द हिंदू: 29 सितंबर 2025 को प्रकाशित।
खबर में क्यों है?
विदेशों में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों, खासकर अमेरिका में H-1B वीज़ा अस्थिरता को लेकर बढ़ती चिंता।
विदेश में नौकरी को अब भी प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इसके साथ जुड़ी असुरक्षा, तनाव और सांस्कृतिक अलगाव भी उभर कर सामने आ रहे हैं।
बड़ी संख्या में रिवर्स माइग्रेशन (वापसी)—कुशल भारतीय अब भारत लौट रहे हैं क्योंकि यहाँ ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में अवसर तेजी से बढ़ रहे हैं।
पृष्ठभूमि:
लंबे समय से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में नौकरी करना आकर्षक सपना रहा है, कारण: ऊँचे वेतन, बेहतर आधारभूत ढाँचा और जीवन-स्तर।
भारत का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय (लगभग 3.5 करोड़) है, जो हर साल 135 अरब डॉलर भारत भेजता है।
लेकिन विदेशों में प्रवासी अक्सर झेलते हैं:
वीज़ा पर नियोक्ता की निर्भरता।
स्थानीय श्रम सुरक्षा की कमी।
विरोधी-प्रवासी माहौल।
यूरोप की तुलना में अमेरिका में अधिक कार्यस्थल तनाव।
मुख्य मुद्दे:
विदेशों में नौकरी की असुरक्षा
अमेरिका में 52% कर्मचारी अपने काम को तनावपूर्ण मानते हैं, जबकि यूरोप में यह आँकड़ा 36% है।
H-1B वीज़ा पर निर्भरता भारतीय पेशेवरों के लिए चिंता का कारण।
अचानक नौकरी छूटने पर सुरक्षा तंत्र कमजोर।
विदेशी जीवन का भ्रम:
सोशल मीडिया पर NRIs की “चमकदार तस्वीरें” हकीकत को छिपा देती हैं।
वास्तविकता: सांस्कृतिक अलगाव, सीमित सामाजिक दायरा (केवल भारतीय समुदाय तक)।
विदेशी जीवनशैली दिखने में आकर्षक लेकिन अंदर से असुरक्षित।
ब्रेन ड्रेन बनाम ब्रेन गेन:
हर साल लगभग एक-तिहाई IIT स्नातक विदेश जाते हैं, टॉप रैंकर्स में यह प्रतिशत और अधिक है।
अमेरिका में नया H-1B शुल्क ($100,000) प्रवासन को धीमा कर सकता है।
पिछले एक साल में 3.59 लाख भारतीय पेशेवर 100+ देशों से भारत लौटे, जिनमें 88,000 अमेरिका से आए।
भारत में बढ़ते अवसर:
बड़ी टेक कंपनियाँ (Meta, Google, Amazon, Microsoft आदि) ने पिछले तीन वर्षों में 63,000 कर्मचारियों को भारत में नियुक्त किया।
GCCs ने 3.2 लाख नई नौकरियाँ बनाई हैं, और इस समय लगभग 30,000 रिक्तियाँ मौजूद हैं।
भारत में वेतन तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि डॉलर वेतन ठहरे हुए हैं।
आर्थिक असर:
H1B संकट से भारतीय IT दिग्गजों (TCS, Infosys, Wipro, HCL, Tech Mahindra) की बाज़ार पूँजी 36.2 अरब डॉलर घट गई (सितंबर 2025 में 4 दिनों में)।
प्रभाव:
भारतीय प्रवासी पर: असुरक्षा बढ़ी, प्रवासन लागत बढ़ी, और कई लोग भारत लौटने लगे।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर: रिवर्स माइग्रेशन से अनुभवी प्रतिभा भारत लौटकर घरेलू उद्योगों, स्टार्टअप्स और IT सेक्टर को मज़बूत कर रही है।
वैश्विक छवि पर: विदेशों में नौकरी का आकर्षण अब सवालों के घेरे में है।
नीति पर: अमेरिका के कठोर वीज़ा नियम भारत को घरेलू रोजगार तंत्र और R&D को मज़बूत करने की प्रेरणा देंगे।
आगे की राह:
भारत के लिए:
कौशल विकास और अनुसंधान पर निवेश बढ़ाना।
GCC और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।
बेहतर बुनियादी ढाँचा और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
पेशेवरों के लिए:
विदेश की “चमक” और वास्तविक करियर सुरक्षा के बीच संतुलन पर विचार करना।
केवल “विदेशी ब्रांड वैल्यू” के बजाय दीर्घकालिक विकास को महत्व देना।
विदेशी सरकारों के लिए:
प्रवासी कर्मचारियों की श्रम सुरक्षा सुनिश्चित करना।
आर्थिक ज़रूरतों और आव्रजन नीति में संतुलन बनाना।
निष्कर्ष: विदेशों की नौकरी अब भी आकर्षक है, लेकिन उसका “रोमांचक चेहरा” धीरे-धीरे धुंधला हो रहा है। भारत में बढ़ते अवसर और विदेशों में वीज़ा-आधारित असुरक्षा इस सवाल को बदल रही है—
“क्या मुझे विदेश जाना चाहिए?” से “क्या मुझे भारत लौटना चाहिए?”