डी.एन.ए. पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश क्या कहते हैं?

डी.एन.ए. पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश क्या कहते हैं?

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द हिन्दू: 15 सितंबर 2025 को प्रकाशित।

 

यह खबर में क्यों है?

सुप्रीम कोर्ट (न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ) ने कट्टावेल्लई @ देवाकर मामले में एक मृत्युदंड प्राप्त आरोपी को बरी किया और अपने 15 जुलाई 2025 के फैसले में देशभर के लिए DNA साक्ष्य के संग्रह, संरक्षण और दस्तावेजीकरण को मानकीकृत करने के निर्देश जारी किए। कारण यह था कि उस मामले में गंभीर प्रक्रियात्मक त्रुटियों के चलते DNA साक्ष्य अविश्वसनीय पाया गया।

 

संक्षिप्त पृष्ठभूमि (अब तक की कहानी):

2011 में तमिलनाडु के सुरुली फॉल्स के पास दो लोगों की हत्या हुई (और एक यौन उत्पीड़न का आरोप भी लगा)। अभियोजन पक्ष ने मुख्य रूप से DNA रिपोर्टों पर भरोसा किया।

ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराकर मृत्युदंड दिया।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपील सुनवाई के बाद पाया कि जांच और DNA नमूनों के प्रबंधन में गंभीर खामियां थीं। इस कारण उसने आरोपी को बरी किया और साथ ही DNA साक्ष्य से जुड़े मामलों में एकरूप प्रक्रियाएं तय कर दीं।

 

अदालत ने हस्तक्षेप क्यों किया? (कौन-सी खामियां उजागर हुईं):

सुप्रीम कोर्ट ने कई जांच व फोरेंसिक त्रुटियां पाईं, विशेषकर:

नमूनों को FSL भेजने में अनुचित और महत्वपूर्ण विलंब (जैसे योनि स्वैब में)।

कस्टडी की स्पष्ट और सत्यापनीय श्रृंखला स्थापित करने में विफलता, जिससे संदूषण, छेड़छाड़ या प्रतिस्थापन की संभावना बनी रही।

विभिन्न थानों और राज्यों में प्रक्रियाओं की असमानता — कोई अनिवार्य मानक प्रारूप/प्रक्रिया लागू नहीं थी।

इन प्रक्रियागत खामियों से स्वयं नमूने की विश्वसनीयता प्रभावित होती है, इसलिए अदालत ने इन्हें घातक माना और DNA परिणाम पर भरोसा नहीं किया।

 

पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में DNA विश्वसनीयता पर विचार:

नए निर्देश पहले के निर्णयों पर आधारित हैं, जिनमें दो मुख्य बातें कही गई थीं:

DNA प्रोफाइलिंग शक्तिशाली है, लेकिन प्रक्रियागत गुणवत्ता जरूरी है।

अनिल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014): DNA को मान्य व विश्वसनीय माना गया, लेकिन लैब की गुणवत्ता और प्रक्रियाओं पर जोर दिया गया।

 

खराब संग्रहण/प्रबंधन से DNA साक्ष्य अविश्वसनीय हो सकता है।

मनोज व अन्य बनाम मध्यप्रदेश राज्य (2022) और राहुल बनाम दिल्ली राज्य (2022): जहां संदूषण जोखिम, क्षरण, अनजानी देरी, या दस्तावेजी कमी थी, वहां DNA साक्ष्य को अस्वीकार या कम महत्व दिया गया।

अदालत ने बार-बार कहा है कि DNA “मत-साक्ष्य (opinion evidence)” है और इसका महत्व इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे प्राप्त और परीक्षण किया गया।

 

नए (कट्टावेल्लई/देवाकर) दिशा-निर्देश क्या कहते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने DNA साक्ष्य से जुड़े सभी आपराधिक मामलों के लिए चार मुख्य निर्देश जारी किए:

 

त्वरित और दस्तावेजीकृत संग्रहण:

नमूनों को सावधानी से, तुरंत पैक कर, केस पहचान (FIR संख्या/तारीख, धारा, जांच अधिकारी, थाने का नाम, सीरियल नंबर) के साथ दर्ज किया जाए। संग्रहण दस्तावेज पर चिकित्सक, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर हों।

