गूगल के एंटीट्रस्ट मामले का क्या असर होगा?

गूगल के एंटीट्रस्ट मामले का क्या असर होगा?

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द हिंदू: 12 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों?

8 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अल्फाबेट इंक. (गूगल की मूल कंपनी), भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और अलायंस डिजिटल इंडिया फाउंडेशन (ADIF) की अपीलें स्वीकार कीं, जो राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के उस फैसले से जुड़ी हैं जिसमें गूगल पर एंड्रॉयड इकोसिस्टम में प्रभुत्व के दुरुपयोग के आरोप लगे थे।

मामले की विस्तृत सुनवाई नवंबर 2025 में होगी।

 

पृष्ठभूमि:

2020 में, CCI ने जांच शुरू की जब डेवलपर्स और उद्योग संगठनों ने शिकायत की कि गूगल ने एंड्रॉयड के बाजार में अपनी मजबूत स्थिति का दुरुपयोग करके:

इन-ऐप खरीद के लिए गूगल प्ले बिलिंग सिस्टम (GPBS) अनिवार्य किया, जिससे 15–30% कमीशन लिया जाता था।

अपने ऐप (जैसे यूट्यूब) को GPBS से मुक्त रखा, जिससे उन्हें लागत का लाभ मिला।

स्मार्टफोन निर्माताओं को गूगल के ऐप (सर्च, क्रोम, यूट्यूब) पहले से इंस्टॉल करने की शर्त रखी, ताकि उन्हें प्ले स्टोर तक पहुंच मिल सके।

2022 में, CCI ने गूगल पर ₹936.44 करोड़ का जुर्माना लगाया और GPBS को अलग करने, पारदर्शिता बढ़ाने और बिलिंग डेटा का अपने फायदे के लिए उपयोग बंद करने के निर्देश दिए।

 

गूगल का पक्ष:

एंड्रॉयड ओपन-सोर्स है; निर्माता गूगल की मालिकाना सेवाओं के बिना भी इसका उपयोग कर सकते हैं।

पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप उपयोग में सुविधा देते हैं, प्रतिस्पर्धा नहीं रोकते।

GPBS सुरक्षित लेनदेन, धोखाधड़ी रोकथाम और डेवलपर्स को सहायता सुनिश्चित करता है।

कमीशन दरें वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं; पेटीएम, फोनपे जैसे भारतीय ऐप सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं।

अपने ऐप को छूट देना व्यापार मॉडल के अंतर के कारण है, न कि पक्षपात के कारण।

 

NCLAT का फैसला (मार्च व मई 2025):

स्वीकृत: अनिवार्य बिलिंग और ऐप बंडलिंग को प्रभुत्व के दुरुपयोग के रूप में माना।

जुर्माना घटाया: ₹936.44 करोड़ से घटाकर ₹216.69 करोड़ किया (उचित माना गया)।

निर्देशों में बदलाव: प्रारंभ में कुछ CCI आदेश हटाए, बाद में दो मुख्य आदेश बहाल किए—

  • बिलिंग डेटा में पारदर्शिता।
  • बिलिंग डेटा का अपने ऐप को लाभ पहुंचाने में उपयोग न करना।

परिणाम से कोई भी पक्ष पूरी तरह संतुष्ट नहीं—गूगल ने पूरी तरह उलटने की मांग की, CCI ने मूल दंड बहाल करने की, और ADIF ने फैसले को नरम बताया।

 

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दे:

डिजिटल प्लेटफॉर्म में “प्रभुत्व के दुरुपयोग” की परिभाषा और सीमा।

उपभोक्ता विकल्प बनाम प्लेटफॉर्म की एकरूपता का संतुलन।

वैश्विक तकनीकी कंपनियों पर भारतीय नियामक हस्तक्षेप की सीमा।

 

संभावित प्रभाव:

उपभोक्ता-

CCI के पक्ष में फैसला: अधिक भुगतान विकल्प, कम कीमतें, बेहतर गोपनीयता, निष्पक्ष रैंकिंग।

गूगल के पक्ष में फैसला: एंड्रॉयड का एक समान अनुभव, कम संगतता समस्याएं।

 

स्मार्टफोन निर्माता-

CCI के पक्ष में: प्रतिस्पर्धी ऐप पहले से इंस्टॉल करने और एंड्रॉयड में बदलाव की अधिक स्वतंत्रता।

गूगल के पक्ष में: मौजूदा लाइसेंसिंग मॉडल बरकरार।

 

स्टार्टअप और डेवलपर्स-

CCI के पक्ष में: GPBS पर निर्भरता कम, स्थानीय ऐप की दृश्यता बढ़ेगी।

गूगल के पक्ष में: स्थिर ढांचा, लेकिन सीमित बाजार प्रभाव।

 

गूगल-

प्रतिकूल निर्णय वैश्विक मिसाल बन सकता है और एंड्रॉयड के बिज़नेस मॉडल में बदलाव मजबूर कर सकता है।

 

आगे का रास्ता:

  • सुप्रीम कोर्ट प्रतिस्पर्धा कानून की कानूनी परिभाषाओं और प्लेटफॉर्म बाजार की आर्थिक वास्तविकताओं दोनों की जांच करेगा।
  • CCI की जीत: भारत, यूरोपीय संघ के बाहर बिग टेक नियमन में अग्रणी बन सकता है।
  • गूगल की जीत: एंड्रॉयड के बाजार नियंत्रण में यथास्थिति बनी रहेगी।
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