जजों को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

जजों को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

Static GK   /   जजों को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

Change Language English Hindi

द हिंदू: 17 दिसंबर 2024 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों?

राज्यसभा के 55 सांसदों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव को हटाने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।

जस्टिस यादव ने विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में सांप्रदायिक बयान दिया था, जिसमें कहा गया कि देश को बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलाया जाना चाहिए।

 

अब तक की कहानी:

सांसदों ने यह प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति को सौंपा है।

जस्टिस यादव के बयान को न्यायिक आचरण के सिद्धांतों का उल्लंघन माना जा रहा है।

यह घटना न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर बहस को जन्म दे रही है।

 

वर्तमान मुद्दा क्या है?

जस्टिस यादव के बयान को 1997 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाए गए ‘रीइंस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूज़ ऑफ जुडिशियल लाइफ’ का उल्लंघन माना जा रहा है, जो न्यायाधीशों के लिए निष्पक्षता और उच्च आचरण की अपेक्षा करता है।

उनके बयान को संवैधानिक पद की गरिमा के विपरीत माना गया है।

हालांकि, न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया कठिन और सख्त है, जिससे इस प्रस्ताव के सफल होने की संभावना कम है।

 

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया क्या है?

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया विस्तृत और कठोर है:

 

संवैधानिक प्रावधान:

अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश) और 217 (हाई कोर्ट के न्यायाधीश) के तहत, ‘सिद्ध कदाचार’ या ‘अयोग्यता’ के आधार पर राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटा सकते हैं।

प्रारंभिक प्रक्रिया:

प्रस्ताव के लिए राज्यसभा में 50 सदस्य या लोकसभा में 100 सदस्य के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।

सभापति (राज्यसभा) या अध्यक्ष (लोकसभा) इस प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।

जांच प्रक्रिया:

प्रस्ताव स्वीकार होने पर एक तीन-सदस्यीय समिति बनाई जाती है (जिसमें सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं)।

यदि समिति न्यायाधीश को निर्दोष ठहराती है, तो प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ता। यदि दोषी पाया जाता है, तो रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है।

संसदीय स्वीकृति:

प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत (उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई और कुल सदस्यता के बहुमत) से पारित करना आवश्यक है।

अंतिम चरण:

संसद की स्वीकृति के बाद, राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटा सकते हैं।

 

क्या आवश्यक है?

यह प्रक्रिया न्यायिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए कठोर बनाई गई है ताकि न्यायाधीशों पर राजनीतिक दबाव न पड़े।

हालांकि, विशेष बहुमत की आवश्यकता के कारण कई बार न्यायाधीशों को दोषी पाए जाने के बावजूद हटाना कठिन हो जाता है।

इस मामले में, राज्यसभा के सभापति द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की संभावना कम है।

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव के बयान पर स्पष्टीकरण मांगा है और जस्टिस यादव को अपने रुख को न्यायालय और कोलेजियम के समक्ष रखना पड़ सकता है।

 

निष्कर्ष:

जस्टिस शेखर कुमार यादव का मामला न्यायिक जवाबदेही और स्वतंत्रता के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

हालांकि सख्त प्रक्रिया न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित करती है, लेकिन यह न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराने को भी चुनौतीपूर्ण बना देती है। न्यायपालिका की निष्पक्षता और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए न्यायाधीशों को उच्च आचरण का पालन करना आवश्यक है।

 

मुख्य बिंदु:

  • अनुच्छेद 124 और 217 के तहत न्यायाधीशों को सिद्ध कदाचार या अयोग्यता के आधार पर हटाया जा सकता है।
  • जस्टिस यादव के बयान ने न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।
  • सख्त प्रक्रिया न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है लेकिन जवाबदेही को चुनौतीपूर्ण बनाती है। 
Other Post's
  • न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराने की चुनौती:

    Read More
  • भारत में पहली बार लिथियम का भंडार मिला

    Read More
  • सफाई कर्मचारी (गरिमा का काम)

    Read More
  • ऑपरेशन आहट और मानव तस्करी

    Read More
  • अटल न्यू इंडिया चैलेंज 2.0

    Read More