SMR निर्माताओं के बीच सहयोग भारत को एक स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र की ओर ले जा सकता है।
सुरक्षा और नियमन:
SMRs में उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ होती हैं जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे संवहन (convection) पर आधारित होती हैं।
इनकी ईंधन मात्रा कम होती है और इनकी डिजाइन ऐसी होती है कि दुर्घटना की संभावना अत्यंत कम होती है।
हालांकि, वर्तमान परमाणु नियामक ढांचा बड़े रिएक्टरों के लिए बना है, इसलिए SMRs के लिए नए तकनीक-निरपेक्ष और जोखिम-आधारित नियमों की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का ADVANCE Act (2024), कनाडा का Vendor Design Review और ब्रिटेन का Regulatory Sandbox Model इस दिशा में उदाहरण हैं।
इनका लक्ष्य 2026 तक नियामक ढांचा तैयार करना और 2030 तक व्यावसायिक उपयोग शुरू करना है।
चिंताएँ और चुनौतियाँ:
SMRs को फैक्टरी से निर्माण स्थल तक पहुँचाने के दौरान, खासकर यदि उनमें ईंधन पहले से भरा हो, तो सुरक्षा और विकिरण जोखिम बढ़ सकते हैं।
इसके लिए विशेष परिवहन नियमों और दायित्व निर्धारण की आवश्यकता है।
SMRs में प्रयुक्त नई ईंधन सामग्री (जैसे HALEU) या वैकल्पिक शीतलक नई प्रकार की रेडियोधर्मी अपशिष्ट पैदा कर सकते हैं, जिनके सुरक्षित भंडारण की नई योजनाएँ जरूरी होंगी।
प्रारंभिक लागत अधिक होना और नियामक स्वीकृति की धीमी प्रक्रिया भी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
साथ ही, परमाणु ऊर्जा के प्रति जनता की पारंपरिक आशंका (जैसे फुकुशिमा जैसी दुर्घटनाओं की याद) अभी भी बनी हुई है।
भारत के लिए रणनीतिक अवसर:
यदि भारत अपने SMR कार्यक्रम को सही दिशा में लागू करता है, तो वह अपनी ऊर्जा आत्मनिर्भरता को मजबूत कर सकता है, कार्बन उत्सर्जन को घटा सकता है, और अपनी एआई अर्थव्यवस्था को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
इसके अलावा, भारत SMR तकनीक का निर्माता और निर्यातक बनकर वैश्विक परमाणु बाजार में भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
यह भारत को डिजिटल और परमाणु दोनों क्षेत्रों में नेतृत्व की स्थिति प्रदान कर सकता है।
आगे की राह:
भारत को शीघ्र ही अपने परमाणु कानूनों में सुधार कर निजी निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।
2030 तक SMR प्रायोगिक (demonstration) परियोजनाएँ शुरू की जानी चाहिए।
नवीकरणीय ऊर्जा और SMRs का एकीकृत मॉडल अपनाकर 24×7 स्वच्छ बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है।
परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन और परिवहन सुरक्षा पर राष्ट्रीय नीति तैयार करना भी आवश्यक है।
साथ ही, इस क्षेत्र के लिए कुशल मानव संसाधन तैयार करने हेतु प्रशिक्षण और पुनःकौशल कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।
निष्कर्ष: