आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट का खतरा

आतंकवाद में डिजिटल ट्रेडक्राफ्ट का खतरा

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द हिंदू: 20 नवंबर 2025 को प्रकाशित।

 

खबर में क्यों?

दिल्ली के लाल क़िले के पास 10 नवंबर को हुए कार धमाके में कम से कम 15 लोगों की मौत और 30 से अधिक लोग घायल हुए। जांच में सामने आया कि हमले की योजना उन्नत डिजिटल तकनीकों जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स, निजी सर्वर, VPN और गुप्त ईमेल तकनीकों की मदद से बनाई गई। यह संकेत है कि आतंकवाद अब भौतिक मैदान ही नहीं, बल्कि गहराई से छिपे डिजिटल स्पेस में भी लड़ा जा रहा है।

 

क्या हुआ है?

धमाका रेड फोर्ट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास हुआ। इसे तुरंत आतंकी हमला मानकर NIA ने जांच संभाली। तीन डॉक्टर — डॉ. उमर उन नबी, डॉ. मुझम्मिल गनई और डॉ. शाहीन शाहिद — जो अल-फलाह यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद से जुड़े बताए गए, इस हमले की योजना में प्रमुख भूमिका में पाए गए।

 

प्रमुख खुलासे

जांच में पता चला कि आरोपियों ने अत्यंत गोपनीय ऐप Threema का उपयोग किया, संभवतः निजी सर्वर पर, जिसमें नक्शे, लेआउट और निर्देश साझा किए गए। इस ऐप में फोन नंबर या ईमेल नहीं देना पड़ता और संदेश दोनों ओर से डिलीट किए जा सकते हैं।

 

उन्होंने “डेड-ड्रॉप ईमेल” तकनीक का भी इस्तेमाल किया, जिसमें संदेश भेजे नहीं जाते, बल्कि एक साझा ईमेल खाते में ड्राफ्ट के रूप में सेव किए जाते हैं। दूसरा व्यक्ति लॉगिन कर ड्राफ्ट पढ़कर या बदलकर मिटा देता है, जिससे कोई डिजिटल रिकॉर्ड नहीं बचता।

 

आरोपी अत्यंत अनुशासन के साथ काम कर रहे थे — लगातार रेक्की, अमोनियम नाइट्रेट का गुप्त भंडारण, पहचान न जगाने वाली गाड़ी का उपयोग, और मोबाइल उपकरणों को पूरी तरह बंद कर देना। कुछ संकेत जैश-ए-मोहम्मद से प्रेरित या जुड़े नेटवर्क की ओर भी इशारा करते हैं।

 

अकादमिक शोध से संबंध:

आतंकवाद अध्ययन पहले ही चेतावनी दे चुका है कि उग्रवादी समूह भौतिक हिंसा को डिजिटल गोपनीयता के साथ मिलाकर नए प्रकार के हमले करेंगे। एन्क्रिप्टेड ऐप, निजी सर्वर, VPN और भौतिक रेक्की का मेल बिल्कुल वही बहु-क्षेत्रीय आतंकवाद है जिसकी भविष्यवाणी शोधकर्ता करते आए हैं।

 

इसके निहितार्थ:

पारंपरिक निगरानी जैसे फोन टैपिंग, ईमेल इंटरसेप्ट और मेटाडाटा ट्रैकिंग अब अप्रभावी हो रहे हैं। प्रतिबंधित ऐप्स भी VPN के माध्यम से उपयोग किए जा सकते हैं। उपकरण जब्त होने पर भी डेटा नहीं मिलेगा क्योंकि संदेश डिलीट या निजी सर्वर में रहते हैं। इसलिए डिजिटल फॉरेंसिक और सर्वर ट्रैकिंग तकनीक अनिवार्य हो चुकी है।

 

नीति समाधान:

सरकार को विशेष डिजिटल फॉरेंसिक टीम बनानी होगी जो एन्क्रिप्टेड नेटवर्क, मेमोरी फॉरेंसिक और निजी सर्वर विश्लेषण में माहिर हो। निजी सर्वर और स्वयं-होस्टेड ऐप्स पर नए कानूनी नियम बनाने होंगे जिनमें न्यायिक निगरानी के तहत लॉफुल एक्सेस हो सके। आतंकवाद विरोधी कानूनों में डिजिटल डेड-ड्रॉप, VPN उपयोग और विकेन्द्रीकृत संचार से जुड़े प्रावधान स्पष्ट होने चाहिए। विश्वविद्यालयों और पेशेवर संस्थानों में डि-रैडिकलाइज़ेशन कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, क्योंकि आरोपी उच्च शिक्षित डॉक्टर थे। अंतरराष्ट्रीय सहयोग और टेक-डिप्लोमेसी को मजबूत कर विदेशी एन्क्रिप्टेड सर्वरों तक कानूनी पहुंच बनाई जानी चाहिए।

 

आगे क्या?

लाल क़िला विस्फोट दिखाता है कि आधुनिक आतंकवाद अब सिर्फ बम, हिंसा और विचारधारा तक सीमित नहीं है — यह अब कोड, सर्वर और गुमनाम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी चलता है। लोकतंत्रों को सुरक्षा और निजता के बीच संतुलन बनाते हुए उन्नत साइबर-फॉरेंसिक और कानूनी ढांचे तैयार करने होंगे।

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