द हिंदू: 23 दिसंबर 2024 को प्रकाशित:
समाचार में क्यों:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने अपनी हालिया बैठक की कार्यवाही प्रकाशित की, जिसमें भारत में धीमी आर्थिक वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति को उजागर किया गया।
खाद्य कीमतों से प्रेरित मुद्रास्फीति और धीमी आर्थिक वृद्धि से निपटने के लिए संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
मौद्रिक नीति की दिशा और ब्याज दर में कटौती की संभावना पर चर्चा हुई।
धीमी वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति:
भारत वर्तमान में धीमी आर्थिक वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की समस्या का सामना कर रहा है, जिसमें मुख्य कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि है।
कोर मुद्रास्फीति (मूल मुद्रास्फीति) में गिरावट के संकेत दिख रहे हैं, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी एक बड़ी चिंता है।
मौद्रिक नीति मुख्य रूप से मांग-पक्षीय मुद्दों को संबोधित करती है, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति आपूर्ति-पक्षीय गड़बड़ियों से उत्पन्न हो रही है।
कमजोर वैश्विक मांग जैसे बाहरी कारक भी निर्यात पर प्रभाव डाल रहे हैं, जिससे विकास धीमा हो रहा है।
वर्तमान स्थिति के मुख्य कारण:
खाद्य मुद्रास्फीति:
सब्जियों और खाद्य तेलों जैसी वस्तुओं की उच्च कीमतें, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
मौसमी आपूर्ति और मांग में असंतुलन से मुद्रास्फीति बढ़ी।
कोर मुद्रास्फीति के रुझान:
कोर मुद्रास्फीति में गिरावट से मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं में सुधार का संकेत मिलता है।
वैश्विक कारक:
चुनौतीपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यापार वातावरण ने निर्यात को सीमित किया।
मांग-पक्षीय मुद्दे:
घरेलू मांग में कमी के कारण निजी खपत और निवेश कमजोर रहा।
चुनौतियों से निपटने के लिए नीतियां:
मौद्रिक नीति उपाय:
आर्थिक वृद्धि का समर्थन करने और घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों में कटौती का सुझाव।
मुद्रास्फीति में स्थायी कमी की प्रतीक्षा करने पर जोर, ताकि अब तक प्राप्त प्रगति व्यर्थ न हो।
आपूर्ति-पक्षीय हस्तक्षेप:
मौसमी खाद्य कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए खाद्य आपूर्ति शृंखला को प्रबंधित करना।
निजी निवेश को पुनर्जीवित करना:
घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना।
वैश्विक एकीकरण:
वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच वृद्धि का समर्थन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्यों के साथ मौद्रिक नीतियों का समन्वय।
निष्कर्ष:
जबकि मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है, यह वित्त वर्ष 2025 की अंतिम तिमाही में खाद्य कीमतों के स्थिर होने के साथ कम होने की उम्मीद है।
मुद्रास्फीति नियंत्रण और वृद्धि पुनरुद्धार दोनों को प्राथमिकता देने वाला संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।
निजी निवेश और सतत आर्थिक पुनरुद्धार के लिए मुद्रास्फीति-वृद्धि संतुलन बहाल करना आवश्यक है।
दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ मांग और आपूर्ति-पक्षीय नीतियों की आवश्यकता है।
यह विश्लेषण लेख की संरचित समीक्षा करता है और नीति निर्माताओं व अन्य हितधारकों के लिए मुख्य निष्कर्ष प्रस्तुत करता है।