राष्ट्रपति का संदर्भ क्या है?

राष्ट्रपति का संदर्भ क्या है?

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द हिंदू: 21 मई 2025 को प्रकाशित: 

 

समाचार में क्यों है?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 महत्वपूर्ण कानूनी सवालों पर राय मांगी है। ये सवाल हाल की एक सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी से संबंधित हैं जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर समय सीमा में निर्णय लेने को कहा गया था। सरकार को अब न्यायपालिका की शक्तियों और कार्यपालिका की भूमिका की संवैधानिक व्याख्या चाहिए।

 

राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) क्या होता है?

राष्ट्रपति संदर्भ एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसमें भारत के राष्ट्रपति किसी महत्वपूर्ण कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। यह अनुच्छेद 143 के तहत किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट की राय बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका गंभीर नैतिक और व्यावहारिक महत्व होता है। राष्ट्रपति यह संदर्भ मंत्रिपरिषद की सलाह पर करते हैं। 

 

अनुच्छेद 143 क्या कहता है?

अनुच्छेद 143 के अनुसार, राष्ट्रपति किसी भी सार्वजनिक महत्व के कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट के विचार के लिए भेज सकते हैं। यह सुनवाई कम से कम पाँच न्यायाधीशों की पीठ करती है। सुप्रीम कोर्ट राय दे सकता है, लेकिन उसे देना अनिवार्य नहीं है।

 

क्या अन्य देशों में भी ऐसी व्यवस्था है?

कनाडा में सुप्रीम कोर्ट को सलाहकार अधिकार प्राप्त है और सरकारें कानूनी सवालों पर उससे राय ले सकती हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं करता। वहां सत्ता के पृथक्करण के सिद्धांत के तहत अदालतें सलाह नहीं देतीं।

भारत में यह व्यवस्था 1935 के भारत सरकार अधिनियम से ली गई है।

 

वर्तमान संदर्भ क्या है?

यह संदर्भ हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्धारित समय सीमा में निर्णय लेना होगा। साथ ही उनके निर्णय न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत होंगे।

सरकार ने जो 14 सवाल उठाए हैं, उनमें मुख्य रूप से ये हैं:

क्या अदालतें समय सीमा तय कर सकती हैं जो संविधान में नहीं दी गई है?

क्या विधेयक कानून बनने से पहले ही राज्यपाल/राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है?

क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को इतने व्यापक अधिकार हैं?

क्या सुप्रीम कोर्ट को उत्तर देना अनिवार्य है?

नहीं। सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रपति संदर्भ का उत्तर देना अनिवार्य नहीं है। वह सवालों की प्रकृति, अस्पष्टता या राजनीतिक संवेदनशीलता के आधार पर इसे अस्वीकार कर सकता है।

 

उदाहरण: 1993 में राम जन्मभूमि मामले में कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था।

 

ऐतिहासिक संदर्भ क्या हैं?

1950 के बाद से अब तक लगभग 15 राष्ट्रपति संदर्भ दिए गए हैं। प्रमुख उदाहरणों में शामिल हैं:

1951 का दिल्ली कानून मामला – इसमें प्रतिनिधि कानून निर्माण की व्याख्या की गई।

1958 का केरल शिक्षा विधेयक मामला – मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांतों के संतुलन पर निर्णय।

1960 का बेरुबारी मामला – क्षेत्र छोड़ने के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता बताई गई।

1978 का विशेष अदालत विधेयक मामला – कोर्ट ने कहा कि वह अस्पष्ट सवालों पर राय देने से मना कर सकता है।

1998 का तीसरा न्यायाधीश मामला – न्यायिक नियुक्तियों पर कोलेजियम प्रणाली का निर्धारण।

 

इस संदर्भ का संभावित प्रभाव क्या होगा?

यह स्पष्ट करेगा कि क्या कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है।

यह केंद्र और राज्यों के बीच संघीय तनाव को कम कर सकता है।

यह न्यायपालिका की सीमाएं और अनुच्छेद 142 की परिभाषा को स्पष्ट कर सकता है।

यह राज्यपाल की भूमिका और राज्यों की स्वायत्तता को लेकर नई दिशा दे सकता है।

 

निष्कर्ष:

यह राष्ट्रपति संदर्भ भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है। सुप्रीम कोर्ट की राय भविष्य के लिए मार्गदर्शक बन सकती है और इससे तीनों शक्तियों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के बीच संतुलन की नई समझ विकसित हो सकती है।

 

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