भारतीय बाजारों में मंदी का कारण क्या है?

भारतीय बाजारों में मंदी का कारण क्या है?

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द हिंदू: 13 फरवरी 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

भारतीय शेयर बाजार लगातार छह दिनों से गिरावट में है, जिसका कारण विदेशी निवेशकों की बिकवाली, मिश्रित कॉर्पोरेट आय और अमेरिका द्वारा आयात शुल्क कड़ा करने की आशंका है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा स्टील और एल्युमिनियम पर क्रमशः 25% का शुल्क बढ़ाने के फैसले ने बाजार की धारणा को और प्रभावित किया है।

 

प्रमुख बिंदु

ट्रंप की टैरिफ नीति का प्रभाव:

  • अमेरिकी टैरिफ वृद्धि का उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करना है, लेकिन इसने भारत में प्रतिस्पर्धा और कीमतों में गिरावट को लेकर चिंता बढ़ा दी है।
  • भारतीय इस्पात निर्माता जैसे JSW Steel पहले से ही अपने Net Smelting Return (NSR) में गिरावट देख रहे हैं।
  • भारत के व्यापार उपाय महानिदेशालय (DGTR) ने पहले ही ‘नॉन-अलॉय और अलॉय स्टील फ्लैट प्रोडक्ट्स’ के आयात की डंपिंग की जांच शुरू कर दी है।

विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) की बिकवाली:

  • FIIs और FPIs भारतीय बाजार से पूंजी निकालकर अमेरिकी बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं, जहां उन्हें बेहतर रिटर्न मिल रहा है।
  • अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में वृद्धि विदेशी पूंजी को भारतीय इक्विटी से दूर कर रही है, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है।
  • 4% से अधिक की लगातार बनी हुई महंगाई, धीमी आय वृद्धि और छोटे व मझोले शेयरों (Mid & Small Cap Stocks) के ऊँचे मूल्यांकन के कारण भारतीय बाजार निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो गए हैं।

बाजार धारणा और घरेलू कारक:

  • घरेलू निवेशक विदेशी बहिर्वाह को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समग्र बाजार भावनाएं अभी भी नकारात्मक बनी हुई हैं।
  • मिड-कैप और स्मॉल-कैप स्टॉक्स में भारी गिरावट देखी जा रही है, जो बाजार में सुधार का संकेत देता है।

 

प्रभाव और संभावित परिणाम

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

अमेरिका द्वारा शुल्क वृद्धि के कारण भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्धा खो सकता है, जिससे इस्पात और एल्युमिनियम उद्योग प्रभावित होगा।

डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी से आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई और बढ़ सकती है।

भारतीय बाजार पर प्रभाव:

लगातार विदेशी बिकवाली के कारण सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट जारी है, जिससे निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है।

संभावित व्यापार युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव (Geopolitical Tensions) बाजार में अस्थिरता बढ़ा सकते हैं।

वैश्विक व्यापार संबंधों पर प्रभाव:

भारत को अपने व्यापार नीति पर पुनर्विचार करने और अमेरिकी संरक्षणवाद (Protectionism) के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए वैकल्पिक रणनीतियाँ तलाशने की जरूरत होगी।

एशियाई बाजारों से बढ़ता हुआ आयात और डंपिंग भारतीय विनिर्माताओं पर दबाव डाल सकता है।

 

प्रमुख चुनौतियाँ

अमेरिकी व्यापार नीति की अनिश्चितता: ट्रंप की नीतियों के कारण निवेशक सतर्क बने हुए हैं क्योंकि यह संभावित व्यापार युद्ध का कारण बन सकता है।

विदेशी निवेश में अस्थिरता: यदि विदेशी निवेशक लगातार बाजार से बाहर जाते रहे, तो इससे रुपया और भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

महंगाई और आर्थिक वृद्धि: महंगाई के उच्च स्तर और धीमी कमाई वृद्धि के चलते भारतीय स्टॉक्स निकट भविष्य में निवेशकों के लिए कम आकर्षक हो सकते हैं।

 

आगे की राह

सरकारी उपाय: भारत को घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए एंटी-डंपिंग ड्यूटी जैसे उपायों पर विचार करना चाहिए।

बाजार स्थिरता: घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करना और नीतिगत स्थिरता बनाए रखना बाजार की अस्थिरता को कम कर सकता है।

वैश्विक रुझानों पर नजर: अमेरिका की व्यापार नीति और वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों पर निगरानी बनाए रखना निवेशकों और नीति-निर्माताओं के लिए आवश्यक होगा।

 

निष्कर्ष

भारतीय बाजारों में गिरावट बाहरी कारकों (अमेरिकी टैरिफ, बढ़ती बॉन्ड यील्ड) और आंतरिक चुनौतियों (FII बहिर्वाह, महंगाई, धीमी आय वृद्धि) के संयोजन का परिणाम है। हालांकि, विदेशी निवेश लंबे समय में वापस आ सकता है, लेकिन निकट भविष्य में अस्थिरता (Volatility) प्रमुख जोखिम बनी रहेगी।

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