फील्ड मार्शल का राष्ट्र

फील्ड मार्शल का राष्ट्र

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द हिंदू: 16 नवंबर 2025 को प्रकाशित।

 

ख़बर में क्यों?

पाकिस्तान ने 27वां संवैधानिक संशोधन पारित कर दिया है, जो देश की राजनीति में एक बड़ा संवैधानिक परिवर्तन है और सैन्य शक्ति को औपचारिक रूप से सर्वोच्च दर्जा देता है। इस संशोधन के तहत सेना प्रमुख आसिम मुनीर को फ़ील्ड मार्शल का दर्जा मिला है, जो उन्हें आजीवन रैंक, वर्दी, विशेषाधिकार और पूर्ण दण्डमुक्ति प्रदान करता है। साथ ही एक नया शक्तिशाली पद — चीफ ऑफ डिफेन्स फोर्सेज (CDF) — बनाया गया है, जिस पर भी मुनीर को नियुक्त किया गया है।

संशोधन पाकिस्तान की न्यायपालिका को भी पुनर्गठित करता है और एक नए संवैधानिक न्यायालय की स्थापना करता है, जो सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकारों को अपने अधीन ले लेता है।

यह संशोधन पाकिस्तान में फ़ील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान के दौर के बाद सेना के हाथों में शक्ति के सबसे बड़े केंद्रीकरण को दर्शाता है।

 

हाइब्रिड शासन: सैन्य-केंद्रित व्यवस्था की ओर बदलाव:

लंबे समय से पाकिस्तान को एक “हाइब्रिड शासन” व्यवस्था माना जाता था — जिसमें नागरिक सरकारें अस्तित्व में होती थीं, पर वास्तविक शक्ति सेना के पास होती थी।

2022 में इमरान खान और सेना के बीच टकराव के बाद उन्हें सत्ता से हटाया गया और सेना ने शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार का समर्थन किया। यह गठबंधन कमजोर, विभाजित और सेना पर अत्यधिक निर्भर रहा।

इसी दौरान, जनरल आसिम मुनीर का प्रभाव लगातार बढ़ता गया — विशेष रूप से मई 2025 में भारत के साथ एक संक्षिप्त टकराव के बाद जब उन्हें फ़ील्ड मार्शल पदोन्नति मिली। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में पाकिस्तान का चेहरा बनना शुरू किया, जिससे नागरिक नेतृत्व हाशिये पर चला गया।

27वां संशोधन इस पहले से मौजूद हाइब्रिड व्यवस्था को औपचारिक रूप से संविधान का हिस्सा बना देता है — अर्थात अब सैन्य प्रभुत्व स्पष्ट और वैध रूप से स्थापित है।

नागरिक और सैन्य शक्ति के बीच संतुलन बनाने के बजाय यह संशोधन पूरे ढांचे को निर्णायक रूप से सेना के पक्ष में झुका देता है।

 

न्यायिक पुनर्गठन: संवैधानिक व्याख्या की शक्ति में बड़ा बदलाव:

इस संशोधन का सबसे प्रभावशाली हिस्सा है नया संघीय संवैधानिक न्यायालय (Federal Constitutional Court) बनाना, जो अब संविधान की सर्वोच्च व्याख्या करेगा।

यह नया न्यायालय सुप्रीम कोर्ट की जगह लेता है और इसके जज राष्ट्रपति (जो सेना-समर्थित हैं) द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर नियुक्त होंगे। इससे वरिष्ठता आधारित पारंपरिक नियुक्ति प्रणाली समाप्त हो जाती है।

यह बदलाव न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कम करता है। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट कई बार सैन्य दखल का विरोध करता रहा है—जैसे 2007 के वकील आंदोलन में।

सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक अधिकार छीनकर यह सुनिश्चित किया गया है कि भविष्य में सेना की शक्ति के खिलाफ उठने वाली कानूनी चुनौतियों को नियंत्रित किया जा सके।

संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों का तत्काल इस्तीफ़ा इस झटके की गंभीरता को दर्शाता है।

 

सैन्य कमान का पुनर्गठन: चीफ ऑफ डिफेन्स फोर्सेज का उदय:

संशोधन ने पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 243 को बदलकर एक नया पद चीफ ऑफ डिफेन्स फोर्सेज (CDF) बनाया है। यह पद सेना, नौसेना और वायुसेना — तीनों के प्रमुखों से ऊपर है, अर्थात पूरी सैन्य शक्ति अब एक ही व्यक्ति के अधीन है — वर्तमान में फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर।

