तीसरी भाषा के लिए दोषपूर्ण प्रयास:

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द हिंदू: 29 जनवरी 2025 को प्रकाशित:

 

चर्चा में क्यों है?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने भारत के स्कूलों में तीन-भाषा नीति लागू करने की सिफारिश की है। हालांकि, जब दो भाषाओं में भी दक्षता हासिल करना चुनौतीपूर्ण है, तो तीसरी भाषा को अनिवार्य रूप से जोड़ना विवादास्पद है।

 

मुख्य मुद्दे:

1. नीति-निर्माण और प्रमाण-आधारित विश्लेषण की कमी

  • नीति-निर्माण में डेटा, अनुसंधान और सांख्यिकीय विश्लेषण आवश्यक होते हैं, लेकिन NEP 2020 ने बिना ठोस प्रमाणों के तृतीय भाषा लागू करने की सिफारिश की।
  • अन्य देशों की शिक्षा प्रणाली, जैसे कि सिंगापुर, चीन, दक्षिण कोरिया, एस्टोनिया, और फिनलैंड, भाषा नीति को अलग तरीके से अपनाती हैं।

 

2. सर्वेक्षण क्या कहते हैं?

PISA (Programme for International Student Assessment) 2009: भारत 74 में से 73वें स्थान पर रहा। इसके बाद भारत ने PISA से हटने का फैसला किया।

 

राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) 2017 और 2021:

  • 2017 में, केवल 48% कक्षा 8 के छात्र एक सरल अनुच्छेद पढ़ सकते थे।
  • 2021 में, यह आंकड़ा थोड़ा बढ़कर 56% हुआ।
  • अंग्रेजी दक्षता बहुत कम पाई गई।

 

ASER (Annual Status of Education Report) 2018 और 2022:

2022 में, कक्षा 8 के 30.4% छात्र कक्षा 2 स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ सकते थे।

अंग्रेजी पढ़ने में 2016 में 73.8% छात्र असमर्थ थे, जो 2022 में घटकर 53.3% हुआ।

 

3. शोध क्या कहता है?

  • तृतीय भाषा सीखना संज्ञानात्मक भार (Cognitive Load) बढ़ा सकता है।
  • यदि छात्र पहली (L1) और दूसरी (L2) भाषा में संघर्ष कर रहे हैं, तो तीसरी भाषा (L3) उनकी दक्षता को और प्रभावित कर सकती है।
  • हिंदी जैसी इंडो-आर्यन भाषाएँ मराठी, पंजाबी, उड़िया भाषी छात्रों के लिए सीखना आसान होती हैं, जबकि तमिल, संथाली, और मिज़ो भाषी छात्रों के लिए यह कठिन हो सकती है।

 

4. क्रियान्वयन की चुनौतियाँ

शिक्षकों की कमी: प्रत्येक भाषा के लिए योग्य शिक्षकों की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती होगी।

वित्तीय बोझ: स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षण संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे बजट प्रभावित होगा।

छात्रों की भाषा पसंद: छात्रों की विविध पसंद को पूरा करना कठिन होगा, जिससे हिंदी या संस्कृत को थोपने की संभावना बढ़ जाएगी।

 

5. तकनीक का बेहतर उपयोग

  • NEP 2020 में भाषा शिक्षण में तकनीक के उपयोग का उल्लेख किया गया है, लेकिन यह AI-आधारित अनुवाद उपकरणों की क्षमता को नजरअंदाज करता है।
  • AI टूल्स, जैसे कि स्वचालित अनुवाद और टेक्स्ट-टू-स्पीच, भाषा सीखने की प्रक्रिया को सरल बना सकते हैं।

 

6. सिंगापुर से सीखने की जरूरत

सिंगापुर ने अंग्रेजी को पहली भाषा और मातृभाषा (मंदारिन, मलय, तमिल) को दूसरी भाषा के रूप में अपनाया।

इससे सामाजिक समरसता बनी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश आगे बढ़ा।

 

7. हिंदी को जोड़ने की बाध्यता क्यों गलत?

2011 की जनगणना के अनुसार, 43.63% भारतीय हिंदी बोलते हैं, लेकिन इस आंकड़े में 53 अन्य भाषाओं को हिंदी की "बोलियाँ" माना गया है।

वास्तव में, केवल 25% भारतीय शुद्ध हिंदी बोलते हैं।

भारत में 95.28% लोग अपने ही राज्य के भीतर रहते हैं और अपनी स्थानीय भाषा का ही उपयोग करते हैं।

 

निष्कर्ष-

  • जब दो भाषाओं में ही दक्षता चुनौतीपूर्ण है, तो तीसरी भाषा थोपना व्यर्थ होगा।
  • संसाधनों का उपयोग गणित, विज्ञान और AI जैसे उभरते विषयों में किया जाना चाहिए।
  • भारत को सिंगापुर की तरह अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा नीति को व्यावहारिक दृष्टिकोण से बनाया जाना चाहिए, न कि भाषायी राष्ट्रवाद पर आधारित।
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