इथेनॉल मिश्रण का क्या प्रभाव पड़ा है?

इथेनॉल मिश्रण का क्या प्रभाव पड़ा है?

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द हिंदू: 18 अगस्त 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों?

भारत ने राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति के लक्ष्य से पाँच साल पहले ही पेट्रोल में 20% एथेनॉल मिश्रण (E20) हासिल कर लिया है।

सरकार इसे तेल आयात घटाने और किसानों की आय बढ़ाने की सफलता मान रही है, लेकिन वाहनों के प्रदर्शन, पर्यावरणीय लागत और दीर्घकालिक टिकाऊपन को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

साथ ही, भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का अपनाना बड़े अर्थतंत्रों की तुलना में काफी धीमा है, जिससे ऊर्जा परिवर्तन रणनीति पर बहस छिड़ी हुई है।

 

एथेनॉल मिश्रण का प्रभाव:

सकारात्मक परिणाम:

2014–15 से अब तक भारत ने ₹1.40 लाख करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत की।

किसानों को एथेनॉल से जुड़ी गन्ना बिक्री से ₹1.20 लाख करोड़ से अधिक का भुगतान हुआ।

सरकार का दावा है कि 700 लाख टन CO₂ उत्सर्जन में कमी आई।

 

चिंताएँ:

  • उपभोक्ताओं को माइलेज में कमी और रखरखाव की दिक्कतें।
  • पानी की अधिक खपत (प्रति टन गन्ने पर 60–70 टन पानी)।
  • भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण का खतरा।
  • E20 नीति पर पेट्रोल वाहन मालिकों की प्रतिक्रिया:

 

जनमत:

सर्वे (36,000 लोग, 315 जिले): 3 में से 2 पेट्रोल वाहन मालिक E20 के खिलाफ, केवल 12% समर्थन में।

मुख्य कारण: माइलेज घटने और खर्च बढ़ने का डर।

 

सरकार का रुख:

मानती है कि “मामूली दक्षता में गिरावट” है, लेकिन इसे “विलिफिकेशन अभियान” बता रही है।

नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि उपभोक्ताओं को टैक्स इंसेंटिव देकर नुकसान की भरपाई की जाए।

 

वाहन निर्माता:

2023 के बाद बेचे गए वाहन E20 संगत (compatible) हैं।

पुराने वाहनों में रबर, प्लास्टिक आदि पुर्ज़े बदलने पड़ सकते हैं।

गन्ना-आधारित एथेनॉल की पर्यावरणीय टिकाऊपन

एथेनॉल का अधिकांश हिस्सा गन्ने से आता है।

 

पानी का संकट:

गन्ने की अच्छी पैदावार के लिए 1500–3000 मिमी वर्षा जरूरी, पर कई क्षेत्र भूजल दोहन पर निर्भर।

महाराष्ट्र के जिले अस्थिर भूजल उपयोग दिखाते हैं।

 

भूमि क्षरण:

भारत की लगभग 30% भूमि पहले से ही क्षतिग्रस्त (मरुस्थलीकरण एटलस 2021)।

 

विविधीकरण प्रयास:

अब एथेनॉल चावल (3.6% उत्पादन) और मकई (34% उत्पादन) से भी बनाया जा रहा है।

लेकिन मकई का आयात 6 गुना बढ़ गया।

 

भविष्य की प्रवृत्ति: 2034 तक भारत के 22% गन्ने का उपयोग एथेनॉल उत्पादन में होगा।

भारत की एथेनॉल नीति पर अमेरिका की प्रतिक्रिया:

अमेरिका ने भारत की आयात पाबंदी को “व्यापार बाधा” कहा (2025 ट्रेड रिपोर्ट)।

ट्रंप प्रशासन भारत पर दबाव डाल रहा है कि आयात खोले जाएं।

भारतीय शुगर मिल्स एसोसिएशन चाहती है कि प्रतिबंध बरकरार रहें ताकि घरेलू उद्योग सुरक्षित रहे।

पाबंदी हटाने पर घरेलू निवेश को झटका लग सकता है।

 

भारत में EV अपनाने की धीमी गति:

वर्तमान स्थिति: 2024 में केवल 7.6% वाहन बिक्री EVs रही।

2030 के लक्ष्य (30% EVs) तक पहुँचने के लिए अगले 5 साल में बिक्री में 22% की वार्षिक वृद्धि जरूरी।

 

चुनौतियाँ:

उच्च लागत और सीमित चार्जिंग ढाँचा।

रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) जैसे मैग्नेट पर भारी निर्भरता (मुख्यतः चीन से आयात)।

 

सप्लाई संकट:

मारुति सुज़ुकी ने अपनी e-Vitara EV की उत्पादन योजना घटाई।

चीन के निर्यात नियंत्रण से वैश्विक आपूर्ति अस्थिर।

 

तुलना:

चीन, यूरोपीय संघ और अमेरिका में EV अपनाने की दर कहीं अधिक है क्योंकि वहाँ नीति समर्थन और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर है।

 

आगे की प्रमुख चुनौतियाँ:

उपभोक्ता हित: क्या सरकार माइलेज/खर्च की भरपाई के लिए टैक्स इंसेंटिव/सब्सिडी देगी?

पर्यावरण: क्या गन्ना-आधारित एथेनॉल टिकाऊ रह पाएगा या जल संकट और भूमि क्षरण बढ़ेगा?

व्यापार दबाव: क्या भारत अमेरिकी मांग के बावजूद एथेनॉल आयात पाबंदी बनाए रखेगा?

ऊर्जा रणनीति: क्या एथेनॉल मिश्रण EV अपनाने को टालेगा या उसके पूरक बनेगा?

EV सप्लाई चेन: क्या भारत चीन पर निर्भरता घटाकर घरेलू खनन और वैश्विक साझेदारी कर पाएगा?

नीति दिशा: अभी अनिश्चितता है कि सरकार 20% से आगे मिश्रण बढ़ाएगी या नहीं।

 

निष्कर्ष:

भारत की एथेनॉल मिश्रण उपलब्धि ऐतिहासिक है, लेकिन इसके साथ उपभोक्ता असंतोष, पर्यावरणीय खतरे और वैश्विक व्यापार दबाव जुड़े हैं। एथेनॉल अल्पकालिक लाभ देता है, पर दीर्घकालिक समाधान तेज़ी से EV अपनाने और नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित परिवहन में है। साथ ही, एथेनॉल उत्पादन को गन्ने से हटाकर अन्य टिकाऊ स्रोतों में विविधीकरण करना आवश्यक होगा।

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