पुरानी जॉइंट चीफ़्स ऑफ स्टाफ कमेटी को समाप्त कर दिया गया है।

एक नया नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड भी बनाया गया है जो परमाणु और रणनीतिक संपत्तियों को संभालेगा। इसके प्रमुख की नियुक्ति सिर्फ़ सेना प्रमुख की सिफ़ारिश पर ही होगी।

इससे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और रणनीतिक ढांचे पर पूर्ण नियंत्रण सैन्य प्रतिष्ठान—और अंततः मुनीर—के हाथों में केंद्रित हो जाता है।

यह पुनर्गठन ज़िया-उल-हक़ या मुशर्रफ़ के दौर से भी अधिक केंद्रीकरण दर्शाता है और फ़ील्ड मार्शल को अजेय शक्ति प्रदान करता है, वह भी संवैधानिक वैधता के साथ।

 

राजनीतिक अभिजात वर्ग और सैन्य प्रतिष्ठान के संबंध:

पाकिस्तान की मुख्य राजनीतिक पार्टियाँ — PML-N और PPP — ऐतिहासिक रूप से कभी सैन्य टकराव, तो कभी समझौते की राह पर चलती रही हैं। वर्तमान स्थिति में दोनों ही पार्टियाँ सत्ता में बने रहने के लिए सैन्य समर्थन पर अत्यधिक निर्भर हैं।

इसी कारण संशोधन पेश किए जाने पर उन्होंने कोई गंभीर विरोध नहीं किया।

इमरान खान की PTI — जो अकेली पार्टी थी जो सैन्य प्रभुत्व को सीधे चुनौती दे रही थी — ने वोट का बहिष्कार किया। इसके कारण संशोधन भारी बहुमत से पारित हो गया।

यह पूरी प्रक्रिया दिखाती है कि पाकिस्तान की राजनीतिक वर्ग सेना का विरोध करने में असमर्थ (या अनिच्छुक) है और चुनावी व संसदीय प्रक्रियाओं पर सैन्य प्रतिष्ठान का प्रभाव पहले की तरह मजबूत है।

 

फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर के इर्द-गिर्द शक्ति का केंद्रीकरण:

हालांकि संशोधन को संस्थागत सुधार बताया जा रहा है, पर इसका सबसे बड़ा लाभ एक ही व्यक्ति को मिलता है — आसिम मुनीर।

वह पाकिस्तान के इतिहास में केवल दूसरे पाँच-सितारा अफसर बन गए हैं, अय्यूब ख़ान के बाद।

उनकी रैंक, विशेषाधिकार और वर्दी आजीवन कानूनी रूप से सुनिश्चित कर दिए गए हैं। उन्हें पूर्ण दण्डमुक्ति मिलती है — यानी सामान्य कानूनी प्रक्रिया के तहत उनका अभियोजन संभव नहीं, केवल महाभियोग जैसी विशेष प्रक्रिया से ही।

यह उन्हें वह शक्ति देता है जो पाकिस्तान के इतिहास में किसी और सैन्य नेता को नहीं मिली—यहाँ तक कि मुशर्रफ़ को भी नहीं।

संशोधन मुनीर को पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति “वास्तविक रूप से” नहीं, बल्कि “कानूनी रूप से” भी स्थापित कर देता है।

 

दीर्घकालिक प्रभाव:

27वां संशोधन पाकिस्तान की राजनीतिक दिशा को लंबे समय तक बदल देगा। यह सैन्य सर्वोच्चता को संवैधानिक ढांचे में स्थायी रूप से स्थापित करता है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमज़ोर बनाता है, नागरिक सत्ता को कमजोर करता है और वास्तविक लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को और भी सीमित करता है।

हालाँकि यह संशोधन वर्तमान सरकार के लिए अल्पकालिक स्थिरता ला सकता है, पर इससे लोकतांत्रिक गिरावट, सत्ता के अत्यधिक केंद्रीकरण और संभावित अधिनायकवाद की आशंकाएँ गहरी हो जाती हैं।

सार रूप में, यह संशोधन एक हाइब्रिड शासन से “संवैधानिक सैन्य शासन” की ओर संक्रमण को दर्शाता है — जिसके शीर्ष पर फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर हैं।

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