जाति गणना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

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द हिंदू: 4 मई 2025 को प्रकाशित:

 

समाचार में क्यों है?

केंद्र सरकार ने अगले जनगणना में जाति आधारित गणना शामिल करने का निर्णय लिया है, जो लगभग 100 वर्षों बाद पहली बार होगा।

यह फैसला भाजपा सरकार की पूर्व नीति से विपरीत है, जिसने अब तक केवल अनुसूचित जातियों/जनजातियों (SC/ST) की गणना का समर्थन किया था।

यह घोषणा बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले की गई है, जहाँ जातीय राजनीति अत्यंत प्रभावी है।

 

जाति गणना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

नीति निर्माण एवं कल्याण योजनाएं: जातीय संरचना का सटीक आंकड़ा सरकार को लक्ष्य आधारित योजनाएं लागू करने में मदद करेगा।

आरक्षण की समीक्षा: वर्तमान में OBC के लिए 27% आरक्षण 1931 की जनगणना पर आधारित है। नई गणना से वास्तविक जनसंख्या के आधार पर कोटा संशोधन संभव होगा।

ऐतिहासिक अंतर भरना: स्वतंत्रता के बाद केवल SC/ST की गणना होती रही है। अन्य जातियों की सरकारी उपस्थिति नहीं रही।

शोध व सामाजिक अध्ययन: यह आंकड़े शोधकर्ताओं व नीति निर्माताओं के लिए अत्यंत उपयोगी होंगे।

 

भाजपा सरकार का यह फैसला चौंकाने वाला क्यों है?

भाजपा ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है, इसे समाज को बांटने वाला बताया है।

हाल ही में संसद में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जाति गणना की योजना से इनकार किया था।

यह निर्णय राजनीतिक दृष्टि से विपक्ष की मांग को निष्क्रिय करने के लिए किया गया प्रतीत होता है, विशेषकर बिहार जैसे राज्यों में भाजपा की पकड़ बनाए रखने हेतु।

 

इस प्रक्रिया से क्या चुनौतियां उत्पन्न होंगी?

प्रवर्तन में देरी: 2021 की जनगणना पहले से ही कोविड के कारण लंबित है। अब जाति जोड़ने से प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी।

श्रेणीकरण में असमानता: केंद्र और राज्यों की OBC सूचियाँ अलग-अलग हैं, जिससे जातियों की स्थिति तय करना कठिन हो जाएगा।

डेटा की विश्वसनीयता: 2011 की SECC में 46 लाख अलग-अलग जातियां दर्ज हुई थीं, जिससे मानकीकरण चुनौतीपूर्ण है।

राजनीतिक संवेदनशीलता: नए आंकड़ों के आधार पर आरक्षण बढ़ाने की मांगें होंगी, जिससे अन्य वर्गों में असंतोष उत्पन्न हो सकता है।

 

इसमें कौन-कौन सी जटिलताएं होंगी?

भाषाई और क्षेत्रीय विविधता: एक ही जाति के नाम अलग-अलग राज्यों में भिन्न होते हैं।

धार्मिक पहचान: गैर-हिंदू जातियों को कैसे गिना जाएगा? क्या उन्हें भी लाभ मिलेंगे?

उप-जातियां और नई पहचान: समय के साथ जातियां विभाजित या एकीकृत होती रही हैं, जिससे सटीक वर्गीकरण कठिन हो जाता है।

कानूनी पेच: यदि आरक्षण बढ़ाया गया तो संविधान संशोधन या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को चुनौती देनी पड़ सकती है।

 

यह आरक्षण की अधिकतम सीमा (50%) पर क्या प्रभाव डालेगा?

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की है।

कर्नाटक और बिहार जैसे राज्य OBC की संख्या अधिक पाए जाने पर आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं (जैसे कर्नाटक में 32% से 51%)।

राष्ट्रीय स्तर पर जातीय आंकड़ों के बाद, 50% सीमा को चुनौती दी जा सकती है।

 

कौन-कौन से राज्य पहले ही जाति गणना कर चुके हैं?

  • बिहार (2023): OBC और EBC की जनसंख्या 63% पाई गई।
  • तेलंगाना (2024): पिछड़े वर्गों की जनसंख्या 56%।
  • कर्नाटक (2015-2025): OBC जनसंख्या लगभग 70% बताई गई।
  • महाराष्ट्र व ओडिशा में भी इस विषय पर चर्चा हुई है, पर सर्वे पूर्ण नहीं हुआ।

 

निष्कर्ष और प्रभाव

  • जाति जनगणना का निर्णय ऐतिहासिक व दूरगामी परिणामों वाला है। यह एक ओर सामाजिक न्याय की दिशा में कदम है, तो दूसरी ओर राजनीतिक, कानूनी व प्रशासनिक जटिलताओं से भरा हुआ है।
  • यह निर्णय राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है और आरक्षण की वर्तमान प्रणाली को भी चुनौती दे सकता है।
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