कीलाडी विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

कीलाडी विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

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द हिंदू: 27 जून 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों?

केलड़ी खुदाई से जुड़ा विवाद जून 2025 में एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने प्रसिद्ध पुरातत्वविद् के. अमरनाथ रामकृष्ण से उनके पहले दो चरणों (2014–2016) की खुदाई रिपोर्ट को संशोधित करने को कहा। यह रिपोर्ट लगभग 982 पृष्ठों की थी। रामकृष्ण ने रिपोर्ट को फिर से लिखने से इनकार कर दिया और कहा कि उनकी रिपोर्ट वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है। इसके तुरंत बाद उन्हें दिल्ली से ग्रेटर नोएडा स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे तमिलनाडु की राजनीति में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई क्योंकि केलड़ी स्थल वहां सांस्कृतिक अस्मिता और गौरव का प्रतीक बन चुका है।

 

पृष्ठभूमि:

तमिलनाडु के वैगई नदी के किनारे स्थित केलड़ी गाँव अब भारत के प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में गिना जाने लगा है। 2014 में ASI के अंतर्गत के. अमरनाथ रामकृष्ण ने यहां खुदाई कार्य शुरू किया था। इस दौरान दीवारों, जल निकासी प्रणालियों और मिट्टी के बर्तनों सहित 7,500 से अधिक पुरावशेष मिले। कार्बन डेटिंग के अनुसार ये अवशेष 2,160 साल पुराने हैं, जो संगम युग (ईसा पूर्व दूसरी सदी) से संबंधित हैं। सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि खुदाई स्थल पर कोई धार्मिक प्रतीक नहीं मिला, जिससे यह संकेत मिला कि यह एक धर्मनिरपेक्ष, शहरी तमिल सभ्यता थी।

 

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

ASI ने करीब ढाई वर्षों तक रिपोर्ट को अपने पास रखने के बाद मई 2025 में रामकृष्ण को पत्र लिखकर रिपोर्ट को संशोधित करने को कहा। उन्होंने खुदाई में पाए गए अवशेषों की काल गणना और उनकी गहराई को लेकर सवाल उठाए। रामकृष्ण ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनकी रिपोर्ट वैज्ञानिक रूप से पुख्ता है और इसमें स्ट्रैटिग्राफी (परत विश्लेषण), AMS कार्बन डेटिंग जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया है। उनके इनकार के बाद उन्हें दिल्ली से स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे तमिलनाडु में यह आरोप लगने लगे कि केंद्र सरकार तमिल सभ्यता की मान्यता को दबाना चाहती है।

 

राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया क्यों व्यक्त की?

तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियों, विशेषकर सत्तारूढ़ DMK, ने ASI द्वारा रिपोर्ट में संशोधन की मांग और रामकृष्ण के तबादले को जानबूझकर की गई कार्रवाई बताया। उनका आरोप था कि केंद्र सरकार केलड़ी की ऐतिहासिक खोजों की महत्ता को कम आंक रही है क्योंकि ये खोजें उत्तर भारतीय या वैदिक केंद्रित इतिहास की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देती हैं। इन दलों का मानना था कि तमिल इतिहास को नकारने की यह कोशिश एक सांस्कृतिक बहिष्कार है।

 

जनता और इतिहासकारों की प्रतिक्रिया:

तमिल इतिहासकारों और आम जनता ने रामकृष्ण के समर्थन में आवाज उठाई। लोगों ने उनकी रिपोर्ट को प्राचीन तमिल समाज को समझने में क्रांतिकारी कदम बताया। तमिलनाडु सरकार ने खुदाई कार्य जारी रखा और केलड़ी में एक अत्याधुनिक संग्रहालय की स्थापना की, जो अब हजारों पर्यटकों और शोधार्थियों को आकर्षित कर रहा है। इससे यह स्थल तमिल अस्मिता का प्रतीक बन चुका है।

 

वर्तमान स्थिति और भविष्य का दृष्टिकोण:

जहां एक ओर ASI का कहना है कि और वैज्ञानिक प्रमाणों की आवश्यकता है, वहीं तमिलनाडु सरकार स्वतंत्र रूप से खुदाई कार्य आगे बढ़ा रही है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मतभेद अब और गहरे हो गए हैं। रामकृष्ण का तबादला न केवल एक प्रशासनिक फैसला, बल्कि उनके लिए एक पदावनति जैसा देखा जा रहा है। इतिहासकारों को डर है कि आगे चलकर शोध और अकादमिक स्वतंत्रता पर और भी नौकरशाही दबाव बढ़ सकता है।

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