पुलिस के बारे में सोच बदलने की तुरंत ज़रूरत: PM

पुलिस के बारे में सोच बदलने की तुरंत ज़रूरत: PM

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द हिंदू: 1 दिसंबर 2025 को प्रकाशित।

 

समाचार में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रायपुर स्थित IIM में आयोजित 60वीं अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक (DGP) और महानिरीक्षक (IGP) सम्मेलन की अध्यक्षता की। सम्मेलन का मुख्य फोकस राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों पर रहा, जिसमें “विकसित भारत : सुरक्षा आयाम” थीम के तहत व्यापक पुलिस सुधारों पर जोर दिया गया।

 

पृष्ठभूमि

यह वार्षिक सम्मेलन देश की शीर्ष पुलिस नेतृत्व को एक मंच प्रदान करता है, जहां वे शहरी अपराध, साइबर खतरे, वामपंथी उग्रवाद, नशीली दवाओं की तस्करी और आपदा प्रबंधन जैसे उभरते आंतरिक सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करते हैं। यह सम्मेलन भारत के 2047 तक विकसित और सुरक्षित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के अनुरूप पुलिस रणनीतियों को भी दिशा देता है।

 

सम्मेलन की प्रमुख बातें

  • पुलिस छवि में सुधार के लिए पेशेवराना दक्षता, नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता और त्वरित पुलिसिंग पर जोर; युवाओं और हाशिए पर बसे समुदायों में विश्वास बहाली।
  • प्रतिबंधित संगठनों की निरंतर निगरानी और LWE-मुक्त जिलों में सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रोत्साहन।
  • चक्रवात, बाढ़, औद्योगिक दुर्घटनाओं और अन्य आपात स्थितियों के लिए मजबूत तैयारी; नशा-विरोधी अभियान के लिए समग्र सरकारी दृष्टिकोण अपनाना।
  • शहरी पुलिसिंग में सुधार हेतु टूरिस्ट पुलिस को मजबूत करना, नए कानूनों—भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)—के प्रति जागरूकता बढ़ाना, तथा महिलाओं की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त उपाय लागू करना।
  • तकनीक के उपयोग में वृद्धि—AI, डेटा एनालिटिक्स, प्रेडिक्टिव पुलिसिंग, NAT-GRID इंटीग्रेशन, और तटीय/सीमाई सुरक्षा के लिए आधुनिक निगरानी प्रणाली का उपयोग।

 

पुलिस व्यवस्था की चुनौतियाँ

  • कर्मियों की कमी: भारत का पुलिस-जनसंख्या अनुपात UN मानकों से कम।
  • प्रशिक्षण की कमी: साइबर फोरेंसिक, डिजिटल अपराध, और लैंगिक संवेदनशीलता में अपर्याप्त क्षमता।
  • पुराना अवसंरचना तंत्र: आधुनिक लैब, उपकरण और निगरानी प्रणालियों का अभाव।
  • भूमिका-अधिभार: पुलिस पर न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों का अतिरिक्त दबाव।
  • जटिल अपराध: साइबर धोखाधड़ी, संगठित अपराध और कट्टरपंथ तेजी से विकसित हो रहे हैं।
  • जनविश्वास की कमी: भ्रष्टाचार, हिरासत में हिंसा, और पारदर्शिता की कमी से विश्वसनीयता प्रभावित।
  • फोरेंसिक कमियाँ: स्टाफ की कमी और पुराने सिस्टम के कारण जांच व न्याय में देरी।

 

आगे की राह

  • व्यापक कानूनी सुधार: उपनिवेशकालीन पुलिस संरचनाओं को बदलकर एक आधुनिक और प्रभावी मॉडल पुलिस एक्ट लागू करना आवश्यक है। इससे जवाबदेही, स्वायत्तता और नागरिक-केंद्रित पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा, जो पुलिस को अधिक पारदर्शी और दक्ष बनाएगा।
  • प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास: पुलिस कर्मियों को साइबर अपराध जांच, नैतिक आचरण, और लैंगिक संवेदनशीलता पर निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता है। विशेष रूप से कांस्टेबल स्तर के कर्मियों (जो 85% बल हैं) को आधुनिक कौशल और पेशेवर प्रशिक्षण देना अनिवार्य है।
  • आधुनिकीकरण और अवसंरचना उन्नयन: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण योजना का विस्तार करके फोरेंसिक लैब, साइबर सेल और निगरानी तकनीकों को मजबूत किया जाना चाहिए। आधुनिक हथियार, संचार साधन, मोबाइल यूनिट्स और स्मार्ट पुलिस स्टेशन पुलिस की क्षमता को बढ़ाएँगे।
  • तकनीक-आधारित पुलिसिंग: AI टूल्स, बायोमेट्रिक सिस्टम, ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन, नाइट-विजन CCTV जैसे उन्नत उपकरणों को अपनाने की आवश्यकता है। GPS-सक्षम गश्ती वाहन और बॉडी-वॉर्न कैमरे पारदर्शिता और वास्तविक समय निगरानी को बढ़ाएँगे।
  • अपराजनीतिकीकरण और संरचनात्मक स्वायत्तता: राजनीतिक हस्तक्षेप कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश—स्टेट सिक्योरिटी कमीशन, पुलिस स्थापना बोर्ड, और अधिकारियों की निश्चित कार्य अवधि—लागू करना अत्यंत आवश्यक है। इससे जांच व नियुक्तियों में निष्पक्षता और पेशेवराना स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी।
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