द हिंदू: 11 मार्च 2025 को प्रकाशित:
चर्चा में क्यों है?
क्विक कॉमर्स (Q-commerce) भारत में तेजी से विस्तार कर रहा है और अपने अल्ट्रा-फास्ट डिलीवरी मॉडल से रिटेल बाजार को बदल रहा है। यह उद्योग कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उभरा और महामारी के बाद भी उपभोक्ताओं की खरीदारी की आदतों को बदलता रहा। हाल ही में, पारंपरिक एफएमसीजी वितरकों और स्टॉकिस्टों ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें ब्लिंकिट, ज़ेप्टो और स्विगी इंस्टामार्ट जैसे क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर गैर-प्रतिस्पर्धी प्रथाओं जैसे कि शिकारी मूल्य निर्धारण (predatory pricing) और गहरे छूट (deep discounting) का आरोप लगाया गया है।
क्विक कॉमर्स (Q-commerce) क्या है?
Q-commerce, ई-कॉमर्स की एक श्रेणी है, जिसमें 10 से 20 मिनट के भीतर उत्पादों की डिलीवरी की जाती है। पारंपरिक खुदरा दुकानों की तुलना में, Q-commerce निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
डार्क स्टोर्स: केवल ऑनलाइन ऑर्डर पूरे करने के लिए समर्पित वेयरहाउस, जो डिलीवरी को तेज़ बनाते हैं।
एडवांस डेटा एनालिटिक्स: ग्राहक डेटा का उपयोग करके मांग को ट्रैक करना, इन्वेंट्री को ऑप्टिमाइज़ करना और खरीदारी के अनुभव को वैयक्तिकृत करना।
यह मॉडल ग्राहकों को अधिक सुविधा प्रदान करता है और ब्रांडों को अधिक दृश्यता देता है।
डार्क स्टोर्स की भूमिका-
डार्क स्टोर्स क्विक कॉमर्स उद्योग की रीढ़ हैं, जो उच्च मांग वाले शहरी क्षेत्रों के करीब स्थित होते हैं। इनके लाभ हैं:
कुशल इन्वेंट्री प्रबंधन।
पारंपरिक खुदरा दुकानों की तुलना में कम परिचालन लागत।
विभिन्न उत्पादों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध कराना।
ये कारक Q-commerce को ग्राहकों और व्यवसायों दोनों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं।
कैसे ग्राहक डेटा क्विक कॉमर्स को बेहतर बनाता है?
क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म रीयल-टाइम ग्राहक डेटा का उपयोग करके:
मांग पैटर्न का विश्लेषण करते हैं – मौसमी या स्थान-विशिष्ट उत्पादों को स्टॉक करने के लिए।
खरीदारी के अनुभव को व्यक्तिगत बनाते हैं – पिछले खरीद इतिहास के आधार पर उत्पाद सिफारिशें देते हैं।
गतिशील मूल्य निर्धारण लागू करते हैं – मांग, प्रतिस्पर्धी कीमतों और उपभोक्ता व्यवहार के आधार पर कीमतों को समायोजित करते हैं।
ऐसी डेटा-चालित रणनीतियाँ Q-commerce प्लेटफॉर्म को अधिक प्रतिस्पर्धी और अनुकूलनीय बनाती हैं।
पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं और वितरकों पर प्रभाव-
हालांकि Q-commerce ने सफलता प्राप्त की है, लेकिन यह पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं और वितरकों के विरोध का भी सामना कर रहा है। ऑल-इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूशन फेडरेशन (AICPDF) ने प्रमुख Q-commerce प्लेटफार्मों पर निम्नलिखित आरोप लगाए हैं:
शिकारी मूल्य निर्धारण (Predatory Pricing) – प्रतिस्पर्धियों को बाजार से बाहर करने के लिए लागत मूल्य से कम दरों पर उत्पाद बेचना।
गहरी छूट (Deep Discounting) – भारी छूट की पेशकश करना, जिससे पारंपरिक खुदरा विक्रेता प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।
डेटा शोषण (Data Exploitation) – ग्राहक डेटा का उपयोग करके मूल्य निर्धारण रणनीतियों में हेरफेर करना।
शिकायतकर्ताओं के अनुसार, ये प्रथाएँ छोटे खुदरा विक्रेताओं और स्थानीय वितरकों के लिए खतरा हैं।
भारत में क्विक कॉमर्स का भविष्य-
भारत में क्विक कॉमर्स बाजार वर्तमान में $3.34 बिलियन का है और 2029 तक $9.95 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है (ग्रांट थॉर्नटन भारत रिपोर्ट के अनुसार)।
पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं के विरोध के बावजूद, Q-commerce के बढ़ने की संभावना बनी हुई है, क्योंकि:
इंटरनेट की बढ़ती पहुंच।
शहरी क्षेत्रों में सुविधा की बढ़ती मांग।
निरंतर वेंचर कैपिटल निवेश।
हालांकि, CCI द्वारा की जा रही नियामक जांच से इस उद्योग में कुछ नए दिशानिर्देश लागू किए जा सकते हैं, जिससे उचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित की जा सके।
निष्कर्ष-
क्विक कॉमर्स ने उपभोक्ताओं की खरीदारी की आदतों को बदल दिया है, जिससे गति, सुविधा और उत्पादों की विविधता उपलब्ध हो रही है। हालांकि, उचित मूल्य निर्धारण, डेटा उपयोग और बाजार वर्चस्व को लेकर चिंता बनी हुई है। इस उद्योग का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि यह तेजी से बढ़ते बाजार और नैतिक व्यापार प्रथाओं के बीच संतुलन कैसे बनाए रखता है।