तेलंगाना की कालेश्वरम परियोजना क्या है?

तेलंगाना की कालेश्वरम परियोजना क्या है?

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द हिंदू: 11 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों ?

तेलंगाना की जीवनरेखा कहे जाने वाले कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना (KLIP) पर अब सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि प्रमुख बैराज (मेडिगड्डा, सुंदिल्ला, अन्नाराम) में संरचनात्मक क्षति और वित्तीय व तकनीकी गड़बड़ियों के आरोप सामने आए हैं।

न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष की अध्यक्षता वाली एक-सदस्यीय न्यायिक आयोग ने 31 जुलाई 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद सरकार ने मानसून सत्र में विधानसभा में इस पर चर्चा कराने का निर्णय लिया है।

 

पृष्ठभूमि-

परियोजना का अवलोकन:

  • गोदावरी नदी पर भूपालपल्ली जिले के कालेश्वरम में बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना।
  • इसे दुनिया की सबसे बड़ी बहु-स्तरीय लिफ्ट सिंचाई परियोजना बताया गया।
  • 13 जिलों में 16 लाख एकड़ से अधिक भूमि की सिंचाई और हैदराबाद व आसपास के गांवों को पेयजल आपूर्ति का लक्ष्य।
  • प्रारंभिक लागत ₹71,000 करोड़; बाद में बढ़कर ₹1 लाख करोड़ से अधिक।

 

मूल योजना और बदलाव:

  • मूल रूप से तुम्मिदिहट्टी में प्रणहिता चेवेला सुजला सरावंती (PCSS) परियोजना के अंतर्गत प्रस्तावित।
  • केंद्रीय जल आयोग द्वारा पर्याप्त जल उपलब्धता (200 TMCFT से अधिक) के अनुमान के बावजूद, जल की कमी का हवाला देकर स्थल बदलकर मेडिगड्डा कर दिया गया।
  • तुम्मिदिहट्टी में पहले ही लगभग 30% कार्य (₹11,000 करोड़ लागत) पूरे हो चुके थे।

 

मुख्य मुद्दे-

संरचनात्मक विफलताएँ:

  • सुंदिल्ला बैराज के पायर्स डूब गए — उद्घाटन के मात्र 3 साल के भीतर।
  • अन्नागार और सुंदिल्ला बैराज में दरारें आईं, क्योंकि तकनीकी सलाह के विपरीत बड़ी मात्रा में जल संग्रहित किया गया।
  • आरोप कि बैराज को मजबूत चट्टानी नींव की बजाय पारगम्य (permeable) नींव पर बनाया गया।

 

वित्तीय चिंताएँ:

  • लागत में भारी वृद्धि (प्रारंभिक अनुमान से ₹30,000 करोड़ से अधिक)।
  • पूर्ण मंत्रिमंडल की सहमति के बिना निर्णय लेने के आरोप।

 

राजनीतिक विवाद:

  • आरोप कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अकेले निर्णय लिया।
  • तकनीकी चेतावनियों को नजरअंदाज करने और चुनिंदा संस्थाओं से ही मंजूरी लेने के आरोप।

 

जांच और निष्कर्ष-

न्यायिक आयोग:

  • अध्यक्ष — न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष।
  • 15 महीने में 110 से अधिक गवाहों से पूछताछ, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर, पूर्व सिंचाई मंत्री टी. हरीश राव और पूर्व वित्त मंत्री एटाला राजेंदर शामिल।
  • फंड रिलीज में “लापरवाह और उदासीन रवैया” अपनाने का आरोप।
  • साइट चयन, निर्माण गुणवत्ता और निर्णय प्रक्रिया में गंभीर खामियाँ पाई गईं।

 

सरकारी कार्रवाई:

कांग्रेस सरकार विधानसभा में रिपोर्ट पेश करेगी और सभी दलों से भविष्य की दिशा पर राय लेगी।

 

राजनीतिक प्रतिक्रिया-

बीआरएस (BRS) का पक्ष:

  • दावा कि परियोजना को केंद्रीय जल आयोग (CWC) सहित सभी वैधानिक निकायों से मंजूरी मिली थी।
  • कहा कि मंत्रिमंडल और विधानसभा से अनुमोदन हुआ था, हालांकि दस्तावेज़ अभी सार्वजनिक नहीं किए गए।
  • हरीश राव ने कहा कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में पहली बार परियोजना की विशेषताओं पर पावरपॉइंट प्रस्तुति दी थी।

 

प्रभाव-

आर्थिक प्रभाव:

  • बैराजों के बेकार होने पर हजारों करोड़ रुपये का संभावित नुकसान।
  • मरम्मत या पुनर्निर्माण में अतिरिक्त लागत।

 

जनविश्वास:

  • बड़े सिंचाई परियोजनाओं पर जनता का भरोसा कम होना।
  • BRS की राजनीतिक छवि को नुकसान।

 

जल सुरक्षा:

13 जिलों की सिंचाई व पेयजल आपूर्ति खतरे में, यदि खामियों का जल्द समाधान नहीं हुआ।

 

संभावित भविष्य की स्थिति-

  • विधानसभा बहस से निकल सकते हैं ये निर्णय:
  • मरम्मत, पुन: डिज़ाइन या परियोजना के हिस्सों को बंद करने का विकल्प।
  • यदि भ्रष्टाचार सिद्ध होता है तो कानूनी/आपराधिक कार्रवाई।
  • परियोजना प्रबंधन प्रणाली में बदलाव ताकि भविष्य में ऐसी विफलताएँ न हों।
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