भारत में छात्र प्रवासन के बदलते पैटर्न

भारत में छात्र प्रवासन के बदलते पैटर्न

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द हिंदू : 18 दिसंबर 2025 को प्रकाशित

 

चर्चा में क्यों?

हालिया संसदीय रिपोर्टों, विदेश मंत्रालय (MEA) के आँकड़ों और केरल माइग्रेशन सर्वे 2023 ने छात्र प्रवासन को एक उभरते हुए डायस्पोरा कल्याण और आर्थिक मुद्दे के रूप में रेखांकित किया है। केवल केरल से ही छात्र प्रवासियों की संख्या बढ़कर 2.5 लाख हो गई, जो कुल प्रवासियों का 11.3% है। शिक्षा पर होने वाला व्यय ₹43,378 करोड़ रहा, जो खाड़ी देशों से आने वाले कुल रेमिटेंस का लगभग 20% है। साथ ही, कनाडा और ब्रिटेन में वीज़ा प्रतिबंधों ने जोखिम और बढ़ा दिए हैं।

 

छात्र प्रवासन के कारण (Drivers of Student Outflow)

भारत में छात्र प्रवासन 2025 में 13.8 लाख तक पहुँच गया है, जो पिछले एक दशक में लगभग तीन गुना बढ़ा है। मध्यम वर्गीय परिवार अब विदेश में पढ़ाई के लिए स्वयं वित्तपोषण कर रहे हैं। जो प्रवृत्ति पहले शीर्ष वैश्विक संस्थानों तक सीमित थी, वह अब निम्न-स्तरीय विदेशी कॉलेजों की ओर बढ़ गई है, जिससे कर्ज, डेस्किलिंग और रिवर्स रेमिटेंस जैसी चिंताएँ पैदा हुई हैं।

मध्यम वर्गीय परिवार ₹40–50 लाख तक के शिक्षा ऋण के लिए संपत्तियाँ गिरवी रख रहे हैं, जिनके पीछे स्थायी निवास (PR), बेहतर नौकरियों और सामाजिक गतिशीलता की आकांक्षा है।

  • मुख्य गंतव्य: अमेरिका (4 लाख छात्र), कनाडा (27 लाख), ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी।
  • पुश फैक्टर: भारतीय उच्च शिक्षा में गुणवत्ता की धारित कमी, रोजगार अवसरों की कमी, और शोध–उद्योग समन्वय का अभाव।
  • संरचनात्मक समस्याएँ: अनियंत्रित एजेंट छात्रों को कम रैंक वाले कॉलेजों में भेज रहे हैं, जहाँ रोजगार की संभावनाएँ कमजोर हैं, जबकि भारत में सस्ते ऑफशोर कैंपस उपलब्ध हैं।

 

प्रभाव (Impacts)

सकारात्मक

  • मेज़बान देशों को बड़ा आर्थिक लाभ (कनाडा: 61 लाख नौकरियाँ, $30.9 अरब GDP योगदान)।
  • यदि छात्र कुशल रोजगार प्राप्त करें तो दीर्घकालीन रेमिटेंस की संभावना।

 

नकारात्मक

  • वीज़ा सीमाओं के कारण स्नातकों का कम-कौशल नौकरियों में फँसना (ब्रेन वेस्ट)
  • भारी ऋण और अनिश्चित भविष्य से कर्ज जाल और मानसिक तनाव
  • रिवर्स रेमिटेंस, जिसमें भारतीय परिवारों की बचत OECD देशों की अर्थव्यवस्थाओं को सब्सिडी देती है।
  • ब्रिटेन में केवल 25% स्नातकोत्तर छात्रों को ही कुशल कार्य वीज़ा मिल पाता है, जिससे सीमित प्रतिफल स्पष्ट होता है।

 

आगे की राह (Way Forward)

  • शिक्षा एजेंटों का लाइसेंसिंग और सख्त जवाबदेही के साथ विनियमन।
  • लागत, रोजगार संभावनाओं और वीज़ा वास्तविकताओं पर अनिवार्य प्री-डिपार्चर काउंसलिंग
  • द्विपक्षीय समझौते ताकि संस्थागत पारदर्शिता और छात्र सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • देश में IIT, IIM और राज्य विश्वविद्यालयों को मजबूत करना, शिक्षा निर्यात के लिए PLI-जैसे प्रोत्साहन, और ऑफशोर कैंपस का विस्तार
  • एलुमनी नेटवर्क के माध्यम से रिवर्स ब्रेन ड्रेन को प्रोत्साहन।

 

निष्कर्ष (Conclusion)

भारत का छात्र प्रवासन आकांक्षाओं और प्रणालीगत विफलताओं दोनों को दर्शाता है। पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना यह सामाजिक गतिशीलता के बजाय शोषण और डेस्किलिंग के चक्र में बदल सकता है। विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप इसे संरेखित करने के लिए घरेलू शिक्षा सुधार, विदेशों में छात्रों की सुरक्षा और वैश्विक अनुभव को राष्ट्रीय मानव पूंजी में बदलना अनिवार्य है।

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