द हिंदू: 29 जुलाई 2025 को प्रकाशित
समाचार में क्यों है?
महाराष्ट्र विधानसभा ने अपने मानसून सत्र के दौरान महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024 पारित किया है। यह विधेयक "शहरी नक्सलवाद" से निपटने के उद्देश्य से लाया गया है, लेकिन इसने विवाद को जन्म दिया है। नागरिक अधिकार समूहों और कुछ राजनीतिक नेताओं ने इसे दमनकारी, अस्पष्ट और दुरुपयोग योग्य बताकर आलोचना की है, जिससे जन और कानूनी चिंता उत्पन्न हुई है।
यह विधेयक क्या है?
महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक का उद्देश्य वामपंथी उग्रवादियों (Left-Wing Extremists - LWE) और उनके शहरी मोर्चों द्वारा की जा रही अवैध गतिविधियों को रोकना है। इसके तहत निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं:
उन संगठनों पर प्रतिबंध जो माओवादी/नक्सली ताकतों का समर्थन या सहायता करते हैं।
माओवादी समूहों के शहरी नेटवर्क को रोकना जो लॉजिस्टिक्स, सुरक्षित आश्रय और वैचारिक समर्थन प्रदान करते हैं।
राज्य सरकार को संगठनों को "अवैध" घोषित करने, "सार्वजनिक हित" में सूचना दबाने और प्रतिबंधों को अनिश्चितकाल तक बढ़ाने का अधिकार देना।
सरकार का दावा है कि राज्य में ऐसे 60 से अधिक शहरी नक्सली संगठन सक्रिय हैं और वर्तमान कानून अपर्याप्त हैं।
पृष्ठभूमि और विधायी प्रक्रिया:
मूल रूप से यह विधेयक 2024 के मानसून सत्र के अंत में महायुति सरकार द्वारा पेश किया गया था।
इसे दिसंबर 2024 के शीतकालीन सत्र में नव निर्वाचित बीजेपी गठबंधन सरकार द्वारा फिर से पेश किया गया।
एक संयुक्त विधायी समिति ने 12,500 से अधिक सार्वजनिक सुझावों की समीक्षा की, लेकिन केवल तीन मामूली संशोधन किए।
इसे जुलाई 2025 में ध्वनि मत से पारित किया गया।
केवल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने औपचारिक रूप से इसका विरोध किया।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
राज्य बिना न्यायिक प्रक्रिया के संगठनों को अवैध घोषित कर सकता है।
संगठनों पर लगे प्रतिबंधों को अनिश्चितकाल तक बढ़ाया जा सकता है।
निचली अदालतों द्वारा न्यायिक समीक्षा की अनुमति नहीं है।
"सद्भावना" में कार्यरत सरकारी अधिकारियों को कानूनी प्रतिरक्षा दी गई है।
धारा 2(एफ) के तहत भाषण, इशारे, लेखन और प्रतीकों को अपराध माना जाएगा जो "सार्वजनिक व्यवस्था में हस्तक्षेप की प्रवृत्ति" रखते हैं — भले ही हिंसा या इरादे का कोई प्रमाण न हो।
आपत्तियाँ और चिंताएँ:
नागरिक अधिकार संगठनों, विपक्षी नेताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने गंभीर मुद्दे उठाए हैं:
अस्पष्ट भाषा के कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, वैध असहमति और शांतिपूर्ण विरोध को दबाने का खतरा है।
छात्र संघों, किसान समूहों और नागरिक समाज संगठनों को वैचारिक आधार पर निशाना बनाए जाने की आशंका है।
न्यायिक सुरक्षा का अभाव राज्य शक्ति के दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है।
आलोचकों का कहना है कि पहले से मौजूद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) ही पर्याप्त है।
इस विधेयक को राजनीतिक विपक्ष को डराने और लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करने का एक साधन माना जा रहा है।
अन्य राज्यों की स्थिति क्या है?
महाराष्ट्र अब छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में शामिल हो गया है, जहाँ समान सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम पहले से हैं।
हालाँकि, आलोचकों के अनुसार:
इन कानूनों को उस समय लागू किया गया था जब UAPA को मजबूत नहीं किया गया था।
महाराष्ट्र ने पहले से ही मौजूदा कानूनों के माध्यम से नक्सली गतिविधियों को केवल दो जिलों तक सीमित कर दिया है।
इसलिए, एक नए और कठोर कानून की आवश्यकता पर सवाल उठाया जा रहा है।
राजनीतिक और कानूनी प्रतिक्रियाएँ:
केवल CPI (एम) ने विधानसभा में इस विधेयक का औपचारिक विरोध किया।
अन्य विपक्षी दलों ने आपत्तियाँ तो दर्ज कीं लेकिन विरोध में वोट नहीं किया।
दो प्रतिनिधिमंडलों ने राज्यपाल से मिलकर स्वीकृति रोकने का अनुरोध किया है।
नागरिक समाज समूहों ने घोषणा की है कि अगर यह कानून बनता है तो वे इसे अदालत में चुनौती देंगे।
आगे क्या होगा?
विधेयक को कानून बनने के लिए अब राज्यपाल की स्वीकृति का इंतजार है।
इसके खिलाफ कानूनी चुनौतियाँ और सार्वजनिक विरोध जारी रहने की संभावना है।
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इसके संवैधानिक वैधता की न्यायिक समीक्षा के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं।
निष्कर्ष: