विस्फोटों के बाद फोरेंसिक विशेषज्ञ क्या करते हैं?

विस्फोटों के बाद फोरेंसिक विशेषज्ञ क्या करते हैं?

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द हिंदू: 12 नवंबर 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों:

10 नवम्बर को दिल्ली के लाल किला परिसर के पास एक भीषण विस्फोट हुआ, जब एक i20 कार में धमाका हो गया। इस घटना में 13 लोगों की मृत्यु हो गई और कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। घटना के तुरंत बाद फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम मौके पर पहुँची ताकि यह पता लगाया जा सके कि विस्फोट आकस्मिक था या जानबूझकर किया गया। इस हादसे ने फिर से यह सवाल उठाया कि ऐसे मामलों में फोरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका कितनी अहम होती है।

 

पृष्ठभूमि:

विस्फोट या बम धमाके जैसी घटनाओं में सामान्य जांच पद्धतियाँ पर्याप्त नहीं होतीं, क्योंकि विस्फोट के कारण साक्ष्य तुरंत नष्ट हो जाते हैं। इसलिए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएँ (Forensic Science Laboratories - FSL) इसमें मुख्य भूमिका निभाती हैं। इन प्रयोगशालाओं में विस्फोटक, भौतिक, रासायनिक, जैविक और साइबर फोरेंसिक जैसे विशेष विभाग होते हैं जो मिलकर घटना स्थल का पुनर्निर्माण (Reconstruction) करते हैं और यह पता लगाते हैं कि विस्फोट का स्रोत और प्रकृति क्या थी।

 

फोरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका:

फोरेंसिक विशेषज्ञों का मुख्य कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सबूत एकत्रित और विश्लेषित करना होता है। वे जली हुई वस्तुओं, धातु के टुकड़ों, राख, वाहन के हिस्सों आदि को इकट्ठा करते हैं और उन्हें प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजते हैं।

मौके की फोटोग्राफी और स्केच बनाकर पूरी स्थिति का रिकॉर्ड तैयार किया जाता है।

विशेषज्ञ यह भी देखते हैं कि कहीं कोई टाइमर, वायर या सर्किट जैसे उपकरण तो नहीं मिले, जो रिमोट-कंट्रोल या टाइम-डिवाइस के इस्तेमाल की ओर इशारा करें।

इन सभी नमूनों का परीक्षण करके यह पता लगाया जाता है कि कौन-सा रासायनिक विस्फोटक इस्तेमाल हुआ और विस्फोट किस प्रकार हुआ।

 

किए जाने वाले वैज्ञानिक परीक्षण:

फोरेंसिक विशेषज्ञ कई उन्नत वैज्ञानिक परीक्षण करते हैं ताकि विस्फोट में प्रयुक्त पदार्थों की पहचान की जा सके।

वे एफटीआईआर (FTIR) और एटीआर-एफटीआईआर (ATR-FTIR) तकनीक से नमूनों में अवशोषित प्रकाश का विश्लेषण करते हैं ताकि उनकी रासायनिक प्रकृति ज्ञात हो सके।

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (Raman Spectroscopy) से विस्फोटक पदार्थ की रासायनिक संरचना का पता लगाया जाता है।

स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (SEM) से विस्फोट के बाद बचे टुकड़ों की बनावट का अध्ययन किया जाता है।

एनर्जी डिस्पर्सिव एक्स-रे (EDX) तकनीक से नमूनों के तत्वीय संघटन की जांच की जाती है।

थर्मल एनालिसिस (Thermal Analysis) से विस्फोटक पदार्थ की स्थिरता और सक्रियता का पता चलता है।

इसके अलावा लेज़र-आधारित सीन मैपिंग और फ्लैशपॉइंट टेस्टिंग के माध्यम से यह समझने की कोशिश की जाती है कि आग कैसे फैली और उसका स्रोत कहाँ था।

इन सब विश्लेषणों से यह तय किया जाता है कि विस्फोट दुर्घटनावश हुआ या जानबूझकर।

 

विभिन्न विभागों का सहयोग:

किसी भी विस्फोट की जांच अकेले एक विशेषज्ञ नहीं कर सकता। इसमें कई विभागों का संयुक्त सहयोग आवश्यक होता है।

विस्फोटक विशेषज्ञ यह पहचानते हैं कि कौन-सा विस्फोटक इस्तेमाल हुआ।

फोरेंसिक भौतिक विज्ञानी ‘etching test’ के माध्यम से वाहन का इंजन और चेसिस नंबर ढूंढ़ते हैं, जिन्हें अक्सर अपराधी बदल देते हैं।

साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञ सीसीटीवी फुटेज और डिजिटल डेटा का विश्लेषण करते हैं।

DNA विशेषज्ञ मृत व्यक्तियों की पहचान करने में मदद करते हैं।

आग विश्लेषक विशेषज्ञ आग की दिशा और सीमा का अध्ययन करते हैं ताकि आग के फैलाव का स्रोत पता चल सके।

इस प्रकार, यह जांच एक बहु-विषयी (multidisciplinary) टीम द्वारा की जाती है।

 

प्रयुक्त वैज्ञानिक सिद्धांत:

इस जांच में लोकार्ड के विनिमय सिद्धांत (Locard’s Exchange Principle) का पालन किया जाता है, जो कहता है कि “हर अपराधी अपने पीछे कुछ न कुछ छोड़ता है और कुछ लेकर जाता है।”

इसका अर्थ है कि विस्फोट जैसी घटनाओं में भी सूक्ष्म साक्ष्य (trace evidence) अवश्य होते हैं, जो अपराधी या उपकरण को घटना स्थल से जोड़ते हैं।

इसके अलावा, विशेषज्ञ घटना का पुनर्निर्माण (reconstruction) करते हैं ताकि विस्फोट की दिशा, तीव्रता और समय का अनुमान लगाया जा सके।

 

प्रमुख चुनौतियाँ:

विस्फोट के बाद जांच बेहद कठिन हो जाती है क्योंकि अत्यधिक गर्मी और दबाव के कारण अधिकांश साक्ष्य नष्ट या विकृत हो जाते हैं।

कई बार राहत कार्य या मीडिया की भीड़ से स्थल प्रदूषित हो जाता है, जिससे नमूनों की शुद्धता प्रभावित होती है।

इसलिए फोरेंसिक टीम को तुरंत कार्रवाई करनी पड़ती है, क्योंकि समय बीतने पर रासायनिक अवशेष (residues) नष्ट हो सकते हैं।

 

फोरेंसिक जांच का महत्व:

फोरेंसिक जांच न्यायालय में स्वीकार्य वैज्ञानिक साक्ष्य प्रदान करती है।

यह स्पष्ट करती है कि विस्फोट दुर्घटना थी, आतंकी हमला था या तोड़फोड़।

साथ ही, यह पता लगाने में मदद करती है कि कौन-से रासायनिक पदार्थ और तकनीक इस्तेमाल की गईं तथा अपराधी कौन हो सकता है।

इससे जांच तथ्यों पर आधारित रहती है और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता आती है।

 

व्यापक प्रभाव:

यह घटना यह दर्शाती है कि आधुनिक समय में वैज्ञानिक पुलिसिंग और बहु-संस्थानिक समन्वय (inter-agency coordination) कितना आवश्यक है।

ऐसी जांचें न केवल अपराधियों को पकड़ने में सहायक होती हैं, बल्कि भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए भी मार्ग प्रशस्त करती हैं।

इससे देश में फोरेंसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की आवश्यकता भी स्पष्ट होती है।

 

निष्कर्ष:

  • विस्फोट जैसी घटनाओं में फोरेंसिक विशेषज्ञ सत्य की खोज के वैज्ञानिक प्रहरी होते हैं।
  • वे रसायन विज्ञान, भौतिकी, जीवविज्ञान और तकनीकी विज्ञान का उपयोग करके तबाही के बीच छिपे तथ्यों को उजागर करते हैं।
  • दिल्ली लाल किला विस्फोट की घटना ने फिर साबित किया कि वैज्ञानिक जांच ही न्यायिक प्रक्रिया की रीढ़ है, जो समाज और पीड़ितों दोनों के लिए सच्चाई को सामने लाती है।
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