बांग्लादेश में संकट पर भारत की करीबी नजर

बांग्लादेश में संकट पर भारत की करीबी नजर

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द हिंदू: - 22 दिसंबर 2025 को प्रकाशित

 

चर्चा में क्यों?

18 दिसंबर 2025 को बांग्लादेश के मयमनसिंह में हिंदू युवक दिपु चंद्र दास की लिंचिंग के बाद भारत–बांग्लादेश संबंधों में तीखा तनाव देखने को मिला है। भारत ने इस घटना को “जघन्य कृत्य” बताते हुए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर चिंता जताई। वहीं, बांग्लादेश ने इसे साम्प्रदायिक घटना मानने से इनकार किया। इसके बाद भारतीय राजनयिक परिसरों पर हमले, बांग्लादेश में भारतीय वीजा सेवाओं का निलंबन, और बढ़ती भारत-विरोधी बयानबाजी ने द्विपक्षीय संबंधों को निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया।

 

पृष्ठभूमि: सहयोग पर आधारित संबंध

पिछले एक दशक से अधिक समय तक, विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और अवामी लीग सरकार के कार्यकाल में, भारत–बांग्लादेश संबंध दक्षिण एशिया के सबसे स्थिर द्विपक्षीय रिश्तों में गिने जाते थे। आतंकवाद-रोधी सहयोग, सीमा प्रबंधन, व्यापार, संपर्क परियोजनाएं, ऊर्जा और जन-से-जन संपर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार हुआ।

भारत के लिए विश्वास का प्रमुख आधार बांग्लादेश द्वारा अपने क्षेत्र से भारत-विरोधी उग्रवादी समूहों पर की गई सख्त कार्रवाई थी, जिससे पूर्वोत्तर भारत में सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। यह दौर क्षेत्रीय स्थिरता और रणनीतिक सामंजस्य का उच्च बिंदु माना जाता है।

 

राजनीतिक उथल-पुथल और रणनीतिक व्यवधान

अगस्त 2024 में बांग्लादेश में हुए जन-आंदोलन, शेख हसीना के सत्ता से हटने और अंतरिम सरकार के गठन ने इस निरंतरता को बाधित कर दिया। शेख हसीना का भारत में शरण लेना और ढाका में सत्ता परिवर्तन ने द्विपक्षीय रिश्तों में अनिश्चितता पैदा की।

इसके बाद से सहयोग की गति धीमी पड़ी और कनेक्टिविटी परियोजनाएं, जो भारत–बांग्लादेश संबंधों की रीढ़ थीं, राजनीतिक अविश्वास के कारण प्रभावित होने लगीं। घरेलू अस्थिरता बढ़ने के साथ कूटनीतिक समन्वय भी कमजोर हुआ।

 

ट्रिगर घटनाएं: हिंसा, विरोध और कूटनीतिक तनाव

शरीफ उस्मान बिन हादी, जो जुलाई आंदोलन से जुड़े और भारत-विरोधी रुख के लिए जाने जाते थे, की हत्या एक बड़ा ट्रिगर बनी। बिना आधिकारिक पुष्टि के यह आरोप कि आरोपी भारत भाग गया, ने जनाक्रोश को और भड़का दिया।

इस अशांति के परिणामस्वरूप:

  • बांग्लादेश में मीडिया संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों पर हमले
  • भारतीय राजनयिक परिसरों पर पथराव
  • भारतीय मिशनों को धमकियां, जिसके चलते भारत ने वीजा सेवाएं अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दीं

भारत ने किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया और विएना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक रिलेशंस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में जवाबदेही की मांग की।

 

भारत की प्रमुख चिंताएं

भारत की प्रतिक्रिया गहरी रणनीतिक आशंकाओं को दर्शाती है:

  • बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा के बीच अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं की सुरक्षा
  • बांग्लादेश में उग्रवादी ठिकानों के ऐतिहासिक अनुभव के कारण पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा
  • आतंकवाद-रोधी सहयोग के कमजोर पड़ने की आशंका
  • बांग्लादेश में चुनाव-पूर्व माहौल में बढ़ती भारत-विरोधी बयानबाजी

नई दिल्ली बांग्लादेश की स्थिरता को अपनी आंतरिक सुरक्षा और क्षेत्रीय संतुलन से सीधे जुड़ा मानती है।

 

क्षेत्रीय और रणनीतिक प्रभाव

यह संकट ऐसे समय में उभरा है जब बांग्लादेश अपने बाहरी संबंधों में विविधता ला रहा है, जिसमें चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते संपर्क भी शामिल हैं। भारत के लिए यह क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव और रणनीतिक विश्वास में कमी की चिंता को जन्म देता है।

सीमापार प्रतिशोध की धमकियों ने कूटनीतिक संवाद की गुंजाइश और कम कर दी है, जबकि दोनों देशों में जनमत कठोर होता जा रहा है।

 

आगे की राह

वर्तमान तनावों के बावजूद, भौगोलिक निकटता, साझा इतिहास और गहरे सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध लंबे समय तक शत्रुता को अस्थिर बनाते हैं। दोनों देशों के लिए दूरी बनाए रखना नुकसानदेह होगा।

आवश्यक कदम:

  • उच्च-स्तरीय कूटनीतिक संवाद की बहाली
  • अल्पसंख्यक संरक्षण और कानून के शासन पर ठोस कार्रवाई
  • दीर्घकालिक कनेक्टिविटी और सुरक्षा सहयोग को घरेलू राजनीति से अलग रखना
  • विश्वास बहाली के लिए विश्वास निर्माण उपाय (CBMs)

 

निष्कर्ष

वर्तमान संकट दर्शाता है कि राजनीतिक संक्रमण और सुरक्षा चिंताएं मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता को कितनी आसानी से प्रभावित कर सकती हैं। भारत–बांग्लादेश संबंध एक निर्णायक मोड़ पर हैं—या तो संवाद और सहयोग के जरिए पुनर्संतुलन होगा, या फिर लंबे समय तक अनिश्चितता बनी रहेगी। आज लिए गए निर्णय आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया के रणनीतिक परिदृश्य को आकार देंगे।

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