इसरो द्वारा किया गया एयर ड्रॉप परीक्षण क्या है?

इसरो द्वारा किया गया एयर ड्रॉप परीक्षण क्या है?

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द हिंदू: 27 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

खबर में क्यों है?

24 अगस्त, 2025 को इसरो (ISRO) ने अपने पहले इंटीग्रेटेड एयर ड्रॉप टेस्ट (IADT-1) को सफलतापूर्वक पूरा किया।

यह परीक्षण भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान की तैयारियों में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

लगभग 5 टन वज़नी डमी क्रू मॉड्यूल को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलिकॉप्टर से गिराया गया ताकि यह देखा जा सके कि उसका पैराशूट सिस्टम सुरक्षित स्प्लैशडाउन करा सकता है या नहीं।

 

IADT-1 क्या है?

IADT = इंटीग्रेटेड एयर ड्रॉप टेस्ट, जिसका उद्देश्य यह परखना है कि क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से धीमा कर पानी में उतारने का काम पैराशूट कर सकता है या नहीं।

 

IADT-1 में:

मॉड्यूल को लगभग 3 किमी ऊँचाई से छोड़ा गया।

पैराशूट क्रमबद्ध तरीके से खुले (पहले ड्रोग → फिर मेन पैराशूट)।

लक्ष्य: वेग को लगभग 8 मी/सेकंड तक कम करना ताकि सुरक्षित स्प्लैशडाउन हो सके।

 

परीक्षण कैसे किया गया?

4.8 टन वज़नी डमी क्रू मॉड्यूल को चिनूक हेलिकॉप्टर से ऊपर ले जाकर छोड़ा गया।

उसके बाद स्वचालित सिस्टम ने पैराशूट को क्रमवार तरीके से खोला।

स्प्लैशडाउन सफल रहा और परिणाम अपेक्षा के अनुरूप रहे।

 

जुड़ी हुई एजेंसियाँ:

  • इसरो – डिज़ाइन, एकीकरण और मिशन संचालन।
  • भारतीय वायु सेना (IAF) – चिनूक हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराया।
  • डीआरडीओ (DRDO) – सामग्री और सुरक्षा प्रणालियाँ।
  • भारतीय नौसेना और कोस्ट गार्ड – रिकवरी ऑपरेशन की तैयारी।
  • विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) – लगभग 90% गतिविधियों का संचालन।

 

गगनयान मिशन की तैयारियाँ:

गगनयान का लक्ष्य: भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों (व्योम-नॉट्स) को लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) तक भेजना।

 

इसके लिए आवश्यक चरण:

क्रू एस्केप सिस्टम (CES) परीक्षण → जैसे TV-D1 (2023) सफल रहा, अगला TV-D2 होने वाला है।

गगनयान-1 (G1) का अनक्रूड मिशन → इसमें मानवरूपी रोबोट व्योममित्रा अंतरिक्ष यात्री की तरह काम करेगा।

सब-सिस्टम परीक्षण (पैराशूट, लाइफ सपोर्ट, हीट शील्ड, IVHMS आदि)।

पहले मानव मिशन (H1) से पहले हजारों परीक्षण पूरे किए जाएँगे। (फिलहाल 2027 तय है, पर देरी संभव है)।

 

क्या मानव मिशन के लिए अनेक परीक्षण आवश्यक हैं?

मानव अंतरिक्ष उड़ान में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती।

उड़ान भरना, पुनः प्रवेश (re-entry) और स्प्लैशडाउन – सबसे जोखिम भरे चरण हैं।

पैराशूट की थोड़ी भी विफलता घातक साबित हो सकती है।

हर प्रणाली (लाइफ सपोर्ट, एस्केप मोटर, पैराशूट, इंजन) को सैकड़ों बार परीक्षण और प्रमाणन से गुजरना होता है।

इसका मकसद है सुरक्षा, बैकअप व्यवस्था और खराबी का तुरंत पता चलना।

 

भारत के दीर्घकालिक अंतरिक्ष लक्ष्य:

2035: भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) स्थापित करना।

2040: भारत का पहला मानवयुक्त चंद्रमा पर उतरना।

 

अन्य विकसित की जा रही तकनीकें:

डॉकिंग टेक्नोलॉजी (स्पेडेक्स मिशन, मई 2025 में सफल)।

लंबी अवधि की कक्षीय उड़ानें (astronaut endurance बढ़ाने हेतु)। 

एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट और डीप-स्पेस प्रणोदन तकनीक।

 

महत्त्व और प्रभाव:

  • IADT-1 की सफलता ने इसरो को गगनयान मिशन के लिए मजबूत भरोसा दिया है।
  • भारत अब उन चुनिंदा देशों (अमेरिका, रूस, चीन) की कतार में आने की दिशा में बढ़ रहा है जिनके पास मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता है।
  • यह भारत की रणनीतिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता को मजबूत करेगा।
  • भविष्य में भारत की अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों और महत्वाकांक्षी मिशनों की राह भी खोलेगा।

 

संक्षेप में: IADT-1 ने साबित कर दिया कि गगनयान का क्रू मॉड्यूल सुरक्षित वापसी के लिए सक्षम है। हालाँकि समय-सीमा आगे खिसक सकती है, लेकिन हर उपलब्धि भारत को अपने स्पेस स्टेशन (2035) और चंद्रमा मिशन (2040) की ओर और करीब ले जा रही है।

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