द हिंदू: 25 अगस्त 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों?
केंद्र सरकार ने 130वाँ संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है, जिसके तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन तक लगातार गिरफ्तारी/नजरबंदी की स्थिति में पद से हटाना अनिवार्य होगा।
यह विधेयक भारतीय संसदीय लोकतंत्र पर इसके प्रभाव और संभावित दुरुपयोग को लेकर गहन बहस का विषय बन गया है।
विधेयक में क्या प्रस्ताव है?
संविधान के अनुच्छेद 75 और 164 (केंद्रीय व राज्य मंत्रिपरिषद) में संशोधन।
प्रावधान:
यदि कोई मंत्री 30 दिन लगातार हिरासत में रहता है और उस पर कम से कम पाँच वर्ष की सजा योग्य अपराध का आरोप है → उसे पद से हटाया जाएगा।
प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री की सलाह पर हटाया जाएगा, परंतु यदि सलाह नहीं दी गई तो 31वें दिन से स्वतः पदमुक्त हो जाएगा।
यदि प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री स्वयं 30 दिन लगातार हिरासत में हों → उन्हें 31वें दिन इस्तीफा देना होगा।
रिहाई के बाद पुनः नियुक्ति संभव होगी।
विस्तार: दिल्ली (अनुच्छेद 239AA), जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी में भी यही प्रावधान लागू।
प्रक्रिया: पारित करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक। अभी इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया है।
मौजूदा कानूनी ढांचा:
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP Act):
यदि कोई व्यक्ति कम से कम 2 वर्ष की सजा पाता है → संसद/विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित।
धारा 8(4): पहले अपील लंबित रहने तक सदस्य बने रह सकते थे।
2013 लिली थॉमस केस (SC): इस धारा को असंवैधानिक घोषित किया गया → दोषसिद्धि पर तत्काल अयोग्यता।
वर्तमान स्थिति: यह कानून केवल सांसद/विधायक की सदस्यता पर लागू है, मंत्री पद पर नहीं।
विधेयक से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ:
समयपूर्व दंड:
केवल गिरफ्तारी/हिरासत के आधार पर पद से हटाना, जबकि अभी दोषसिद्धि नहीं हुई।
“दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” के सिद्धांत के विपरीत।
संसदीय लोकतंत्र पर असर:
PM/CM की मंत्रिमंडल चुनने की संवैधानिक शक्ति सीमित।
निर्वाचित कार्यपालिका की स्वायत्तता कमजोर।
राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना:
केवल पुलिस कार्रवाई से ही मंत्री हट सकते हैं।
केंद्र सरकार द्वारा विपक्ष शासित राज्यों में राजनीतिक बदले की कार्रवाई का खतरा।
मूल कारण पर नहीं, प्रभाव पर ध्यान:
विधेयक केवल गिरफ्तारी के बाद हटाने पर केंद्रित है, परंतु अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने का कोई प्रावधान नहीं।
वृहद संदर्भ: राजनीति का अपराधीकरण:
ADR रिपोर्ट:
46% सांसद और 45% विधायक आपराधिक मामलों में आरोपी।
अपराधी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार की जीतने की संभावना 15.4%, जबकि स्वच्छ पृष्ठभूमि वाले की केवल 4.4%।
राजनीतिक दल “विजय की संभावना” (winnability) के आधार पर अपराधी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देते हैं।
आगे का रास्ता / सुझाव:
उम्मीदवार चयन में सुधार:
गंभीर आपराधिक मामलों वाले व्यक्तियों को टिकट न दिया जाए।
नामांकन प्रक्रिया में कड़ी जाँच।
न्यायिक प्रक्रिया में तेजी:
जनप्रतिनिधियों से जुड़े मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें।
जवाबदेही और निष्पक्षता में संतुलन:
केवल दोषसिद्धि पर पद से हटाने का प्रावधान ज्यादा न्यायसंगत होगा।
राजनीतिक दलों की आत्म-अनुशासन:
अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न देना दलों की जिम्मेदारी।
संक्षेप में:
130वाँ संविधान संशोधन विधेयक राजनीति के अपराधीकरण को रोकने का प्रयास है, लेकिन यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है और राजनीतिक प्रतिशोध के लिए इस्तेमाल हो सकता है। वास्तविक समाधान यह होगा कि अपराधी पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को शुरुआत से ही चुनाव लड़ने से रोका जाए।