 

जिम्मेदार और समयबद्ध परिवहन:

जांच अधिकारी नमूने को 48 घंटे के भीतर FSL तक पहुंचाए। देरी होने पर कारण व संरक्षण उपाय दर्ज किए जाएं।

 

सीलिंग/भंडारण नियंत्रण:

ट्रायल/अपील लंबित रहते समय नमूनों को बिना न्यायालय की अनुमति के न तो खोला जाए, न बदला जाए, न पुनः सील किया जाए।

 

अनिवार्य चेन-ऑफ-कस्टडी रजिस्टर:

संग्रहण से लेकर अंतिम निपटारे (दोषसिद्धि/बरी) तक प्रत्येक आवाजाही दर्ज हो। यह रजिस्टर ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड से जुड़ा हो। कमी होने पर जांच अधिकारी जवाबदेह होगा।

 

क्या केवल DNA के आधार पर दोषसिद्धि संभव है?

संक्षिप्त उत्तर: नहीं।

DNA साक्ष्य मत-साक्ष्य है, जिसकी विश्वसनीयता संग्रहण, संरक्षण, परीक्षण और व्याख्या पर निर्भर करती है।

यदि कस्टडी या भंडारण में खामी है, तो DNA का महत्व घट जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में (यहां तक कि मृत्युदंड वाले मामलों में भी) दोषसिद्धि पलट दी, जहां DNA साक्ष्य संदिग्ध या दूषित हो सकता था।

 

इसलिए:

विश्वसनीय और अच्छी तरह दस्तावेजीकृत DNA साक्ष्य अत्यधिक प्रभावशाली है। लेकिन प्रक्रियागत खामियां होने पर यह पर्याप्त नहीं है। अदालतें हमेशा पुष्टिकरण और त्रुटिरहित प्रक्रियाओं की तलाश करेंगी।

 

तात्कालिक और व्यावहारिक प्रभाव:

जांच: पुलिस को मानक प्रारूप, 48 घंटे की समयसीमा, पैकेजिंग/सीलिंग का प्रशिक्षण और चेन-ऑफ-कस्टडी रजिस्टर अपनाना होगा।

फोरेंसिक लैब: FSL को गुणवत्ता नियंत्रण बनाए रखना होगा; लेकिन यदि नमूनों की शुरुआती हैंडलिंग गलत है, तो लैब की दक्षता भी पर्याप्त नहीं।

ट्रायल/अपील: बचाव पक्ष कस्टडी और ट्रांज़िट रिकॉर्ड की बारीकी से जांच करेगा। अभियोजन को बिना टूटी कस्टडी साबित करनी होगी।

सिस्टम परिवर्तन: यदि निर्देश समान रूप से लागू हुए, तो गलत दोषसिद्धि घटेगी और जवाबदेही बढ़ेगी।

 

सीमाएँ (न्यायालय ने क्या नहीं किया):

अदालत ने वैज्ञानिक परीक्षण मानक नहीं बदले; यह काम लैब और वैधानिक ढांचे का है।

क्रियान्वयन राज्यों की पुलिस, संसाधन, प्रशिक्षण और मॉनिटरिंग पर निर्भर करेगा।

 

आगे क्या होना चाहिए (व्यावहारिक सिफारिशें):

राज्य तुरंत मानक फॉर्म जारी करें, जांचकर्ताओं और चिकित्सकों को प्रशिक्षित करें और 48 घंटे के नियम की निगरानी करें। 

अदालतें और अभियोजन पक्ष चेन-ऑफ-कस्टडी रजिस्टर को पवित्र रिकॉर्ड की तरह लें और शुरुआती सुनवाई में जांच करें।

FSL क्षमता में निवेश और लैब का स्वतंत्र मान्यकरण किया जाए ताकि लैब गुणवत्ता + शुरुआती नमूना प्रबंधन मिलकर DNA साक्ष्य की विश्वसनीयता सुनिश्चित करें।

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