द हिंदू: 26 नवंबर 2025 को पब्लिश हुआ।
चर्चा में क्यों है?
केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने 12 नवंबर को ड्राफ्ट सीड्स बिल जारी किया है और इस पर 11 दिसंबर तक सार्वजनिक टिप्पणियाँ आमंत्रित की हैं। इस विधेयक का उद्देश्य 1966 के बीज अधिनियम और 1983 के बीज नियंत्रण आदेश को संशोधित करना है, ताकि बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके और बीज क्षेत्र में “व्यवसाय सुविधा (Ease of Doing Business)” को बढ़ावा दिया जा सके। सरकार का दावा है कि नए बिल में गंभीर उल्लंघनों के लिए कठोर दंड के प्रावधान भी शामिल हैं।
ड्राफ्ट सीड्स बिल क्या प्रस्तावित करता है?
यह बिल बीज के आयात, उत्पादन, विपणन, आपूर्ति और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए एक नियामक ढांचा तैयार करता है। यह किसानों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। किसान अपने खेत में उगाए बीज को बोने, पुनः बोने, बचाने, इस्तेमाल करने, साझा करने और बेचने के लिए स्वतंत्र रहेंगे। केवल ब्रांड नाम से बीज बेचने पर रोक रहेगी।
इस बिल में किसान, डीलर, वितरक और उत्पादक को अलग-अलग परिभाषित किया गया है और इनके लिए अलग नियमन का ढांचा बनाया गया है। बीज प्रसंस्करण इकाइयों को राज्यों के साथ अनिवार्य पंजीकरण कराना होगा। साथ ही, कई राज्यों में कार्यरत कंपनियों के लिए केंद्रीय मान्यता प्रणाली (Central Accreditation System) स्थापित करने का प्रावधान है, जिससे व्यवसाय करना आसान होगा।
बिल में राष्ट्रीय बीज रजिस्टर बनाने और बीज किस्मों के परीक्षण तथा फील्ड ट्रायल्स (Value for Cultivation and Use) की विधि भी बताई गई है। इसके तहत केंद्रीय और राज्य स्तरीय बीज परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की जाएँगी। बीज निरीक्षकों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत खोज और जब्ती का अधिकार दिया जाएगा। गलतियाँ या उल्लंघन होने पर दोष के अनुसार ₹50,000 से ₹30 लाख तक जुर्माना और तीन साल तक की सजा हो सकती है।
बीज उद्योग ने 1966 के अधिनियम में संशोधन की मांग क्यों की?
बीज उद्योग का मानना है कि 1966 का अधिनियम पुराना हो चुका है और इसमें आज की आधुनिक तकनीक—जैसे जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology), हाइब्रिड बीज, जेनेटिक रिसर्च, तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार—को सम्मिलित नहीं किया गया। इन छह दशकों में बीज कृषि एक उद्योग और व्यापार के रूप में विकसित हुआ है। इसलिए, उद्योग को लगता है कि नए सुधार:
नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देंगे
गुणवत्ता नियंत्रण को मजबूत करेंगे
विदेशी व्यापार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएँगे
बिल के तहत दंड के प्रावधान
नए ड्राफ्ट में दंड काफी कठोर किया गया है। उल्लंघन की गंभीरता के आधार पर मामूली, सामान्य और गंभीर अपराधों के लिए ₹50,000 से ₹30 लाख तक जुर्माना और अधिकतम 3 वर्ष कैद का प्रावधान है। बीज निरीक्षकों को BNSS के तहत छापेमारी और जब्ती की शक्ति दी गई है। पहले (2019 ड्राफ्ट) में जुर्माना कम था और सजा अधिकतम 1 वर्ष तक थी। नए बिल ने दंड को अधिक कठोर बना दिया है।
किसान संगठनों की चिंताएँ क्या हैं?
संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान सभा जैसे संगठनों का कहना है कि यह बिल बीज क्षेत्र को कंपनियों और कॉरपोरेट्स के नियंत्रण में ले जाएगा। इससे बीज की कीमतें बढ़ेंगी और छोटे किसानों की लागत भी बढ़ेगी। वे इसे एक केंद्रीकृत और कॉरपोरेट प्रभाव वाले तंत्र के रूप में देख रहे हैं, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बीज बाजार में मजबूत करेगा।
किसानों को यह भी डर है कि यह बिल किसानों के अधिकार अधिनियम (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Act 2001) के प्रावधानों को कमजोर कर सकता है और भारत के जैव विविधता संरक्षण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के विपरीत हो सकता है। ब्रांड नाम से बीज बेचने की पाबंदी किसानों के बीज व्यापार को सीमित कर सकती है, जिससे भारत की बीज संप्रभुता (Seed Sovereignty) खतरे में पड़ सकती है।
केंद्रीय व राज्य बीज समितियों की भूमिका:
केंद्रीय बीज समिति
27 सदस्यीय समिति होगी।
बीज की गुणवत्ता, अंकुरण, शुद्धता, स्वास्थ्य आदि मानक तय करेगी।
राष्ट्रीय बीज रजिस्टर और फील्ड ट्रायल्स की देखरेख करेगी।
केंद्र सरकार को आयात, मान्यता प्रणाली और नीति निर्धारण पर सलाह देगी।
राज्य बीज समिति:
15 सदस्यीय समिति होगी।
राज्य में बीज उत्पादक, डीलर, वितरक, प्रसंस्करण इकाइयों और पौधशालाओं के पंजीकरण में सहायता करेगी।
राज्य स्तर पर निरीक्षण, परीक्षण और अनुपालन सुनिश्चित करेगी।
निष्कर्ष:
ड्राफ्ट सीड्स बिल बीज क्षेत्र में नियमन और व्यवसाय सुगमता का संतुलन बनाने का प्रयास करता है। उद्योग इसे आधुनिक और प्रगतिशील मान रहा है, जबकि किसानों को डर है कि इससे बीज बाजार का नियंत्रण कॉरपोरेट हाथों में चला जाएगा और किसानों के अधिकार कमजोर हो सकते हैं। यह बिल तभी सफल माना जाएगा जब यह नवाचार और किसान हितों दोनों का उचित संतुलन बनाए रखे।