द हिंदू: 22 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।
समाचार में क्यों:
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने 3 अरब डॉलर का समझौता किया है, ताकि महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (Rare Earths) के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके और चीन पर निर्भरता को घटाया जा सके।
पृष्ठभूमि:
दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ (REEs) उच्च-तकनीकी उद्योगों — जैसे रक्षा, इलेक्ट्रिक वाहन, स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स — के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
चीन वर्तमान में दुनिया की 90% रिफाइनिंग क्षमता, 69% खनन, और 98% मैग्नेट निर्माण को नियंत्रित करता है।
बढ़ते व्यापारिक और सुरक्षा तनाव के बीच पश्चिमी देश चीन की पकड़ को कमजोर करना चाहते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने ऑस्ट्रेलियाई खनन उद्योग को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जताई है।
समझौते के मुख्य बिंदु:
कुल निवेश: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर से संयुक्त रूप से 3 अरब डॉलर।
उद्देश्य: खनन, प्रसंस्करण और खनिजों के लिए एक न्यूनतम मूल्य सीमा (Price Floor) तय करना।
संभावित लाभ: ऑस्ट्रेलिया में लगभग 53 अरब डॉलर मूल्य के खनिज भंडार का दोहन संभव।
लाभार्थी: Arafura Rare Earths जैसी कंपनियों को अमेरिकी EXIM बैंक से लगभग 2.2 अरब डॉलर की वित्तीय रुचि प्राप्त हुई है।
विशेषज्ञों की राय:
विश्लेषक अल्पकालिक सफलता पर संशय व्यक्त कर रहे हैं।
डैन मॉर्गन (Barrenjoey): 2027 तक पर्याप्त आपूर्ति वृद्धि “अवास्तविक” है।
डायलन केली (Terra Capital): कीमतें और गिरने की संभावना नहीं है; निवेश आकर्षण तो बढ़ा है लेकिन बाजार में त्वरित बदलाव असंभव है।
चीन की तकनीकी श्रेष्ठता और सस्ती रिफाइनिंग अब भी सबसे बड़ी ताकत बनी हुई है।
आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव:
अल्पकाल में: ऑस्ट्रेलियाई खनन कंपनियों को प्रोत्साहन मिलेगा, निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
दीर्घकाल में: आपूर्ति श्रृंखला का विविधीकरण संभव होगा, लेकिन चीन का प्रभुत्व तुरंत खत्म नहीं होगा।
भू-राजनीतिक दृष्टि से: यह समझौता इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी को मजबूत करेगा।
प्रमुख चुनौतियाँ:
तकनीकी जटिलता: चीन की सस्ती और कुशल रिफाइनिंग प्रक्रिया।
पर्यावरणीय खतरे: रिफाइनिंग प्रक्रिया अत्यधिक प्रदूषणकारी है।
समय सीमा: 5–7 वर्ष से पहले बड़े बदलाव की संभावना कम।
वित्तीय जोखिम: भारी निवेश और अनिश्चित वैश्विक मांग।
निष्कर्ष:
अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया समझौता एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है, लेकिन निकट भविष्य में चीन का प्रभुत्व बना रहेगा। दीर्घकालीन सफलता के लिए निरंतर निवेश, तकनीकी नवाचार और सहयोगी नीतियाँ आवश्यक होंगी।